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जानिए किस तरह लूटते हैं दिल्ली के बड़े अस्पताल…

  • मेडिकल निग्लीजेंस के मामले में दिल्ली के शालिमारबाग स्थित मैक्स अस्पताल का लाइसेंस हुआ था रद्द अब बहाल
  • जीवित मरीज को बताया था मृत
  • दिल्ली सरकार ने लिया बड़ा फैसला फिर पलटी
  • आएमए ने किया विरोध
  • गुरुग्राम फोर्टिज पर भी गिर सकती है गाज, जांच के दायरे में अस्पताल
  • बसंतकुंज फोर्टिज भी घेरे में, 36 घंटे में पांच बार प्लेटलेट्स की जांच और 5 के आरोही क्रम में बढ़ते रहे प्लेटलेट्स, 30 हजार प्लेटलेट्स पर ही मरीज को किया डिसचार्ज

  • यह वहीं अस्पताल है, जहां जीवित बच्चे को मृत घोषित किया गया था…

 
आशुतोष कुमार सिंह
दिल्ली के मैक्स, गुरुग्राम एवं बसंतकुंज के फोर्टिज अस्पताल, सरिता बिहार के अपोलो अस्पताल सहित देश की राजधानी के कई नामचीन अस्पतालों की सच्चाई लोगों के पास आनी शुरू हो गई है। जनता जागी तो सरकारों के कान भी बजने लगे हैं। सरकार भी इन अस्पतालों के खिलाफ कमर कस चुकी है। इसी कड़ी में बीते दिसंबर को दिल्ली सरकार ने मेडिकल निग्लीजेंस के मामले में दिल्ली के शालिमारबाग स्थित मैक्स अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने का फैसला लिया।  इस फैसले ने पूरी मेडिकल क्षेत्र में हो रही लापरवाही एवं लूट के मामले को देश की मुख्यधारा मीडिया में ला दिया है। हालांकि बाद में अस्पताल का लाइसेंस बहाल कर दिया गया। यह बहाली भी कटघरे में ही है।
मैक्स अस्पताल का पक्ष
मैक्स हेल्थकेयर अस्पताल समूह के अधिकारियों ने दिल्ली सरकार द्वारा उनका लाइसेंस रद्द करने के कुछ घंटे बाद एक बयान जारी किया गया। इसमें उन्होंने कहा कि हमें अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया। बयान में कहा गया कि ‘हमें मैक्स अस्पताल, शालीमार बाग का लाइसेंस रद्द करने का नोटिस मिला है। हमारा मजबूती से मानना है कि यह फैसला कठोर है।’ अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि ‘हमारा मानना है कि अगर यह फैसले को लेकर व्यक्तिगत भूल भी है तो अस्पताल को जिम्मेदार ठहराना अनुचित है। इससे मरीजों के इलाज के अवसर सीमित होंगे। यह राष्ट्रीय राजधानी में अस्पताल सुविधा में कटौती भी करेगा।’
नवजात शिशु मामले में कोताही बर्दाश्त नहीः सत्येन्द्र जैन, स्वास्थ्य मंत्री, दिल्ली सरकार

सत्येन्द्र जैन, स्वास्थ्य मंत्री, दिल्ली सरकार

 दिल्ली सरकार ने इस मामले को गंभीर मानते हुए मैक्स का लाइसेंस रद्द कर दिया। इस बावत स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने कहा कि, ‘हमने हॉस्पिटल को आपराधिक लापरवाही बरतने का दोषी पाया है। हॉस्पिटल की यह पहली गलती नहीं है। ऐसा करना उसकी आदत में शुमार हो चुका है। लिहाजा मैक्स हॉस्पिटल का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाता है। नवजात शिशु की मौत मामले में लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं की जा सकती है।’ वहीं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा कि ‘हमारी सरकार निजी अस्पतालों द्वारा ‘खुली लूट और आपराधिक लापरवाही’ को बर्दाश्त नहीं करेगी। सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों क्षेत्रों को लेकर ‘बहुत संवेदनशील’ है।’
 
नवजात की मौत: आईएमए ने कहा, मैक्स अस्पताल का लाइसेंस रद्द करना बहुत कठोर कदम
के के अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष आइएमए, दिल्ली

भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) ने शुक्रवार (8 दिसंबर) को दिल्ली सरकार द्वारा शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने को ‘बहुत कठोर कदम’ बताया और कहा कि जांच में ‘दोषी पाए गए लोगों के खिलाफ’ कार्रवाई शुरू होनी चाहिए। आईएमए से जुड़े और हृदय रोग विशेषज्ञ के के अग्रवाल ने कहा कि ‘सरकार का फैसला ‘समाज के हित में नहीं’ है। एक डॉक्टर के स्तर की गलती के लिए अस्पताल का लाइसेंस रद्द नहीं किया जाना चाहिए।’ हालांकि बाद में सरकार ने अपने इस फैसले को वापस ले लिया है। सरकार के इस फैसले से दिल्ली की जनता में नाराजगी है।
क्या था पूरा मामला
30 नवंबर को दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल ने जीवित बच्चों को मृत घोषित कर दिया था तथा शव को प्लास्टिक के थैले में भरकर परिजनों को दे दिया था। इसके बाद परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने मामले कोदर्ज तक नहीं किया था। यह मामला मेडिकल की लीगल सेल को फॉरवर्ड कर दिया गया था। इसके बाद परिजनों ने हॉस्पिटल में जमकर हंगामा किया।
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यह है फोर्टिज अस्पताल का सच है!
अस्पतालों की लापरवाही एवं लूट का मामला यहीं पर नहीं थम गया। एक घटना हरियाणा के गुरुग्राम में घटित हुआ। अपने आप का बड़ा ब्रांड कहने वाले फोर्टिज अस्पताल के गुरुग्राम अस्पताल ने 7 साल की एक बच्ची का डेंगू के ईलाज के नाम पर 16 लाख रुपये का बिल बनाया।
क्या है पूरा मामला
जयंत सिंह एवं उनकी बेटी आद्या

