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…तो कब बनेगा झारखंड स्टेट फार्मेसी काउंसिल!

झारखंड के साथ जितना अन्याय होता आया है, शायद ही किसी और राज्य के साथ हुआ हो। झारखंड के लोग तो यही चाहते हैं कि उनके स्वास्थ्य की जिम्मेदारी जिम्मेदार हाथों में हो, उन्हें सस्ती, सुलभ व गुणवक्तायुक्त दवाइयां मिले। लेकिन यह तो तभी संभव है जब राज्य में इन सब पर निगरानी रखने वाले फार्मासिस्टों हेतु निगरानी काउंसिल अर्थात् झारखंड स्टेट फार्मेसी काउंसिल बने। अब यह राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वो इस गंभीर मसले को कितनी गंभीरता से लेती है और फार्मेसी काउंसिल के लिए नोटिफिकेशन कब जारी करती है।

पीसीआई अध्यक्ष बी.सुरेश से झारखंड के फार्मासिस्टों ने मिलकर काउंसिल बनाने की मांग रखी...
पीसीआई अध्यक्ष बी.सुरेश से झारखंड के फार्मासिस्टों ने मिलकर काउंसिल बनाने की मांग रखी…

देश में अगर कश्मीर को स्वर्ग का दर्जा मिला है, तो झारखंड को भी प्रकृति ने बखूबी सजाया व संवारा है। झारखंड की खूबसूरती की जितनी चर्चा की जाए कम ही है। झारखंड जैसे प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण राज्य का अगर स्वास्थ्य खराब हो अथवा करने की कोशिश की जाए तो यह निश्चित ही दुर्भाग्य की बात है। पिछले दिनों झारखंड को देखने-समझने का मौका मिला। सिंहभूम फार्मासिस्ट एसोसिएशन के बुलावे पर विश्व फार्मासिस्ट दिवस के उत्सव में सम्मिलित होने का मौका मिला था। 25 सितंबर को फार्मासिस्ट दिवस पूरे देश में मनाया गया। लेकिन जमशेदपुर के माइकल जॉन ऑडिटोरियम में 500 से ज्यादा फार्मासिस्टों के बीच जिस अंदाज में इस दिवस की सार्थकता प्रदान की गयी वह अतुलनीय है। स्टेट ड्रग कंट्रोलर रीतू सहाय, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि शैलेन्द्र शराफ, स्थानीय सीएमओ व एक्टिविस्ट फार्मासिस्टों के बीच से जो सबसे गंभीर मामला सामने आया वह था फार्मेसी काउंसिल ऑफ झारखंड का अभी तक गठन न हो पाना।  15 वर्ष बीत गए झारखंड को अस्तित्व में आए लेकिन अभी तक झारखंड की सरकार झारखंड स्टेट फार्मेसी काउंसिल का गठन नहीं कर पायी है। इसका नुक्सान झारखंड के फार्मासिटों को उठाना पड़ रहा है। कहने का मतलब यह है कि स्टेट फार्मेसी काउंसिल नहीं होने से पीसीआई द्वारा प्रत्येक स्टेट काउंसिल को दिए जाने वाला फंड नहीं मिल पा रहा है। इस बावत पीसीआई के प्रतिनिधि शैलेन्द्र शराफ ने स्वीकार भी किया कि पीसीआई समय-समय पर फार्मासिस्टों के विकास के लिए नई-नई योजनाएं लेकर आती है, जिसका फायदा झारखंड के फार्मासिस्ट नहीं उठा पा रहे हैं। इससे उनकी गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, जिसका नुक्सान राज्य को है।
25 सितंबर, विश्व फार्मासिस्ट दिवस पर जमशेदपुर में आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए विशिष्ट जन
25 सितंबर, विश्व फार्मासिस्ट दिवस पर जमशेदपुर में आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए विशिष्ट जन

