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रोहू मछली को GI टैग दिलाने की प्रक्रिया तेज

पटना (स्वस्थ भारत मीडिया)। चंपारण के मर्चा चूड़ा, मिथिलांचल केे मखाना को जीआई टैग मिलने के बाद अब रोहू मछली को भी जीआई टैग मिलने की बारी आ गयी है। अपने विशेष स्वाद के लिए मिथिला की रोहू पहले से ही विख्यात है। इसके लिए सैंपल इकट्ठा कर केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय को रिपोर्ट भेजने की तैयारी चल रही है। रिपोर्ट बनाने में कृषि विज्ञान केंद्र, पूसा और अन्य विशेषज्ञ भी साथ देंगे।

हर साल जिले में टनों रोहू का उत्पादन

इस काम को आगे बढ़ाने के लिए किशनगंज के मत्स्य पालन कॉलेज के डीन डॉ. वेद प्रकाश सैनी के नेतृत्व में एक टीम दरभंगा आयी थी। उसने हायाघाट प्रखंड के होरलपटी गांव के गंगासागर तालाब और सदर प्रखंड के सोनकी गांव में बड़की तालाब का निरीक्षण किया। अन्य तालाबों से भी सैंपल लिया गया है। इस पर रिपोर्ट तैयार कर वाणिज्य मंत्रालय को भेजा जायेगा। दरभंगा का मत्स्य विभाग बताता है कि जिले में हर साल 17 हजार टन रोहू मछली का उत्पादन हो रहा है। कतला और नैनी सहित कई अन्य प्रजातियों की मछली का उत्पादन 75 हजार टन के करीब हर साल होता है।

वैष्विक बाजार मिलने से पालकों की आय बढ़ेगी

जिला मत्स्य पदाधिकारी अनुपम कुमार के मुताबिक टीम ने भी सैंपल देखकर माना है कि रोहू मछली एक विशिष्ट प्रजाति की है। जीआई टैग मिलने से मिथिला की रोहू को वैश्विक बाजार मिलेगा और मत्स्य पालकों की आमदनी भी बढ़ेगी। मालूम हो कि रोहू पृष्ठवंशी हड्डीयुक्त मछली है जो ताजे मीठे जल में पाई जाती है। इसका शरीर नाव के आकार का होता है जिससे इसे जल में तैरने में आसानी होती है।

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