रायपुर. बिलासपुर के कानन पेंडारी में नसबंदी में लापरवाही के चलते सर्जरी कराने वाली 83 में से 14 महिलाओं की अब तक मौत हो चुकी है, जबकि पांच की हालत गंभीर बताई जा रही है। इस मामले की सारी परतें अभी खुली भी नहीं थी कि एक और मामला सामने आ गया है। बिलासपुर के ही गौरेला में लगाए गए एक अन्य शिविर में जिन महिलाओं की नसबंदी की गईं उनमें 2 बैगा महिलाएं भी शामिल हैं। इसमें से एक महिला चैतीबाई की मौत हो गई। बैगा जनजाति को सरकार ने विलुप्त हो रहीं जनजातियों की श्रेणी में रखा है और इनकी नसबंदी करना मना है। मंगलवार को इसी शिविर में नसबंदी करवाने वाली 11 महिलाएं बीमार हो गई हैं। इस बीच, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बिलासपुर में नसबंदी के दौरान की गई लापरवाही का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से 10 दिनों में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। गौरेला विकासखंड में 10 नवंबर को नसबंदी का शिविर लगाया गया था। इस शिविर में 26 महिलाओं के ऑपरेशन किए गए थे। यह ऑपरेशन जिला अस्पताल से आए डॉ. केके साव ने किए थे। नसबंदी शिविर में तय लक्ष्य को हासिल (टारगेट अचीव) करने का इतना ज्यादा दबाव था कि यहां धनौली गांव की दो बैगा महिलाओं मंगली बाई (22 साल) और चैती बाई (34 साल) का ऑपरेशन कर दिया गया। बताया जा रहा है कि इन बैगा महिलाओं को बहला-फुसलाकर लाया गया था। स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी महिला कार्यकर्ता (जिन्हें छत्तीसगढ़ में मितानिन कहा जाता है) ने बैगा महिलाओं से कहाकि तुम लोग कमजोरी होती जा रही हो, ऑपरेशन के बाद तुम्हारी हालत ठीक हो जाएगी। यह कहकर उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया और एक पेपर पर अंगूठा लगवाकर ऑपरेशन कर दिया गया। मंगलवार को बीमार होने के बाद चैती बाई को गौरेला से बिलासपुर रेफर कर दिया गया था, लेकिन यहां पहुंचते-पहुंचते उसकी तबियत और ज्यादा बिगड़ती गई। शाम तक डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। सूचना मिलने पर गौरेला तहसीलदार बीके ताम्रकार उसकी बॉडी लेने के लिए बिलासपुर रवाना हो गए। उसका शव गौरेला लाया जा रहा है।
सिप्रोसिन-500 का रिएक्शन बताया जा रहा है कि यहां पर ऑपरेशन करने के बाद सभी महिलाओं कोसिप्रोसिन-500 दवा दी गई थी। इस दवा को लेने के बाद इन महिलाओं को उलटी होने लगी और बीपी लो होने की शिकायत आई। कहा जा रहा है कि यह दवा एक सप्ताह पहले जिला अस्पताल से आई थी। यह दवा कानन पेंडारी के शिविर में भी इस्तेमाल की गई थी, लेकिन पेंड्रा के नसबंदी शिविर में यह दवा नहीं दी गई थी, इसलिए वहां महिलाएं बीमार नहीं हैं। महिलाओं के बीमार होने के बाद विधायक रेणु जोगी अस्पताल पहुंचीं और वहां मरीजों से मुलाकात की। विलुप्त होने की कगार पर बैगा जाति बैगा समुदाय को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा गया है। इनकी तादाद बहुत कम है। केंद्र और राज्य सरकारों ने बैगा समेत कमार, अबुझमड़िया और बिरहोर जाति को संरक्षित घोषित किया है। केंद्र ने वर्ष 1998 से इन जनजातियों की नसबंदी पर प्रतिबंध लगा रखा है। इनकी संख्या बढ़ाने की लगातार कोशिश हो रही है। बैगाओं की बात करें तो वर्ष 2001 की जनसंख्या के अनुसार छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में इनकी आबादी 7,85,320 है। उधर पूरे देश में 27,68,922 बैगा ही बचे हैं।
साभारः भास्कर डॉट कॉम
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