दिल्ली के द्वारका में रहने वाले जयंत सिंह की सात साल की बेटी आद्या को 27 अगस्त से तेज बुखार था। दूसरे ही दिन उसे रॉकलैंड अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां दो दिन भर्ती रहने के बाद उन्होंने गुड़गांव के फोर्टिस अस्पताल में रेफर कर दिया। डॉक्टरों ने बच्ची को अगले दस दिन लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा। 14 सितंबर को बच्ची की मौत हो गई। इस बावत बच्ची के पिता जयंत सिंह के एक दोस्त ने @DopeFloat नाम के हैंडल से 17 नवंबर को हॉस्पिटल के बिल की कॉपी के साथ ट्विटर पर पूरी घटना शेयर की। जिसमें उन्होंने लिखा कि, ”मेरे साथी की 7 साल की बेटी डेंगू के इलाज के लिए 15 दिन तक फोर्टिस हॉस्पिटल में भर्ती रही। हॉस्पिटल ने इसके लिए उन्हें 16 लाख का बिल दिया। इसमें 2700 दास्ताने और 660 सीरिंज भी शामिल थीं। आखिर में बच्ची की मौत हो गई।”  अगले चार दिनों में यह खबर आग की तरह फैल गई इस पोस्ट को 9000 से ज्यादा यूजर्स ने रिट्वीट किया। इसके बाद हेल्थ मिनिस्टर जेपी नड्डा ने हॉस्पिटल से रिपोर्ट मांगी। और इस तरह अस्पतालों की लूट का एक नया अध्याय लोगों के सामने आया।
फोर्टिज मामले में एफआईआर
गुड़गांव के फोर्टिस अस्पताल में बच्ची की डेंगू से मौत के बाद इलाज में 16 लाख रुपये वसूलने के मामले में पुलिस ने दर्ज एफआईआर में फोर्टिस अस्पताल के खिलाफ भी एक धारा जोड़ दी है। सुशांत लोक थाने में दर्ज एफआईआर में धारा- 188 भी जोड़ी गई है। इससे पहले दर्ज एफआईआर में अस्पताल के डॉक्टर के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विकास वर्मा को मुख्य रूप से आरोपी बनाया गया था। फोर्टिस मैनेजमेंट पर कोई धारा नहीं जोड़ी गई थी। इस पर स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कड़ी आपत्ति जताई थी। इसके बाद अब पुलिस ने धारा जोड़ दी है।
पिता ने कहा था कोर्ट जाऊंगा मैं..
अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ मामला दर्ज नहीं होने पर आद्या के पिता जयंत सिंह ने कहा था कि यदि अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ मामला दर्ज नहीं होता है तो वह कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। हालांकि जयंत कोर्ट जाते इससे पहले ही पुलिस ने मामले में नई धारा जोड़ दी है।
लीज रद्द करने पर भी चल रही है जांच
अनिल विज, स्वास्थ्य मंत्री, हरियाणा सरकार

हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज द्वारा हरियाणा अर्बन अथॉरिटी को पत्र लिखकर फोर्टिस अस्पताल की लीज रद्द करने को कहा था। इस पर अर्ब अथॉरिटी ने जांच शुरू कर दी है। बता दें कि इस मामले में हाईकोर्ट ने भी डीजी हैल्थ से रिपोर्ट मांगी थी और स्वास्थ्य मंत्री ने भी कड़ा संज्ञान लिया था। विज ने तो इसे मर्डर करार दिया था। उन्होंने कहा था कि 14 दिन तक जो बच्ची वेंटीलेटर पर रहती है, शिफ्ट करते वक्त उसका वेंटिलेटर उतार दिया जाता है। एंबुलेंस में ऑक्सीजन की सुविधा नहीं दी जाती, उसको अगले अस्पताल में जाने के लिए अटेंडेंट नहीं दिया जाता, एंबु बैग नहीं दिया जाता। यह मर्डर नहीं तो और क्या है ? मरीज को नहीं मालूम कि वह अगले अस्पताल तक नहीं पहुंच सकता तो इसके लिए दोषी कौन है ?
आद्या को न्याय दिलाएंगे एसपी अनिल यादव
पुलिस अधीक्षक, गुरुग्राम

हरियाणा सरकार ने फोर्टिज अस्पताल में आद्या की हुई मौत के मामले की जांच के लिए एसीपी अनिल यादव की अगुवाई में एक एसआईटी टीम का गठन किया है। मामले से जुड़े जितने भी डॉक्टर एवं प्रबंधन पक्ष के लोग हैं, सभी से पूछताछ की जाएगी। जिसकी भी भूमिका नजर आएगी, सभी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लेकिन देखना यह है कि सही अर्थों में न्याय कब मिल पाता है।
 
