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निपाह से डरे नहीं, समझे इसे

आशुतोष कुमार सिंह

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट के अनुसार निपाह वायरस 2001 से लेकर अभी तक भारत में 62 लोगों की जान ले चुका है। इन दिनों निपाह वायरस दक्षिण भारत के राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहा है। केरल के कोझीकोड़ एवं मल्लपुरम में 24 मई,2018 तक 12 लोगों की जान जा चुकी है। इस बीमारी से निपटने के लिए सरकार बहुत ही सक्रीयता के साथ काम कर रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस रोग का प्रमुख वाहक चमगादड़ है।सुअर, कुत्ते और घोड़े जैसे जानवर भी इस वायरस के वाहक माने जा रहे हैं। यह वायरस मानव से मानव में भी फैलने की ताकत रखता है।

 

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री जे.पी. नड्डा के निर्देश पर गठित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र (एनसीडीसी) के नेतृत्व में विशेषज्ञों की केन्द्रीय टीम वर्तमान में केरल में निपाह वायरस के संक्रमण की स्थिति की लगातार समीक्षा कर रही है। निपाह वायरस के संक्रमण से मृत्यु के मामलों की समीक्षा करने के बाद केन्द्रीय उच्च स्तरीय टीम का मानना है कि निपाह वायरस से फैला रोग प्रकोप नहीं, बल्कि मात्र स्थानीय स्तर का संक्रमण है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट को देखा जाए तो यह वायरस पहले भी भारत में अपनी दस्तक दे चुका है। बाग्लादेश एवं मलेशिया एवं आस्ट्रेलिया जैसे देशों को प्रभावित कर चुका है। ऐसे में इस वायरस को स्थानीय स्तर का मानना बेमानी है। यहां पर दो बाते हो सकती हैं या तो जिस बीमारी को निपाह वायरस से उपजा हुआ माना जा रहा है वह निपाह है ही नहीं अथवा अगर है तो वह फिर स्थानीय सक्रमण भर नहीं है। निपाह एक अंतरराष्ट्रीय वायरस बन चुका है।

सरकार अपनी सक्रीयता दिखाते हुए लोगों से सुरक्षित और साफ-सफाई रखने तथा पशु-पक्षियों का जूठे फल/सब्जियां न खाने एवं संक्रमित व्यक्ति/क्षेत्र के नजदीक जाने पर सावधानी बरतने के लिए अपनी एडवायजरी जारी कर दी है। राज्य सरकार ने भी स्थानीय भाषा में परामर्श जारी किए है। प्रभावित क्षेत्रों में शुरूआत से ही केन्द्रीय और राज्य की टीमों की मौजूदगी और उनके द्वारा निगरानी तथा रोकथाम की कार्रवाई से लोगों में भरोसा तो बढ़ा ही है। कोझीकोड मेडिकल कॉलेज और त्रिवेंद्रम मेडिकल कॉलेज इस बीमारी से निपटने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाए हुए हैं। 24.5.2018 को जारी किए गए आंकड़ों में बताया गया है कि इस रोग से 14 मरीज ग्रसित है। 20 मरीजों में यह वायरस पाए जाने का अंदेशा है। कोझीकोड में 9 और मल्पुरम में 3 लोगों की जान यह वायरस ले चुका है।

एहतियात के तौर पर कोझीकोड के आयुक्त यू.वी.जोस ने 31 मई तक सभी सार्वजनिक सभाओं, ट्यूशन कक्षाओं सहित सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने के निर्देश दिया है। स्थानीय प्रशासन का यह एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है।

इस बीच अधिकारियों ने निपाह पीड़ितों के अंतिम संस्कार के लिए एक प्रोटोकॉल जारी किया है। वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए दाह संस्कार को सबसे बेहतर बताया गया है, लेकिन यदि परिवार दफनाने का विकल्प चुनते हैं तो शव को एक पॉलीथीन बैग से ढका जाना होगा और फिर बहुत गहरे गड्ढे में दफनाना होगा। मलप्पुरम जिला मेडिकल अधिकारी के.सकीना ने मीडिया से कहा है कि जिले के लोग गर स्वास्थ्य अधिकारियों के निर्देशों का पालन करेंगे तो उन्हें हालात को काबू में करने में बहुत सहुलियत मिलेगी।

यहां यह ध्यान देने की बात है कि निपाह वायरस कोई नया वायरस नहीं है। आज से 20 वर्ष पूर्व 1998-99 में यह सबसे पहले मलेशिया एवं सिंगापुर में पाया गया था। 2001 में बाग्लादेश एवं भारत के पूर्वी हिस्सों में इसने अपना जाल फैलाया। भारत में सबसे पहले जनवरी-फरवरी-2001 में यह वायरस सिलीगुड़ी में फैला था। तब 66 केस सामने आए थे जिसमें 45 लोग यानी 68 फीसद लोगों को मृत्यु से नहीं बचाया जा सका। फिर सन 2007 में भारत के नादिया क्षेत्र में 5 लोग इस वायरस के परिक्षेत्र में आए और पांचों को अपनी जान गंवानी पड़ी। और एक बार फिर से केरल में इसने अपना पैर फैलाया है। इस बीमारी का लक्ष्ण जापानी बुखार, इंसेफलाइटिस जैसा ही है। बुखार आना, मांसपेसियों में दर्द होना एवं वोमेंटिंग इंटेंशन इस बीमारी के सामान्य लक्ष्ण बताए जा रहे हैं । चिकित्सकों के लिए मुसीबत यह है कि यह लक्ष्ण आमतौर पर पाए जाते हैं। ऐसे में निपाह वायरस को डिडेक्ट करना इनके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि अभी तक इस वायरस से लड़ने वाला कोई वैक्सिन नहीं बन सका है। हालांकि इस दिशा में विश्व स्वास्थ्य संगठन काम कर रहा है। लेकिन यह वैक्सिन कब तक बनेगी इसका कोई पुख्ता तथ्य अभी तक सामने नहीं आ पाया है। ऐसे में बचाव ही इसका सबसे बड़ा ईलाज है। और इस वायरस से डरने की जरूरत नहीं है बल्कि सरकार द्वारा जारी की जा रही एडवायजरी को मानने की आवश्यकता है।

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