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मानवता को शर्मसार करते चिकित्सकों का घिनौना सच

कलयुग में भगवान का रूप माने जाने वाले डॉक्टरों के इस घिनौने चेहरे ने मानवता को भी शर्मसार कर दिया हैं। कहीं रूपयों की भूख तो कहीं जानलेवा लापरवाही ने डॉक्टर्स के ईश्वरीय चेहरे पर ही कालिख पोत दी हैं।

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जयपुर  14.01.2015
मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा मुंबई में राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के लोगों के लिए सरकारी और निजी अस्पतालों की शिकायत सुनने के लिए आयोजित कार्यक्रम का हैं,यहाँ पर उक्त राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के सामने विभिन्न राज्यों से आए लोगों ने अपनी पीड़ा बताई तो रोंगटे खड़े हो गए। किसी को एनिस्थीसिया दे दिया गया कि वह जीवनभर के लिए अपाहिज हो गया तो साधारण महिला को एचआईवी पॉजिटिव बता दिया गया । यहाँ तक कि एक महिला का तो बिना गर्भधारण के ही दो-दो बार गर्भपात कर दिया गया । मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाले ऐसे कारनामों को सुनकर सरकारों के नुमांइदे भी अवाक रह गए और निरूत्तर हो गए ।
मानवाधिकार आयोग ने इन मामलों पर प्रसंज्ञान लेते हुए कुछ पर एफआईआर और कुछ मामलों में मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। इस कार्यक्रम में कुल 106 मामले आए थे जिनमें 88 मामलों की सुनवाई हुई,इनमें 20 मामले राजस्थान के,30 गुजरात के और 38 मामले महाराष्ट्र के थे ।
इस सुनवाई में आई राजस्थान के झुंझुनूं की रंजना ने बताया कि बच्चे की चाहत में उन्होनें पिलानी की एक महिला डॉक्टर से इलाज लिया । उसने दो बार गर्भवती बताया और दोनों ही बार बच्चे को कमजोर बताकर गर्भपात कर दिया और लाखों रूपये ले लिए,बाद में शक होने पर दूसरे डॉक्टर्स को दिखाया तो उन्होनें बताया कि वें इलाज की अवधि में कभी गर्भवती हुई ही नहीं। इनके मामले में आयोग ने डॉक्टर की प्रैक्टिस की जांच कर प्रिंसिपल सैक्रेटी फैमिली एंड हैल्थ को छह सप्ताह में रिपोर्ट देने के आदेश दिए हैं। एक अन्य पीड़ित राघवेन्द्र राव की मां कमला ने बताया कि उनका बेटा स्पाइना बाइफिडा बीमारी से ग्रसित है। पेशाब संबंधी परेशानी होने पर उसे मुंबई के चिल्ड्रन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। यहाँ पर सोनोग्राफी,एमआरआई और अन्य जांचों की सुविधा न होने के बावजूद सर्जन ने ऑपरेशन कर दिया। सर्जरी में स्पाइनल एनीस्थिसिया लंबर्ड पंचर दिया गया। बताया जाता है कि इस बीमारी में यह एनेस्थिसिया देना प्रतिबंधित है। ऐसे में उसके बेटे के दोनों पैरों की मूवमेंट खत्म हो गई और आज वह व्हील चेयर पर हैं, पुराना मामला होने पर हालांकि आयोग इस पर कोई फैसला नहीं दे पाया। लेकिन इन दोनों मामलों से स्पष्ट है कि चिकित्सा अब सेवा का माध्यम न रह कर धंधा बन रही है।
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