वित्त मंत्री ने की नैशनल डायलेसिस सर्विस प्रोग्राम (एनडीएसपी) की घोषणा
हर साल देश में 2.2 लाख लोगों को किडनी की बीमारी के चलते पड़ती है डायलेसिस सेंटर की जरूरत
हर साल देश में 2.2 लाख लोगों को किडनी की बीमारी के चलते पड़ती है डायलेसिस सेंटर की जरूरत

2.2 लाख लोगों को डायलेसिस की जरूरत
वर्ष 2016-17 का बजट प्रस्ताव पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, भारत में हर साल किडनी की बीमारी के अंतिम चरण में पहुंच चुके 2.2 लाख नये रोगियों की बढ़ोत्तरी हो रही है। इसके परिणाम स्वरूप अतिरिक्त 3.4 करोड़ डायलेसिस सेशन्स की मांग बढ़ गई है। वित्त मंत्री ने अपने भाषण में इस बीमारी की गंभीरता पर जोर डालते हुए कहा कि भारत में लगभग 4,950 डायलेसिस केंद्र हैं जो ज्यादातर प्राइवेट सेक्टर के हैं और बड़े शहरों में हैं। इस वजह से केवल आधी मांग की ही पूर्ति हो पाती है। इसके अलावा प्रत्येक डायलेसिस सेशन्स के लिए लगभग 2000 रुपये का खर्च आता है जो प्रति वर्ष 3 लाख रुपये से अधिक बैठता है। इसके अलावा अधिकतर परिवारों को डायलेसिस सेवाओं के लिए अक्सर लम्बी दूरी तय करके बड़े शहरों में जाना पड़ता है क्योंकि यह सेंटर जिलों और छोटे शहरों में नहीं है। जिनसे यात्राओं पर भारी खर्च होता है।
पहली बार डायलेसिस पर हुई है बात
बॉम्बे अस्पताल के नेफ्रेलॉजिस्ट डॉ़ श्रीरंग बिच्चू का कहना है कि यह पहली बार हुआ है कि किसी बजट में डायलेसिस सेंटरों पर बात की गई है। देश में बढ़ते किडनी बीमारियों के अंतिम स्टेज मामलों के परिपेक्ष में यह स्कीम बहुत ही अच्छी साबित होगी। हालांकि यह केंद्रीय स्कीम है लेकिन क्योंकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और यह राज्यों की जिम्मेदारी है कि वह इस स्कीम को लागू करें। इससे कई सारे लोगों को सहूलियत मिलेगी।
नैशनल डायलेसिस सर्विस प्रोग्राम के तहत सभी जिला अस्पतालों में डायलेसिस सेवा मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) के जरिये निधियां उपलब्ध करायी जायेंगी। इसके साथ ही एक दूसरी राहत सरकार ने डायलेसिस मशीन और उनके उपकरणों के कुछ हिस्से को पूरी तरह कस्टम ड्यूटी, एक्सासइज ड्यूटी\सीवीडी और एसएडी से मुक्त कर दिया है।
वर्ष 2016-17 का बजट प्रस्ताव पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, भारत में हर साल किडनी की बीमारी के अंतिम चरण में पहुंच चुके 2.2 लाख नये रोगियों की बढ़ोत्तरी हो रही है। इसके परिणाम स्वरूप अतिरिक्त 3.4 करोड़ डायलेसिस सेशन्स की मांग बढ़ गई है। वित्त मंत्री ने अपने भाषण में इस बीमारी की गंभीरता पर जोर डालते हुए कहा कि भारत में लगभग 4,950 डायलेसिस केंद्र हैं जो ज्यादातर प्राइवेट सेक्टर के हैं और बड़े शहरों में हैं। इस वजह से केवल आधी मांग की ही पूर्ति हो पाती है। इसके अलावा प्रत्येक डायलेसिस सेशन्स के लिए लगभग 2000 रुपये का खर्च आता है जो प्रति वर्ष 3 लाख रुपये से अधिक बैठता है। इसके अलावा अधिकतर परिवारों को डायलेसिस सेवाओं के लिए अक्सर लम्बी दूरी तय करके बड़े शहरों में जाना पड़ता है क्योंकि यह सेंटर जिलों और छोटे शहरों में नहीं है। जिनसे यात्राओं पर भारी खर्च होता है।
पहली बार डायलेसिस पर हुई है बात
बॉम्बे अस्पताल के नेफ्रेलॉजिस्ट डॉ़ श्रीरंग बिच्चू का कहना है कि यह पहली बार हुआ है कि किसी बजट में डायलेसिस सेंटरों पर बात की गई है। देश में बढ़ते किडनी बीमारियों के अंतिम स्टेज मामलों के परिपेक्ष में यह स्कीम बहुत ही अच्छी साबित होगी। हालांकि यह केंद्रीय स्कीम है लेकिन क्योंकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और यह राज्यों की जिम्मेदारी है कि वह इस स्कीम को लागू करें। इससे कई सारे लोगों को सहूलियत मिलेगी।
नैशनल डायलेसिस सर्विस प्रोग्राम के तहत सभी जिला अस्पतालों में डायलेसिस सेवा मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) के जरिये निधियां उपलब्ध करायी जायेंगी। इसके साथ ही एक दूसरी राहत सरकार ने डायलेसिस मशीन और उनके उपकरणों के कुछ हिस्से को पूरी तरह कस्टम ड्यूटी, एक्सासइज ड्यूटी\सीवीडी और एसएडी से मुक्त कर दिया है।