 
एनपीपीए ने कहा 1700 फीसद ज्यादा वसूला गया
दवाइयों के मूल्य को निर्धारण करने वाली सरकारी निकाय नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग ऑथोरिटी ने फोर्टिज अस्पताल की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। अपनी रिपोर्ट एनपीपीए ने मुनाफा सूची जारी किया है। 96 दवा/ सर्जीकल्स की सूची में एनपीपीए ने कहा है कि अस्पताल प्रशासन ने आद्या के पिता से 1737 फीसद तक मुनाफा कमाया है।
एनपीपीए की रिपोर्ट के मुताबिक, 5.77 रुपये के एक थ्रीवे स्टॉप कॉक के लिए मरीज के बिल में 106 रुपये चार्ज किया गया। इस आइटम पर अस्पताल ने 1737 प्रतिशत मुनाफा वसूला। अस्पताल ने वेंटिलेटर सर्किट 46,614.40 रुपये में खरीदा, लेकिन मरीज से 66,305 रुपये लिए। अस्पताल ने सिर्फ इस एक आइटम पर 19,690.60 रुपये का लाभ लिया। रिपोर्ट से साफ है कि मरीज से एक-एक आइटम पर 20-20 हजार रुपये का फायदा लिया गया। महंगे आइटम पर कई हजार ज्यादा वसूल किया गया। सीआरआरटी किट जिसे अस्पताल ने 8,033.20 रुपये में खरीदा था, उसके लिए बिल में 21,745.00 रुपये जोड़ा गया। इस आइटम पर 13 हजार से अधिक का मुनाफा लिया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, नॉन शेड्यूल्ड दवाओं पर 900 प्रतिशत से अधिक जबकि शेड्यूल्ड दवाओं पर 300 प्रतिशत अधिक चार्ज किया गया। इलाज के दौरान कई तरह के ग्लव्ज का इस्तेमाल किया गया था। बिल में हर ग्लब्ज की कीमत और उसके मार्जिन में अंतर काफी ज्यादा है। एक छोटे साइज के ग्लब्ज, जिसकी कीमत सिर्फ 1.49 रुपये थी उसके लिए बिल में 9.50 रुपये चार्ज किया गया।
ध्यान देने वाली बात यह है कि एनपीपीए ने अधिक बिल देने के लिए फोर्टिस अस्पताल को नोटिस जारी किया था। उससे बच्ची के परिजनों को दिए गए बिल, दवाओं के नाम, दवाओं की मात्रा और उनकी कीमत की कॉपी मांगी गई थी। इसके आधार पर एनपीपीए ने रिपोर्ट जारी की है। तालिका 1 देखें।

आइटम आइटम्स खरीद प्रति यूनिट (रुपये में) बिलिंग रेट (रुपये में) मार्जिन (रुपये में)
 
वेंटिलेटर सर्किट 46,614.40 66,305.00 19,690.60
 
सीवीसी किट 3,026.10 5,650.00 2,623.90
 
डायलिसिस ट्यूबिंग 2,537.00 6,240.00 3,703.00
 
सीआरआरटी किट 8,033.20 21,745.00 13,711.80
 
डायलाइजर सेट विदाउट ट्यूबिंग 2,800.00 9,750.00 6,950.00
 
होम्योफील्टर डाइलाइजर 2,912.00 9,862.00 6,950.00
 

तालिका-1 एनपीपीए द्वारा जारी मार्जिन रिपोर्ट पर आधारित
 
फोर्टिज के ने क्रिमनल ऑफेंस किया हैः अनिल बिज, स्वास्थ्य मंत्री, हरियाणा सरकार
फोर्टिज निग्लीजेंस किया है। वेंटीलेटर हटाना निग्लीजेंस ही है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि वेंटिलेटर विडॉल कर लिया गया था, यह क्रिमनल ऑफेंस है। प्लेटलेट्स चढ़ाने में भी ओवरचार्जिंग की गई है। 400 रुपये की जगह 2000रुपये लिया गया है। ऐसे में अस्पताल की लिज रद्द हो सकती है।
यह घटना दुखद हैःफोर्टिज अस्पताल- फोर्टिज अस्पताल ने अपनी संवेदना जाहिर करते हुए कहा कि है कि आद्या की मौत दुखद, सरकार की चार सदस्यीय समिति की जांच का इंतजार है। पीड़ित बच्ची को बचाने का हर मुम्मकिन कोशिश हमने की थी। बचा नहीं पाएं।
 
पथरी के लिए 40 लाख रुपये का बिल

इनको थमाया गया 40 लाख का बिल

लगता है कि फोर्टिज अस्पताल के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। अभी आद्या का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि एक पुराना मामला सामने आ गया है। इस नए विवाद के मुताबिक एक 60 वर्षीय बुजुर्ग की किडनी में पथरी के लिए इलाज में कोताही बरतते हुए न केवल दोनों पैरों से अपाहिज बना दिया, बल्कि उससे 36 लाख रुपए का बिल लेने का मामला सामने आया है। पीड़ित के परिजन अन्य ग्रामीण पिछले दिनों इसकी शिकायत की है। गांव दौलताबाद निवासी पीड़ित के भाई रामनिवास ने बताया कि अप्रैल 2016 में छोटे भाई भीम सिंह को पथरी के इलाज के लिए गुड़गांव के पार्क अस्पताल में एडमिट कराया था। वहां इलाज में आराम नहीं होने पर उन्हें फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल ने उन्हें पथरी के मामूली इलाज के लिए 36 लाख रुपए का बिल थमा दिया, जिसमें से उन्होंने 23 लाख रुपए का भुगतान कर भी दिया। इसके बावजूद उनकी पथरी ठीक नहीं हुई और इलाज में लापरवाही के कारण भीम सिंह के दोनों पैर खराब हो गए।  इसके बाद से वो पूरी तरह बेड पर हैं। रामनिवास के मुताबिक जब उनके भाई भीम सिंह को अस्पताल लाए थे तब पथरी 14 एमएम की थी और आज वही पथरी बढ़कर 18 एमएम की हो गई।  इधर सीएमओ डॉ. बीके राजौरा ने परिजनों से कहा है कि वे पूरे केस से जुड़े सभी दस्तावेज की फाइल बनाकर उन्हें दें, केस स्टडी करने के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि इसके पूर्व की इस मामले की जांच तीन सदस्यीय कमेटी कर चुकी है। सिविल अस्पताल के एसएमओ ने मीडिया को बताया है कि परिजनों ने शिकायत सीएमओ से की है तो वे मामले को ऑडिट कराने के लिए सरकार के पास प्रस्ताव भेज सकते हैं।
 

24 घंटे में 500 फीसद प्लेटलेट्स काउंट बढ़ गया!