इतना ही नहीं 2004 के बाद  झारखंड के जो फार्मासिस्ट बिहार स्टेट फार्मेसी काउंसिल में रजिस्टर्ड थे, उन्हें कहा गया कि आप चूकि झारखंड के हैं अतः आपके लाइसेंस का रिन्यूल झारखंड में ही  होगा। परन्तु विभाजन के दौरान फार्मासिस्टों को लेकर नीतिगत मामलों के बारे में सही गाइडलाइन न होने के कारण बहुत से फार्मासिस्टों ने अपना  रिन्यूवल झारखंड में भी कराया व बिहार में भी जारी रखा। अध्ययन से पता  चलता है कि चूंकि बिहार की सरकार बिहार स्टेट फार्मेसी काउंसिल में पंजीकृत फार्मासिस्ट को ही अपने यहां सरकारी नौकरी में जगह देती है। झारखंड में फार्मेसी काउंसिल नहीं होने के कारण फार्मासिस्ट अपने रोजगार को लेकर बहुत सशंकित थे अतः उनलोगों ने गैर कानूनी तरीके से दोनों ही जगह अपना रजिस्ट्रेशन रिन्यूवल करवाना जारी रखा, जो कि आज भी जारी है। इसका एक बड़ा नुक्सान तब हुआ जब कई फार्मासिस्टों ने अपना फार्मेसी  रजिस्ट्रेशन दवा दुकानों में रेंट पर लगाना दोनों ही राज्यों शुरू कर दिया। ऐसा नहीं है कि इस बात कि  जानकारी औषधि विभाग झारखंड अथवा बिहार को नहीं है, बावजूद इसके अपने नाक के नीचे उन्होंने गैरकानूनी कार्य को फलने-फूलने दिया। ऐसे में फार्मेसी एक्ट और रुल्स के मायने गूम हो गए।
यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि दवा के कारोबार में फार्मासिस्टों की भूमिका  बहुत अहम होती है। जिस तरह डॉक्टर मरीज का ईलाज करता है और उसे स्वस्थ करता है, उसी तरह फार्मासिस्ट दवा का ईलाज करता है और दवाइयों की सेहत का ख्याल रखता है। ऐसे में अगर फार्मासिस्ट समय-समय पर अपग्रेड नहीं होंगे तो उन्हें नई दवाइयों व सामयिक जानकारियां नहीं मिल पायेंगी। इस संदर्भ में यह आवश्यक हो जाता है कि झारखंड सरकार यथाशीघ्र झारखंड स्टेट फार्मेसी काउंसिल का गठन करे।
ऐसा  नहीं है कि यह मांग कोई नई है। इसको लेकर कई बार झारखंड के फार्मासिस्टों ने आंदोलन किए हैं। बीते कुछ महीनों में यह आंदोलन तेज हुआ है। और इसकी लपट दिल्ली तक जा पहुंची है। खबर तो यह भी है कि झारखंड के फार्मा एक्टिविस्ट विनय कुमार भारती दिल्ली में डेरा जमाए बैठे हैं। दिल्ली आते ही विनय भारती ने पूरे देश के फार्मासिस्टों को एकजुट कर पीसीआई का घेराव तक करा  दिया। ऐसे में अब पीसीआई पर भी बहुत दबाव है कि वह झारखंड स्टेट फार्मेसी काउंसिल के गठन कराने में तत्परता दिखाए।
2004 में झारखंड फार्मेसी स्टेट रजिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल का गठन यह सोचकर किया गया था कि शायद इससे राज्य के फार्मासिस्टों का कल्याण हो सके और राज्य में दवा वितरण का कार्य गुणवत्तापूर्वक किया जा सके। लेकिन यह ट्रिब्यूनल अपने स्थापना काल से ही राजनीति का शिकार हो गया है। इसकी कार्य-प्रणाली पर आए दिन सवाल उठते  रहते हैं। सबसे  रोचक  बात यह है कि फार्मेसी  काउंसिल ऑफ इंडिया की नज़र में भी इसका कोई महत्व नहीं है। विशहीन सर्प के समान कार्य कर रहा यह ट्रिब्यूनल  राज्य के स्वास्थ्य को सुधारने में कहीं कोई मदद नहीं कर पा रहा है। ऐसे में इस तरह के ट्रिव्यूनलों के होने का कोई औचित्य नहीं है।
झारखंड के साथ जितना अन्याय होता आया है, शायद ही किसी और राज्य के साथ हुआ हो। झारखंड के लोग तो यही चाहते हैं कि उनके स्वास्थ्य की जिम्मेदारी जिम्मेदार हाथों में हो, उन्हें सस्ती, सुलभ व गुणवक्तायुक्त दवाइयां मिले। लेकिन यह तो तभी संभव है जब राज्य में इन सब पर निगरानी रखने वाले फार्मासिस्टों हेतु निगरानी काउंसिल अर्थात् झारखंड स्टेट फार्मेसी काउंसिल बने। अब यह राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वो इस गंभीर मसले को कितनी गंभीरता से लेती है और फार्मेसी काउंसिल के लिए नोटिफिकेशन कब जारी करती है।
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