नई दिल्ली/
आशुतोष कुमार सिंह
देश के लोगों को सस्ती दवाइयां मिल सके इसके लिए सरकार हर वह कदम उठाने के लिए तैयार दिख रही है, जो वह उठा सकती है। इसी दिशा में सरकार अब सभी दवा दुकानों पर जेनरिक दवा उपलब्ध करवाने के लिए कानून बनाने की तैयारी कर रही है। देश के प्रतिष्ठित अखबार अमर ऊजाला में प्रकाशित खबर में बताया गया है कि डीसीजीआई ने राज्यों को इस संबंध में सर्कुलर जारी कर दिया है। अगले 2 महीने में इसे लागू करने की तैयारी चल रही है।
गौरतलब है कि स्वस्थ भारत ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर यह मांग किया था कि देश के सभी दवा दुकानों को जनऔषधि केन्द्र में बदल दिया जाना चाहिए। सरकार ने इस सुझाव को आंशिक रूप से मानते हुए सभी दुकानों पर अनिवार्य रुप से जेनरिक दवा उपलब्ध कराने का फैसला किया है। पिछले दिनों हुई बैठक में स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने स्पष्ट कर दिया था कि वो हर हाल में लोगों को सस्ती दवा उपलब्ध करवाना चाहते हैं।
सरकार के इस फैसले का का स्वागत करते हुए स्वस्थ भारत अभियान के सह संयोजक धीप्रज्ञ द्विवेदी ने कहा कि, सरकार का यह फैसला बहुत ही सराहनीय है। स्वस्थीभारत शुरू से ही स्वस्थ भारत अभियान के अंतर्गत जेनरिक लाइए पैसा बचाइए कैंपेन चला रहा है। इसके तहत देश के लोगों को जेनरिक दवाइयों के बारे में जागरुक करने का काम हम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि स्वस्थ भारत यात्रा के दौरान स्वस्थ भारत के चेयरमैन आशुतोष कुमार सिंह ने तकरीबन डेढ लाख से ज्यादा स्कूली छात्राओं को जेनरिक दवाइयों के बारे में जागरुक किया था। स्वस्थ भारत जेनरिक के भ्रम को दूर करने के लिए जगह-जगह टॉक शो करते रहता है।
वही दूसरी तरफ सरकार के इस फैसले पर सोशल मीडिया में भी खूब चर्चा हो रही है। फार्मासिस्टों का एक वर्ग चाहता है कि सरकार पहले उन्हें दवाइयों को सब्टीच्यूट करने का अधिकार दे। उनका तर्क है कि अगर डॉक्टर ब्रांडेड दवा लिखेगा और फार्मासिस्ट सब्टीच्यूट कर के मरीज को सस्ती जेनरिक दवा देना चाहेगा तो भी वह कानूनन ऐसा नहीं कर सकता है। सूत्रो की माने तो सरकार इस मसले पर भी विचार कर रही है। संभव है कि नए कानून में यह भी बदलाव हो जाए।
सोशल मीडिया पर इस संदर्भ में एक और चर्चा चल रही है। देश के फार्मा एक्टिविस्ट एवं पत्रकार यह मान रहे हैं कि जबतक सरकार सभी जेनरिक दवाइयों को डीपीसीओ में नहीं लायेगी, दवाइयों कीमतें आसमान ही छूती रहेंगी। स्वस्थ भारत डॉट इन द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में प्रवेज आल़म का कहना है कि, सबसे पहले सरकार को सभी जेनेरिक दवाइयों को डीपीसीओ 2013 की श्रेणी में लाना चाहिए। नहीं तो इस तरह से जेनरिक दवाइयों की उपलब्धता के बावजूद लोगों को फायदा नहीं होगा।वहीं मोहम्मद वसीम का कहना हैं कि जेनरिक दवाइयों को सभी दवा दुकानों पर उपलब्ध कराना कोई उपलब्धि नही है क्योंकि दवा रख भी लेंगे तो डॉक्टर नही लिखेंगे। डॉक्टर लिख भी दिए तो रिटेलर दवा को एमआरपी में बेचेगा और जेनेरिक की एमआरपी भी बहुत अधिक होती है जो कि ब्रांडेड से भी 4 गुना महंगा पड़ेगा। वहीं रजत राज का मत है कि दवा दुकान पर जेनेरिक दवाओं के लिए अलग काउंटर बनाना सरकार की बेहद अच्छे और उपयोगी पहल है । इससे सबसे अधिक फायदा मरीजों को होगा ब्रांडेड दवाओं के नाम पर चल रही लूट पर लगाम लग सकेगी। जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिन को दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता वैसे में उन्हें दवाइयां उपलब्ध कराना सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। जेनेरिक दवाइयों की गुणवत्ता भी ब्रांडेड दवा के समान ही होती है दवाइयों के बारे में जानकारी केवल और केवल फार्मासिस्ट को होती है इसलिए जनता को फार्मासिस्ट के हाथों सुरक्षित दवा मिल पाएगी।