 

  • यह मामला दिल्ली के बसंतकुंज स्थित फोर्टिज अस्पताल का है!
  • 25 सितंबर,2017 को मैक्स ने बताया 1 लाख 50 हजार प्लेटलेट्स काउंट
  • 28 सितंबर,2017 को फोर्टिज ने बताया 10 हजार प्लेटलेट्स काउंट
  • 36 घंटे में पांच बार प्लेटलेट जांच हुआ, क्रमशः 10,15,20,25 और 30 के क्रम में प्रत्येक रिपोर्ट में प्लेटलेट् काउंट को बढ़ते हुए दिखाया गया
  • 30 हजार प्लेटलेट्स काउंट पर ही अस्पताल प्रशासन ने मरीज को डिसचार्ज कर दिया
  • डेंगू के ईलाज में दवाई पर आया 520 रुपये का खर्च और बाकी बिल 67000 रुपये का
  • मरीज के पति ने दिल्ली के मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है, मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में अस्पताल पर लूटने का लगाया आरोप  

 
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 1 अक्टूबर 2017 दोपहर 3 बजकर 48 मिनट पर बिदुर भारती ने शिकायती मेल किया। यह मेल दिल्ली स्थिति बसंतकुंज फोर्टिज के खिलाफ थी। 3 अक्टूबर को उस मेल को स्वास्थ्य मंत्रालय को अग्रसारित कर दिया गया। 12 अक्टूबर, 2017 को स्वास्थ्य मंत्री के ओएसडी ने बिदुर भारती को एक मेल भेजा जिसमें कहा गया कि आपकी शिकायत को उचित कार्रवाई के लिए अग्रसारित कर दिया गया है। इस मामले में सरकार क्या कर रही है, इसका पता पिछले ढाई महीने में बिदुर भारती को नहीं बताया गया है।
क्या है फोर्टिज बसंत कुंज का मामला

इस अस्पताल का लैब कटघरे में है…

टेबल संख्या एक को ध्यान से देखिए। 36 घंटे 53 मिनट में फोर्टिज अस्पताल ने पांच बार प्लेटलेट का जाँच कराया है। 28.9.17 को पहला टेस्ट हुआ जिसमें प्लेटलेट काउंट 10 यानि 10 हजार बताया गया। आंठ घंटे बाद दूसरा टेस्ट हुआ उसमें 15 हजार, 5 घंटे 43 मिनट बाद तिसरा टेस्ट हुआ उसमें 20 हजार बताया गया। उसके बाद 14 घंटे 28 मिनट बाद चौथा टेस्ट कराया गया जिसमें प्लेटलेट की संख्या बढ़कर 25 हजार हो गई। इसके 8 घंटा 42 मिनट बाद पांचवा टेस्ट कराया गया जिसमें 30 हजार प्लेटलेट काउंट बताया गया। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि फोर्टिज एसआरएल की जाँच रिपोर्ट में पांच-पांच हजार के रेसियों से प्लेटलेट काउंट बढ़ते हुए क्रमशः दिखाया गया। इस रिपोर्ट को जांच करने वाली डॉ.मुग्धा टपडिया हैं। कमाल की बात यह भी है कि दूसरे और चौथे टेस्ट के लिए सैंपल लेने का समय दर्ज तक नहीं किया गया है।
मधुलिका की डिसचार्ज रिपोर्ट देखिए डॉक्टर ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि डिसचार्ज के समय प्लेटलेट 30 हजार हो गया है। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि 30 हजार प्लेटलेट होने पर कोई अस्पताल मरीज को डिसचार्ज कैसे कर सकता है। जबकि यह सीमा तो डेंजर जोन में ही आती है। इसका क्या मतलब निकाला जाए। तालिका-2 देखें।
इतना ही नहीं 28 सितंबर को बसंतकुंज फोर्टिज में भर्ती होने के पूर्व 25 सितंबर,2017 को शालिमार बाग मैक्स में कराए गए जांच रिपोर्ट में डॉ. शक्ति जैन 1 लाख 50 हजार प्लेटलेट्स काउंट बताया था। तो क्या महज दो दिनों में 1लाख 40 हजार प्लेटलेट्स कम होकर 10 हजार बच गए! यह एक बड़ा सवाल है। चौकाना वाला तथ्य यह है कि 30 सितंबर,2017 को फोर्टिज से डिसचार्ज होने के बाद 1 अक्टूबर को मधुलिका के पति बिदुर भारती ने उनका प्लेटलेट्स को डॉ.लाल पैथ में जाँच कराया। डॉ. लाल पैथ की रिपोर्ट और चौकाने वाली थी। उस रिपोर्ट में प्लेटलेट्स काउंट 1 लाख 40 हजार बताया गया। यह बढ़ोतरी चौकाने वाली थी। बिदुर भारती ने इस बात का जिक्र सीएम केजरीवाल को लिखे अपने शिकायती पत्र में भी किया है। आखिर कैसे 24 घंटे में प्लेटलेट्स 500 फीसद तक बढ़ सकता है। इसका मतलब कहीं यह तो नहीं कि अस्पताल प्रशासन ने जान-बूझ कर धन कमाने के लिए झूठी रिपोर्ट दी और मरीज को लूटा! हालांकि यह जाँच का विषय है फिर भी जो सामने है उससे यह तो तय है कि जिस डेंगी बीमारी के लिए दवाई पर महज 520 रुपये खर्च हुआ, बाकी मद मिलाकर मरीज को 67000 रुपये का बिल देना पड़ा। यहां पर भी प्लेटलेट्स प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर 11000 रुपये प्रति यूनिट तथा डोनर काउंसिलिंग के नाम पर 3500 रुपये लिए गए। मुख्यमंत्री केजरीवाल को लिखे अपने पत्र में जैसा कि बिदुर भारती ने लिखा हैं कि एक यूनिट प्लेटलेट्स चढ़ाया गया, लेकिन उनसे 2 यूनिट का पैसा वसूला गया। इस बारे में जब उन्होंने प्रशासन से बात की तो प्रशासन ने बात को घुमाने का प्रयास किया। यह मामला जब लेखक को मालूम चला तो उन्होंने प्रशासन से बात की। प्रशासन किसी तरह एक यूनिट का पैसा लौटाने के लिए तैयार हुआ। इस बावत लेखक ने फोर्टिज अस्पताल से लिखित जवाब मांगा। कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन हेड अजय मेहराज की ओर से जो जवाब आया है, उससे उनके अस्पताल की गैर-जिम्मेदाराना रवैया का पता खुद-ब-खुद चलता है। गरीबों के ईलाज के नाम पर वे लेखक को सरकार से रिपोर्ट मांगने को कह रहे हैं। उन्होंने अंग्रेजी में जवाब दिया है उसे आप भी पढ़ें।
प्लेटलेट्स काउंट का खेल एवं फोर्टिज बसंतकुंज ई-मेल
 
