स्वदेशी औषधियों के मानकों पर जताई चिंता
नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) की ओर से जेनेरिक दवा अनिवार्य करने पर IMA ने कड़ी आपत्ति करते हुए इसे फिलहाल टालने की अपील की है। उसके अनुसार जेनेरिक दवा की गुणवत्ता और प्रभावशीलता अभी भी संदेह के घेरे में है।
दंड की चेतावनी से बढ़ा गुस्सा
NMC ने हाल ही सभी चिकित्सकों को जेनेरिक दवाएं अनिवार्य रूप से लिखने का निर्देष दिया है। चेतावनी देते हुए यह भी कहा गया है कि ऐसा न करने पर उन्हें दंड स्वरूप प्रैक्टिस करने का लाइसेंस भी निलंबित किया जा सकता है। यह भी कहा गया है कि डॉक्टर ‘ब्रांडेड’ जेनेरिक दवाइयां लिखने से परहेज करें। वैसे इस तरह की सलाह पहले भी दी जाती रही है लेकिन इस बार दंडित करने की चेतावनी ने खलबली मचा दी है।
गुणवत्ता को लेकर संदेह
इस बीच डॉक्टरों की संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इन नियमों के क्रियान्वयन को टालने की मांग की है। IMA ने भारत में निर्मित दवाइयों के मानक को लेकर चिंता जताई है क्योंकि इनमें 0.10 फीसदी से भी कम की गुणवत्ता जांच की जाती है। उसने कहा कि यदि चिकित्सकों को मरीजों के लिए ‘ब्रांडेड’ दवाइयां लिखने की अनुमति नहीं दी जाएगी, तो आखिर इस तरह की औषधियों को लाइसेंस भी नहीं दिया जाये।
मरीज के लिए भी नुकसानदेह
IMA ने कहा कि जेनेरिक दवाइयों के लिए सबसे बड़ी बाधा उनकी गुणवत्ता को लेकर अनिश्चितता है। देश में गुणवत्ता नियंत्रण बहुत कमजोर है। दवाइयों की गुणवत्ता की व्यावहारिक रूप से कोई गारंटी नहीं है और गुणवत्ता के बारे में आश्वस्त हुए बगैर दवाइयां लिखना मरीज के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होगा। जब तक सरकार बाजार में जारी सभी दवाइयों की गुणवत्ता का भरोसा नहीं दिला देती, तब तक इस कदम को टाल देना चाहिए।
एक दवा, एक गुणवत्ता, एक मूल्य की नीति बने
IMA ने सरकार से एक दवा, एक गुणवत्ता, एक मूल्य प्रणाली अपनाने की अपील की। उसने कहा कि NMC के जरिये आगे बढ़ने के बजाय सरकार को सभी ‘ब्रांडेड’ दवाइयों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। सरकार ‘ब्रांडेड’ और ‘ब्रांडेड जेनेरिक’ जैसी कई श्रेणियों की अनुमति देती है तथा फार्मा कंपनियों को विभिन्न मूल्यों पर एक ही उत्पाद को बेचने की अनुमति देती है। ऐसे में कानून में मौजूद इस तरह की खामियों को दूर किया जाना चाहिए।