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अच्छा स्वास्थ्य मानव प्रगति  की आधारशिला है: प्रधानमंत्री

नई दिल्ली/
विश्व स्वास्थ्य दिवस पर देश के प्रधानमंत्री ने सभी देशवासियों को शुभकामनाएं प्रेषित की है। अपने शुभकाना संदेश में उन्होंने कहा है कि,  “अच्छा स्वास्थ्य मानव प्रगति  की आधारशिला है। इस विश्व स्वास्थ्य दिवस पर मैं शुभकामना देता हूं कि आप सभी पूर्ण रूप से स्वस्थ बने रहें और विकास की नयी ऊंचाइयों को पार करते रहें। उन्होंने आगे कहा कि मैं ‘सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा दायरा: सभी के लिये, सभी जगह’ विषय वस्तु का स्वागत करता हूं जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं अन्यों ने चुना है। सभी के लिये स्वास्थ्य सुरक्षा की तलाश ने ही हमें आयुष्मान भारत योजना बनाने के लिये प्रेरित किया जो कि विश्व में सबसे बड़ा स्वास्थ्य सुरक्षा कार्यक्रम है।”

गौरतलब है कि विश्वस्वास्थ्य संगठन ने इस विश्व स्वास्थ्य दिवस पर अपना थीम ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा सबके लिए’ रखा है। इस विषय पर विस्तृत जानकारी  प्रो. डॉ. राजेन्द्र सिंह राजपूत ने दी है। उसे नीचे दिया जा रहा है…यह कंटेट http://rashtriyahindimail.in से साभार है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा सबके लिए

विश्व के लगभग 172 देशों का संगठन जो पूरी दुनिया के स्वास्थ्य के प्रति सजग है और अपने सदस्य देशों में विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य संबंधित गतिविधियों हेतु मार्गदर्शन, सलाह, प्रशिक्षण, अनुसंधान हेतु कार्य करता है, जिसेस उस देश का समग्र विकास हो सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने स्थापना दिवस 7 अप्रैल 1948 से प्रति वर्ष वैश्विक स्वास्थ्य जागृति दिवस मनाता है। इस साल डब्ल्यूएचओ की 70 वीं सालगिरह है। प्रति वर्ष डब्ल्यूएचओ एक थीम देता है जिस पर गतिविधियां आधारित होता है, इस वर्ष की थीम है सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा सबके लिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य है पूरी दुनिया के लोगों के लिए एक बेहतर स्वस्थ भविष्य का निर्माण। इस कार्य में कार्यालयों के 170 से अधिक देशो के कर्मचारी और सरकारों के साथ अन्य संघठन भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। यह सामूहिक प्रयास है – हर तरह के संक्रामक रोगों जैसे- इन्फ्लूएंजा , एचआईवी, इबोला और असंक्रामक रोगों जैसे- कैंसर,डायबिटीज, हृदय रोग आदि से बचाव और उपचार का। यह माताओं और बच्चों को जीवित रखने का प्रयास करते हैं ताकि वे कामयाब स्वस्थ व्यक्ति बनें। विश्व स्वास्थ्य संगठन सुनिश्चित करना चाहता है कि लोग स्वस्थ हवा में साँस ले, स्वास्थ्यवर्धक खाद्यपदार्थ लें, सुरक्षित पानी पीये और दवाओं तथा टीकाकरण को सुनिश्चित करें। डब्ल्यूएचओ के 6 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जिसमें से दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र का ऑफिस नई दिल्ली में और इसका मुख्य कार्यालय जेनेवा में है।
आज स्वास्थ्य संबंधी हमारी चुनौतियां इतनी सरल नहीं रहीं जितनी दो-ढाई दशक पहले थीं। सबसे बड़ा अंतर आज यह है कि भारत अब बेहद गरीब देश नहीं रहा है। अब हम तेजी से विकासशील और विकसित दुनिया की वास्तविकताओं के बीच में फंस रहे हैं- उच्च रक्तचाप, मधुमेह के साथ-साथ मलेरिया, जापानी बुखार (इन्सेफलाइटिस), डेंगू जैसी बीमारियां फैल रही हैं। कुपोषण के आंकड़े हमें दुनिया में सबसे कमजोर देशों में रखते हैं जबकि मधुमेह की दरें अमेरिका से ज्यादा हैं। जहां टेढ़ी टांगों और पिचके पेटों के साथ एक तिहाई बच्चे बुरी तरह कुपोषण के शिकार हैं, वहीं हमारे शहरों में मोटापा एक नई महामारी के रूप में उभर रहा है। ज्यादातर मानव समुदाय- धनी और बेहद गरीब, ग्रामीण और शहरी- स्वास्थ्य की एकदम भिन्न चुनौतियों से जूझ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में हमारी स्वास्थ्य सेवाएं सबसे बदतर हालत में हैं। प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक महिलाएं प्रसव के दौरान मौत के मुंह में चली जाती हैं।
आज भी अधिकांश ग्रामीण भारत किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य सेवा से पूरी तरह अछूता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी दखल अब भी महामारी से संबंधित कार्यक्रमों, टीकाकरण और परिवार नियोजन तक सीमित है। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि साबुन का प्रयोग, पानी उबालने जैसे स्वास्थ्य जागरूकता के बुनियादी मुददों को उठाने के कार्यक्रम सरकार और गैर-सरकारी संगठनों ने चलाए हैं। पचासी प्रतिशत से भी अधिक मरीज अपने स्वास्थ्य के लिये निजी स्वास्थ्य सेवाओं को चुनते हैं।
इलाज का खर्च अब दूसरा सबसे बड़ा कारण है कि ग्रामीण भारत के लोग कर्जदार हैं। निजी स्वास्थ्य सेवाओं की ओर इस रुझान ने हमें दुनिया की अकेली ऐसी अर्थव्यवस्था बना दिया है, जहां स्वास्थ्य पर सरकार की तुलना में निजी क्षेत्र ज्यादा खर्च कर रहा है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमारे सार्वजनिक और निजी व्यय का अनुपात 1.4 है।
यह पाकिस्तान से भी बदतर है जो कि इस क्षेत्र में कोई खास सफल नहीं है, वहां का अनुपात 1.3 का है। देश में स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण हमारे राजनीतिक वर्ग में इस अहसास का जोर पकडऩा है कि स्वास्थ्य सेवा सामान्यत: मतदाताओं के लिए कोई प्राथमिकता नहीं है। यह 1978 की अल्मा-अल्टा घोषणा के अनुमोदन से कदम पीछे खींचना था, जिसमें 2000 के अंत तक सबके लिए स्वास्थ्य की शपथ तो ली गई थी, और स्वास्थ्य सेवा के अपने वादों में इसने न तो व्यापक और न ही सबके लिए जोड़ा था। स्वास्थ्य सेवा तक प्रभावी पहुंच में एक बड़ी चूक अब भी यही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों के बाहर कम खर्च वाले चिकित्सीय विकल्प उपलब्ध नहीं हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की संख्या दयनीय रूप से प्रति हजार लोगों पर 0.6 है, जबकि शहरी क्षेत्र में 3.9 है।
देश के सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ 4.2 फीसद चिकित्सा सेवा पर खर्च होता है। भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के शोध, अनुसंधान और विकास पर विशेष ध्यान देने और पुरातन पद्धतियों से सेहत सुधार के लिए जिलों में आयुष केंद्र खोलने का फैसला किया गया है।
(लेखक शासकीय एल बी एस एच मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग में विभागाध्यक्ष हैं)
 

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