Dear Ashutosh, प्रिय आशुतोष
 
Response to your queries below: (आपके सवालों के जवाब नीचे दिए जाए रहे हैं।)
 
प्रश्न 1
आपके यहां प्लेटलेट्स चढ़ाने का कितना चार्ज किया जाता हैं।
फोर्टिज बसंतकुंज का जवाब -The Hospital does not charge for transfusion of platelets. (प्लेटलेट चढ़ाने का चार्ज अस्पताल नहीं लेता है।)
प्रश्न-2
आपके यहां प्लेटलेट्स प्रोसेसिंग का कितना चार्ज किया जाता हैं।
फोर्टिज बसंतकुंज का जवाब -The processing charge for the platelets is Rs 11,000/-। (प्लेटलेट चढ़ाने का प्रोसेसिंग चार्ज 11000 रुपये है।)
प्रश्न-3 किसी डेंगू के मरीज को कब डिसचार्ज किया जाता है यानी कितना प्लेटलेट्स की संख्या पर आप मानते हैं की मरीज को डिसचार्ज किया जा सकता है?
फोर्टिज बसंतकुंज का जवाब -When patient is stable with no medial complaints and platelets counts shows increase trends. (जब मरीज की स्थिति स्टेबल हो जाती है, कोई भी मेडिकल समस्या नहीं होती है और प्लेटलेट्स काउंट बढ़ते हुए क्रम में दिखते हैं।)
प्रश्न-अगर आपके डॉक्टर दो यूनिट प्लेटलेट्स मंगाते हैं और एक यूनिट चढ़ाते हैं तो कितना यूनिट प्लेटलेट्स का चार्ज किया जाता हैं। दोनों यूनिट या एक यूनिट का।
फोर्टिज बसंतकुंज का जवाब-The hospital takes processing charge for the platelets not for transfusion. (अस्पताल प्लेटलेट्स चढ़ाने का नहीं बल्कि प्लेटलेट्स के प्रोसेसिंग का चार्ज लेता है।)
प्रश्न-5आपके यहां गरीबों के लिए कितना बेड सुरक्षित है।
फोर्टिज बसंतकुंज का जवाब -15 Beds reserved for EWS category.  (15 बेड सुरक्षित है।)
प्रश्न-6 पिछले एक महीने में कितने गरीबों को आपके यहां ईलाज किया गया है।
फोर्टिज बसंतकुंज का जवाब -The hospital send the monthly report to EWS Cell (DGHS), please approach to EWS Cell DGHS for the same. (डीजीएचएस के इड्ब्ल्यूएस सेल को अस्पताल मासिक रिपोर्ट भेजता है, आप वहां से मालूम करें।)
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बिदुर भारती का मुख्यमंत्री के नाम पत्र
 
