नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। तीन सदस्यीय निर्णायकमंडल द्वारा सर्वसम्मति से लिए गए निर्णय के अनुसार आमंत्रित पांडुलिपि के आधार पर दिया जाने वाला ‘लक्ष्मी-हरि स्मृति उपन्यास सम्मान’ कथा लेखिका और रंगकर्मी विभा रानी को ‘कनियाँ एक घुँघरुआ वाली’ के लिए देने की घोषणा की गई है।
पहला सम्मान ‘लालटेनगंज’ को
ज्ञातव्य हो कि इस पुरस्कार का आरम्भ मैथिली-हिन्दी के लेखक श्रीधरम और उनकी पत्नी प्रोमिला ने अपने माता-पिता महालक्ष्मी और हरिदास जी की स्मृति में किया है। हरिदास की आत्मकथा ‘जनम जुआ मति हारहु’ पिछले साल प्रकाशित होकर चर्चित हुई थी। गत वर्ष पहला ‘लक्ष्मी-हरि स्मृति उपन्यास सम्मान’ सच्चिदानंद सच्चू को उनके उपन्यास ‘लालटेनगंज’ के लिए दिया गया था।
निर्णायक मंडल की टिप्पणी
अंतिका प्रकाशन की ओर से आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में इसकी घोषणा करते हुए लेखक संपादक गौरीनाथ ने पुरस्कार की निर्णय प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी दी। निर्णायक मंडल में से वरिष्ठ नाटककार और रंगकर्मी कुणाल, चर्चित आलोचक कमलानंद झा, कवयित्री बिभा कुमारी ने चयनित उपन्यास पर अपना वक्तव्य दिया। रंगकर्मी कुणाल के अनुसार यह उपन्यास मिथिला केंद्रित स्त्री-प्रतिभा के प्रतिमान बनने की कहानी है जो बिडंबनापूर्ण पितृ-सत्ता के निरंतर अवरोध-विरोध के बावजूद असीम धैर्य के साथ अविराम संघर्ष करती और जीतती है। आलोचक कमलानंद झा के अनुसार मैथिल स्त्री की अद्भुत और लोमहर्षक कहानी है यह उपन्यास। नृत्य सीखने और कुशल नृत्यांगना बनने की उत्कट आकांक्षा और इस आकांक्षा की प्राप्ति हेतु खुद को झोंक देने का साहस इस उपन्यास को विशिष्ट बनता है। कवयित्री बिभा कुमारी के अनुसार यह उपन्यास एक नए कथानक पर केंद्रित है। ग्रामीण स्त्री की नृत्य और गीत की इच्छा, अभ्यास, प्रशिक्षण और उसके कलाकार बनने की यात्रा सहज तो नहीं है, लेकिन वह यात्रा संभव हुई है इस उपन्यास में।
लोकार्पण 28 सितंबर को
कथाकार-आलोचक और महालक्ष्मी-हरिदास के सुपुत्र श्रीधरम ने कहा कि पिछले वर्ष के सम्मान अर्पण कार्यक्रम हरिदास जी के गाँव चनौरागंज, मधुबनी में हुआ था। इस वर्ष यह कार्यक्रम 28 सितंबर को नई दिल्ली में होगा। उसी अवसर पर इस उपन्यास का लोकार्पण और उस पर चर्चा भी होगी।
8वें दशक से लेखिका सक्रिय
मैथिली और हिन्दी में एक साथ आठवें दशक से लेखन में सक्रिय विभा रानी का जन्म 1959 में हुआ और वह वर्तमान में मुंबई में रहती हैं। कहानी, नाटक और अनुवाद में उनकी विशिष्ट पहचान है। उनकी मैथिली में प्रकाशित प्रमुख कृति है-‘खोह स निकसैत’, ‘रहथु साक्षी छठ घाट’ (कथा-संग्रह), ‘मदति करू माई’, ‘भाग रौ आ बालचन्दा’ (नाटक)। हिंदी में ‘प्रेग्नेंट फादर’ (नाटक), ‘कांदुर कड़ाही’ (उपन्यास), ‘अजब शीला की गज़ब कहानी’ (कथा-संग्रह) आदि।