स्वास्थ्य की बात गांधी के साथ वेब सीरीज का खंड-9 में अमित त्यागी गांधी के राम के स्वरूप एवं उसका स्वास्थ्य संबंध को रेखांकित कर रहे हैं।
मैं कुदरती इलाज़ का ऐसा तरीका खोजने की कोशिश कर रहा हूँ जो हिंदुस्तान के करोड़ों गरीबों को फायदा पहुचा सके। इस इलाज़ से मनुष्य में कुदरतन ये बात समझ आ जाती है कि दिल से भगवान का नाम लेना ही सारी बीमारियों का सबसे बड़ा इलाज़ है। इस भगवान को हिंदुस्तान मे कुछ करोड़ लोग राम के नाम से जानते हैं और दूसरे कुछ करोड़ अल्लाह के नाम से पहचानते हैं। “रघुपति राघव राजाराम” राम धुन एक ऐसा माध्यम है जो निरोगी काया का रामबाण अचूक इलाज़ है।-महात्मा गांधी
अमित त्यागी
गांधी के राम मूर्ति मे बैठे राम नहीं हैं। इस बात को वह स्पष्ट करते हैं कि मैं खुद मूर्तियों को नहीं मानता, मगर मैं मूर्ति पूजकों की भी उतनी ही इज्ज़त करता हूँ जितनी औरों की। जो लोग मूर्तियों को पूजते हैं, वे भी उसी एक भगवान को पूजते हैं, जो हर जगह है, जो उंगली से कटे हुये नाखून में भी है। मेरे एक मुसलमान दोस्त हैं, जिनके नाम रहीम, रहमान, करीम हैं। जब मैं उन्हे रहीम, करीम और रहमान कहकर पुकारता हूँ, तो क्या मैं उन्हे खुदा मान लेता हूं। राम के नाम को गांधी जी ने धर्म की सीमाओं से परे वर्णित किया।
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इसका उद्वारण उनके द्वारा हरिजन सेवक में 28-04-1946 को लिखे लेख मे मिलता है जिसमें उन्होंने लिखा है- जब कोई ये ऐतराज उठाता है कि राम का नाम लेना या राम धुन गाना सिर्फ हिन्दुओं के लिए है, मुसलमान उसमें किस तरह शरीक हो सकते हैं, तब मुझे मन ही मन हंसी आती है। क्या मुसलनामनों का भगवान हिन्दुओं, पारसियों या इसाइयों के भगवान से जुदा है ? नहीं, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ईश्वर तो एक ही है। उसके कई नाम है, और उसका जो नाम हमें सबसे ज़्यादा प्यारा होता है, उस नाम से हम उसको याद करते हैं। गांधी आगे लिखते हैं-मेरा राम, हमारी प्रार्थना के समय का राम, वह एतेहासिक राम नहीं है जो दशरथ का पुत्र और अयोध्या का राजा था। वह तो सनातन, अजन्मा और अद्वितीय राम है। मैं उसी की पूजा करता हूं। उसी की मदद चाहता हूं। आपको भी यही करना चाहिए। वह समान रूप से सब किसी का है। इसलिए मेरी समझ में नहीं आता कि क्यों किसी मुसलमान को या दूसरे किसी को उसका नाम लेने मे ऐतराज होना चाहिए? लेकिन यह कोई जरूरी नहीं कि वह राम के रूप मे ही भगवान को पहचाने-उसका नाम लें। वह मन ही मन अल्लाह या खुदा का नाम भी इस तरह जप सकता है, जिससे उसमें बेसुरापन न आवे।
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हिन्दी नवजीवन के 6 अक्तूबर 1927 को प्रकाशित अपने लेख मे महात्मा गांधी कहते हैं कि हमें शरीर के बदले आत्मा के चिकित्सकों की जरूरत है। अस्पतालों और डाक्टरों की वृद्धि कोई सच्ची सभ्यता की निशानी नहीं है। इस विचार के बीस साल बाद 15 जून 1947 को हरिजन सेवक के अंक मे गांधी जी कहते हैं कि आपको यह जानकार खुशी होगी कि चालीस साल पहले जब मैंने कुने की “न्यू साइंस ऑफ हीलिंग” और जस्ट की “रिटर्न टू नेचर” नाम की किताबें पढ़ी, तभी से कुदरती इलाज़ का पक्का हिमायती हो गया था लेकिन मुझे यह कबूल करना चाहिए कि तब मैं “रिटर्न टू नेचर” का पूरा अर्थ नहीं समझ सका था। अब मैं कुदरती इलाज़ का ऐसा तरीका खोजने की कोशिश कर रहा हूँ जो हिंदुस्तान के करोड़ों गरीबों को फायदा पहुचा सके। इस इलाज़ से मनुष्य में कुदरतन ये बात समझ आ जाती है कि दिल से भगवान का नाम लेना ही सारी बीमारियों का सबसे बड़ा इलाज़ है। इस भगवान को हिंदुस्तान मे कुछ करोड़ लोग राम के नाम से जानते हैं और दूसरे कुछ करोड़ अल्लाह के नाम से पहचानते हैं। “रघुपति राघव राजाराम” राम धुन एक ऐसा माध्यम है जो निरोगी काया का रामबाण अचूक इलाज़ है।
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नोटः महात्मा गांधी ने जितने भी प्रयोग किए उसका मकसद ही यह था कि एक स्वस्थ समाज की स्थापना हो सके। गांधी का हर विचार, हर प्रयोग कहीं न कहीं स्वास्थ्य से आकर जुड़ता ही है। यहीं कारण है कि स्वस्थ भारत डॉट इन 15 अगस्त,2018 से उनके स्वास्थ्य चिंतन पर चिंतन करना शुरू किया है। 15 अगस्त 2018 से 2 अक्टूबर 2018 के बीच में हम 51 स्टोरी अपने पाठकों के लिए लेकर आ रहे हैं। #51Stories51Days हैश टैग के साथ हम गांधी के स्वास्थ्य चिंतन को समझने का प्रयास करने जा रहे हैं। इस प्रयास में आप पाठकों का साथ बहुत जरूरी है। अगर आपके पास महात्मा गांधी के स्वास्थ्य चिंतन से जुड़ी कोई जानकारी है तो हमसे जरूर साझा करें। यदि आप कम कम 300 शब्दों में अपनी बात भेज सकें तो और अच्छी बात होगी। अपनी बात आप हमें forhealthyindia@gmail.com पर प्रेषित कर सकते हैं।