अरविंद केजरीवाल को प्रेषित शिकायती पत्र

प्रिय मुख्यमंत्री जी,
मैं विदुर भारती आपके माध्यम से बड़े अस्पतालों में चल रहे गोरखधंधे को सूचित करना चाहता हूँ। मेरी धर्मपत्नी श्रीमती मधुलिका सिंह को 23 सितंबर की रात फीवर हुआ तथा 25 सितंबर को अपने आवास आदर्शनगर के नजदीक और CGHS कार्ड धारक होने के कारण  मैक्स हॉस्पिटल, शालीमार बाग में दिखाया। वहां डॉक्टर ने डेंगू टेस्ट के लिए बताया। टेस्ट रिपोर्ट 26 तारीख को प्राप्त हुई जिसमें डेंगू पॉजिटिव तथा टोटल प्लेटलेट्स 1.5लाख बताया गया।रिपोर्ट संलग्न है। फिर अच्छे से देखभाल के लिए मैंने पत्नी को उनके मायके वसंतकुंज भेज दिया। 28 तारीख को शरीर में अधिक घबराहट के कारण नजदीक के अस्पताल फोर्टिस वसंतकुंज में भर्ती करवाया। इमरजेंसी वार्ड में भर्ती के समय मैंने डेंगू का रिपोर्ट भी दिखाया तब भी उन्होंने सारे टेस्ट करवाये तथा जिस चीज की परेशानी नहीं थी उसका भी टेस्ट करवाया जैसे चेस्ट का एक्स-रे आदि। सभी टेस्ट संलग्न हैं। थोड़ी देर बाद वार्ड में शिफ्ट करने कहा। वार्ड में शिफ्ट होने के बाद तमाम टेस्ट फिर से हुए। रिपोर्ट में शाम 5 बजे बताया गया कि प्लेटलेट्स क्रिटिकल सिचुएशन में है और यह दस हज़ार(10,000) पहुँच गया है। इन्हें दो यूनिट SDP चढ़ाने होंगे। दो डोनर चाहिए। दो डोनर का व्यवस्था भी कर लिया था। थोड़े देर के बाद डॉक्टर ने कहा कि AB+ का SDP हमारे पास अवेलेबल हो गया है। तथा उसे तुरंत ट्रांसफ्यूज कर दिया। और हमारे एक डोनर से प्लेटलेट्स रिज़र्व में रखवा लिया। ट्रांसफ्यूज के बाद ब्लड सैंपल टेस्ट के लिया लिया और फिर तड़के सुबह भी सैंपल लिया। डॉक्टर ने सुबह बताया कि प्लेटलेट्स राइज हो रहे हैं तो दुबारा प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूज करने की जरुरत नहीं है। रात और सुबह के प्लेटलेट्स सैंपल में टोटल काउंट 15 हज़ार और 20 हजार बताये गए। डॉक्टर ने कहा कि दोपहर में फिर सैंपल लेंगे तब वस्तु स्थिति से अवगत कराएंगे। शाम की रिपोर्ट में 25 हज़ार टोटल काउंट बताया।फिर शाम में डॉक्टर ने कहा कि मॉर्निंग में प्लेटलेट्स रिपोर्ट इंक्रिसिंग आया तो डिस्चार्ज कर देंगे। सुबह के रिपोर्ट में 30 हज़ार आया तथा डिस्चार्ज कर दिया। 30 हज़ार पर मैंने डिस्चार्ज करने पर सवाल किया तो कहा कि प्लेटलेट्स राइजिंग हो रहा है सो रखने की जरुरत नहीं है।
इन घटनाओं से मेरे मन कई सवाल घर करने लगे।जिस आदमी का प्लेटलेट्स 30 हज़ार होगा वो भर्ती होने आता है,डिस्चार्ज नहीं होता है।ये तो बहुत क्रिटिकल सिचुएशन होता है। और क्या पल्टलेट्स अर्थमेटिक प्रोग्रेशन में बढ़ते हैं जैसा इन्होंने टेस्ट में दिया,10,15,20,25,30 हज़ार। 30 सितंबर की दोपहर डिस्चार्ज होने के बाद मैंने बाहर सैंपल टेस्ट कराने की सोची लेकिन उस दिन विजयादशमी के कारण सारे लैब उस एरिया में बंद थे।1 अक्टूबर की सुबह डॉ लाल पैथोलब में सैंपल दिया टोटल ब्लडकॉउंट के लिए तो 24 घंटे में प्लेटलेट्स बढ़कर 1 लाख 40 हज़ार हो गया। रिपोर्ट्स संलग्न हैं। ये मेरे सवालों को और मजबूत करता है। इतने 500%की आश्चर्यजनक वृद्धि संभव है या फोर्टिस अस्पताल प्रबंधन का रोगियों से मोटे माल वसूलने का सुनियोजित तरीके हैं। मेरा आरोप है कि ये सब सुनियोजित तरीके से किया जाता है,रोगियों को डरा कर तथा रिपोर्ट गलत बता कर पैसे वसूलने का खेल होता है। मेडिकल एथिक्स में ये तो सरासर अन्योचित है। एक ही SDP चढ़ाया गया तथा पैसे दो यूनिट के लगभग 30 हज़ार रुपये वसूल किये गए। या तो मेरे मरीज का प्लेटलेट्स क्रिटिकल नहीं होगा क्योंकि 24 घंटे में 500%
से अधिक वृद्धि मेडिकल इतिहास में आश्चर्य ही होगा। तथा कुल मिलाकर 67 हज़ार रुपये से अधिक वसूले गए। और दवाई का खर्च मात्र 520 रूपये लिए।
मेरा आपके माध्यम से शिकायत दर्ज करना चाहता हूँ की मेडिकल प्रबंधन में इस तरह के हो रहे सुनियोजित लूट  की जाँच करवाएं तथा इन अस्पतालों पर नकेल कसें।
 
सधन्यवाद, विदुर भारती।
D-1,हकीकत राय रोड
आदर्श नगर,दिल्ली-11003 
 तालिका-2 फोर्टिज बसंतकुंज में मधुलिका सिंह की हुई जांच प्लेटलेट्स रिपोर्ट्स सारिणी
 

रिपोर्ट सं./तारीख खून लिया गया लैब को प्राप्त हुआ रिपोर्ट का समय अंतराल प्लेटलेट्स काउंट जांचकर्ता
1/28.9.17 15:39 16:13 16:42 00 10 डॉ. मुग्धा टपडिया
2/29.9.17 नॉट मेंशन नॉट मेंशन 1:42 08 15 डॉ मुग्धा
3/29.9.17 05:17 6:34 7:25 5 घंटे 43 मिनट 20
4/29.9.17 नॉट मेंशन नॉट मेंशन 22:53 14:28 25 डॉ. मुग्धा
5/30.9.17 4:14 6:44 07:35 08:42 30 डॉ. मुग्धा
कुल 36 घंटे 53 मिनट
टिप्पणी

 
संदर्भ- तस्वीरों में फोर्टिज बसंतकुंज का खेल

फोर्टिज बसंतकुंज से डिसचार्च होने के ठीक एक दिन बाद की लाल पैथ की यह रिपोर्ट एवं पांच दिन पहले की शालिमार बाग मैक्स की रिपोर्ट…


Discharge copy Madhulika singh 2017-09-30_19

 
 
 
 
 
 
 
 
बड़े अस्पतालों की बात भी सुनी जानी चाहिएः डॉ. मनीष कुमार 
डॉ. मनीष कुमार, विभागाध्यक्ष, न्यूरो सर्जरी विभाग, पार्क अस्पताल, गुड़गांव

