यह प्रश्न है एक पुत्र का…जो मेडिकल टेररिज्म का शिकार हुआ। अपनी पिता से जुड़ी हुई यह आपबीती राहुल कुमार सिंह ने अपने फेसबुक वाल पर साझा किया है…आपके इस दर्द के साथ स्वस्थ भारत अभियान है मित्र…
संवेदनशील भावनाग्रस्थ लेकिन एक सच्चाई बयां कर रहा मेरी आपबीती आप लोगों को समर्पित कर रहा हूँ। बात 18 जनवरी 2016 की भयावह रात थी जब मेरे पिताजी बाथरूम में गिर गए और उनके दाहिने पैर की हड्डी टूट गई। मैं उन्हें लखनऊ शहर के सबसे नामी सहारा अस्पताल ले गया जहाँ के डॉक्टरों ने उन्हें आई सी यू में भर्ती कर दिया। जबकि यह केस ऑर्थोपेडिक्टस डॉक्टरों की थी तो भी
आई सी यू में पिताजी को रखना एक आश्चर्य से कम न था धीरे-धीरे उन्हें काफी तीव्र इंजेक्शन दिए जाने लगे और इसका प्रभाव यह पड़ा कि उनके फेफड़े और किडनी ख़राब होने लगे।
खून की भी कमी होने लगी। 24 घंटे में केवल एक घंटे ही मिलने दिया जाता था। 23 घंटे में मैं और मेरे भाई , बहन इंतज़ार करते रहे उस नर्क के द्वार पर जहाँ मेरे पिताजी को यातनाएं दी जा रही थी। पर यह यातना केवल रूपए बनाने के लिए थी। शायद यह यमलोक में नहीं होता। यह कृत्रिम यमलोक जो मानवों द्वारा रचित हैं यथा उचित डॉक्टर अपना वास्तविक धर्म भूलकर का सञ्चालन कर रहें थें। हमलोग किसी तरह से सहारा अस्पताल से भागकर एस जी पी जी आई लखनऊ पिताजी को ले गए तब तक बहुत देर हो चुकी थी। प्रश्न यह हैं कि क्या यह मेरे पिताजी के साथ उचित हुआ? क्या जान बूझकर किसी मरीज़ को क्रिटिकल बना देने वाले डॉक्टरों के साथ कुछ होगा? 10 दिनों के अंदर 7 लाख की दवाईयां किसी 78 वर्ष का बूढ़े का शरीर झेल सकता हैं? क्या डॉक्टरों को पता नहीं होता कि दवाईयों का असर किडनी और शरीर के अन्य अंगों पर पड़ता हैं? बस आप सभी मित्रों से यहीं आग्रह हैं कि निजी अस्पतालों के बजाय आप सरकारी अस्पतालों पर ज्यादा निर्भर रह सकते हैं।
2 comments
चेत जाओ, प्रकृति से प्रेम करो, प्रकृति के अनुसार आचरण करो…… बिना दवाईयों के स्वास्थ्य रहो… ….
प्रश्न उठना लाजमी है
सहारा हॉस्पिटल हॉस्पिटल न होकर 5 स्टार होटल कहा जाय तो बेहतर जो अपने ग्राहक को निचोड़ लेना चाहता है
होटल में गनीमत होती है की आप अपनी पसंद व बजट के अनुसार परिस्थितियो को नियंत्रित कर सकते है।
लेकिन यहाँ तो जो खिलाया जाय खाव जो भी बिल हो पेड करो ।
मानवता तो मर चुकी है और डॉक्टर का व्यवसाय सेवा नहीं रहा
यह तो मजबूरी को इस्तेमाल कर मजबूरी का दोहन करने का हो गया है गलाकाट की एक प्रतयोगिता चल रही है।