बड़े अस्पतालों के खिलाफ बोलना बहुत आसान है। लेकिन क्या कभी किसी ने यह सोचा है कि इन अस्पतालों के स्टैबिलिसमेंट पर कितना खर्च हो रहा है। उनकी दैनिक खर्च कितना है। शायद नहीं। जब आप बड़े अस्पतालों को चलाने के लिए लगने वाले खर्च का आंकलन करेंगे तो आपको यहां होने वाले खर्च कम लगेंगे। भारत के लोग इमोशनली ज्यादा सोचते हैं। उनको नहीं पता है कि इन अस्पतालों को सरकारी विभागों से क्लियरेंस के नाम पर कितनी मेहनत करनी पड़ती है। उनको यह भी नहीं पता है कि बड़े-बड़े व्यूरोक्रेट्स एवं नेताओं के ईलाज के लिए कितना कंशेसन देना पड़ता है।
ऐसे में सवाल यह है कि हम अपने सेहत के प्रति कितने जागरूक हैं। हमारी तैयारी कैसी है। अभी भी भारत की स्वास्थ्य सेवा अमेरिका एवं ब्रिटेन की तुलना में 10 गुणा सस्ती है। मैंने तमिलनाडू में देखा है वहां कि सरकार बीपीएल श्रेणी के लोगों का ईलाज मुफ्त में करती है। हमारे यहां तो सबकुछ खुद करना है। ऐसे में हमें खुद ही जागरूक भी होना पड़ेगा। स्वास्थ्य बीमा भी हमें ही कराना होगा। हां, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था में कई जगह लिकेज है। उसे फूलप्रूफ करने के लिए सरकार को कड़े नियम बनाने पड़ेंगे। लेकिन यह भी जरूरी है कि मरीज एवं चिकित्सक के बीच में सार्थक संवाद हो। जहां तक बड़े अस्पतालों की भारत में जरूरत का सवाल है तो इस पर अलग से चर्चा से मैं इंकार नहीं कर रहा हूं। जिस देश के 30 फीसद जनता गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रही है, उस देश के स्वास्थ्य व्यवस्था का ढ़ाचा भी उनके अनुकूल बने, इससे मुझे कोई एतराज नहीं है लेकिन ईलाज का लेयर भी तय किया जाना जरूरी है। जिससे किसी पर नाइंसाफी न हो।
 
स्वास्थ्य सेवा एवं उपभोक्ता संरक्षण
आयुर्वेद की जननी भारत भूमि का इतिहास बताता है कि यहां पर स्वास्थ्य सेवाओं को प्राचीन काल में परोपकार के नजरिए देखा जाता था। जब तक वैद्य परंपरा रही तब तक मरीज एवं वैद्य के बीच सामाजिक उत्तरदायित्व का बंधन रहा। लेकिन आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था के उदय के बाद चिकित्सा एवं इससे जुड़ी हुई सेवाओं को क्रय-विक्रय के सूत्र में बांध दिया गया। चिकित्सकीय सेवा देने वाले एवं मरीज के बीच में उपभोगीय समझौते होने लगे। जैसे अगर आपको हर्निया का ऑपरेशन कराना है तो इतना हजार रुपये लगेगा, डिलेवरी कराना है तो इतना हजार रुपये। मरीज से कॉन्ट्रैक्ट फार्म पर हस्ताक्षर कराए जाने लगे। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह बाजार आधारित हो गईं। यहां पर लाभ-हानी की कहानी गढ़ी जाने लगीं। ऐसे में यह जरूरी हो गया कि इन सेवाओं को कानून के दायरे में लाया जाए ताकि खरीदार को कोई बेवकूफ न बना सके, उनसे ओवरचार्ज न कर सके। गलत ईलाज न कर सके। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय न्यायालय ने समय –समय पर दिए अपने आदेशों में यह स्पष्ट कर दिया है कि चिकित्सा संबंधी जितनी भी सेवाएं हैं उसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के सेक्शन 2(1) के तहत अनुबंधित सेवा माना जायेगा। इस तरह स्वास्थ्य संबंधित सेवाएं कानून के दायरे में आ गईं। इसके इतर भी कुछ प्रमुख कानूनी अधिकार हैं, जो हमें स्वास्थ्य के अधिकार की ओर लेकर जाते हैं। ये अधिकार निम्न हैं-

  • मानसिक स्वास्थ्य एक्ट, 2017
  •  एचआईवी एड्स एक्ट-2017
  • खाद्य सुरक्षा एवं मानक एक्ट-2006
  • ट्रांस्पलाटेंशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट-1994
  • उपभोगता संरक्षण एक्ट- 1986
  • ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट-1940

स्वास्थ्य संबंधी सूचना के विभिन्न सरकारी मंच
सरकार ने विभिन्न माध्यमों से लोगों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी पहुंचाने के प्रयास किए हैं। मोबाइल एप, वेबपोर्टल एवं टोल फ्री नंबरों के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को सुनने एवं उसके समाधान के दिशा में सरकार के ये प्रयास बेहतरीन है। इसे आप भी जानें-

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल- भारत सरकार ने राष्टीय स्वास्थ्य पोर्टल की शुरूआत की है जहां पर स्वास्थ्य संबंधी सभी जानकारियां उपलब्ध कराई जा रही है। इतना ही नहीं यदि स्वास्थ्य संबंधी कोई जानकारी प्राप्त करनी हैं तो राष्ट्रीय हेल्प लाइन संख्या-1800-180-1104 पर संपर्क किया जा सकता हैं। अंग्रेजी, हिंदी, तमिल, बांग्ला एवं गुजराती भाषा में यहां से सूचना प्राप्त की जा सकती है। 14
  • अगर स्टेंट की कमी का मामला कहीं सामने आता हैं तो आप सीधे इसकी सूचना/शिकायत 1800-111-255 पर दी जा सकती है।15
  • फार्मा संबंधी समस्याओं की शिकायत करने के लिए भारत सरकार के रसायन मंत्रालय के अधिन आने वाले राष्ट्रीय औषधि मूल्य नियंत्रण प्राधिकरण ने फार्मा जन समाधान कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत आप 1800-111-255 पर फोन कर के अपनी समस्या जैसे दवा नहीं मिलना, दवाइयों पर ओवरचार्जिंग जैसे मुद्दों को पंजीकृत करा सकते हैं।16

 

  • स्वस्थ भारत मोबाइल एप- भारत सरकार ने एक एप बनाया है, जिसमें स्वास्थ्य संबंधी सुझाव एवं बीमारियों के लक्ष्णों को बताया गया है। इस एप को आप इस लिंक (https://www.nhp.gov.in/mobile-app-swasth) पर जाकर डाउनलोड कर सकते हैं अथवा गुगल प्ले स्टोर से भी इसे डाउनलोड किया जा सकता है।17
  • फार्मा सही दाम- राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण ने फार्मा सही दाम के नाम से एक सर्च इंजन (http://nppaindia.nic.in/nppaprice/pharmasahidaamweb.aspx) बनाया हैं जहां पर आप जाकर दवाइयों के राष्ट्रीय मूल्य को जान सकते हैं। इसी नाम से मोबाइल एप भी बनाया गया है जिसे आप इस लिंक (https://play.google.com/store/apps/details?id=com.nic.app.searchmedicineprice) से डाउनलोड कर सकते हैं। कई बार आपसे तय मूल्य से ज्यादा कीमत वसूली जाती है। ऐसे में यह ऐप बहुत कारगर सिद्ध हो सकता है।18
  • राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन- भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों के हनन के संबंध में शिकायत करने के लिए जागो ग्राहक जागों कैंपेन के तहत राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन शुरु किया है। कोई भी उपभोक्ता जिसे लगता है कि उसके साथ धोखाधड़ी हुई है वो 1800-11-4000 इस नंबर पर शिकायत कर सकता है।

अन्य महत्वपूर्ण हेल्पलाइन्स

  • नेशनल टोबैको क्वीट लाइन-1800-11-2356
  • किलकारी एमहेल्थ सेवा-1800-3010-1703। ध्यान रहे झारखंड, उडीसा, उत्तरप्रदेश उत्तराखंड एवं मध्यप्रदेश तथा राजस्थान के कुछ जिलों में ही यह सेवा अभी लागू है।
  • आशा मोबाइल अकादेमी-1800-3010-1704। ध्यान रहे यह न. झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं उत्तराखंड के लिए ही वैध है)
  • टीबी कंट्रोल प्रोग्राम मिस्ड कॉल सेंटर-1800-11-6666। यह न. पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ एवं दिल्ली के लिए वैध है।
  • एड्स हेल्पलाइन-1097
  • एंटी प्वाजन हेल्प लाइन-1066
  • एंबुलेंस हेल्पलाइन-102

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 स्वास्थ्य सुरक्षा की जरूरत
राष्ट्रीय औषधि मूल्य नियंत्रण प्राधिकरण के चेयरमैन ने सरकारी वेबसाइट पर दिए अपने संदेश में लिखा है कि भारतीय अंग्रेजी दवा व्यापार का वार्षिक टर्नओवर 1 लाख 28 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का हो गया है। जबकि भारत में 82 हजार करोड़ रुपये की दवा की खपत सिर्फ भारतीय बाजार में हैं। यानी हम भारतीय सिर्फ दवा पर एक वर्ष में 82 हजार करोड़ रुपये खर्च करते हैं।1 इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुरक्षा क कितनी जरुरत है।
सच्चाई यह है कि किसी भी राष्ट्र-राज्य के नागरिक-स्वास्थ्य को समझे बिना वहां के विकास को नहीं समझा जा सकता है। दुनिया के तमाम विकसित देश अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से चिंतनशील व बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने हेतु प्रयत्नशील रहे हैं। नागरिकों का बेहतर स्वास्थ्य राष्ट्र की प्रगति को तीव्रता प्रदान करता है। इतिहास गवाह रहा है कि जिस देश के लोग ज्यादा स्वस्थ रहे हैं, वहां की उत्पादन शक्ति बेहतर रही है। और किसी भी विकासशील देश के लिए अपना उत्पदान शक्ति का सकारात्मक बनाए रखना ही उसकी विकसित देश की ओर बढ़ने की पहली शर्त है। ऐसे में भारत को पूरी तरह कैसे स्वस्थ बनाए जाए यह एक अहम् प्रश्न है। अथवा दूसरे शब्दों में कहें तो भारतीय नागरिकों को पूर्ण रूपेण स्वास्थ्य-सुरक्षा कैसे दी जाए आज भी एक यक्ष प्रश्न है। यहां पर यह ध्यान देने वाली बात है कि 2008 में रिसर्च एजेंसी अर्नेस्ट एंड यंग व भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत के लोग अपने स्वास्थ्य बजट का 72 प्रतिशत दवाइयों पर खर्च करते हैं। इस रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया था कि महंगी दवाइयों के कारण प्रत्येक वर्ष भारत की 3 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा से ऊबर नहीं पाती। इसका अर्थ यह हुआ कि देश की लगभग 4 करोड़ आबादी प्रत्येक वर्ष इसलिए गरीब रह जा रही है, क्योंकि उसके पास महंगी दवाइयां खरीदने की आर्थिक ताकत नहीं है। ऐसी स्थिति में गरीबों को दिए जाने वाला स्वास्थ्य कवरेज गरीबी को कम करने का एक ताकतवर साधन भी सिद्ध होगा, ऐसा समीक्षकों का मानना है।
निष्कर्ष
2013 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2011 तक देश में 1 लाख 76 हजार 8 सौ 20 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (ब्लॉक स्तर), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप-केंद्र स्थापित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त देश में 11 हजार 4 सौ 93 सरकारी अस्पताल हैं और 27 हजार 3 सौ 39 आयुष केंद्र। देश में (आधुनिक प्रणाली के) 9 लाख 22 हजार 1 सौ 77 डॉक्टर हैं। नर्सों की संख्या 18 लाख 94 हजार 9 सौ 68 बताई गई है। ऐसे में यह जरूरी है कि देश में चिकित्सकों की संख्या बढ़ाई जाए। देश में स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाई जाए ताकि जिस तरह से जयंत सिंह अथवा बिदुर भारती अपने उपभोक्ता अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं, वैसी लड़ाई और भी उपभोक्ता लड़ सके और साथ ही देश की सरकार भी ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था लागू करने के लिए मजबूर हो जहां पर किसी के साथ लूट न मचे। सबको शुभ-लाभ के सिद्धांत पर न्याय मिल सके।
 
 

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