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बिहार के 20 जिलों में पेयजल से कैंसर का खतरा

अजय वर्मा

पटना। पेयजल में आर्सेनिक होने से बिहार के 20 जिलों में गॉल ब्लाडर कैंसर की बीमारी तेजी से बढ़ रही है। हाल ही एक रिसर्च में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट लंदन के नेचर जर्नल-साइंटिफिक रिपोर्ट्स में इसी महीने प्रकाशित भी हुई है। यह रिसर्च स्थानीय महावीर कैंसर संस्थान और अनुसंधान केंद्र ने किया है।

152 मरीजों पर रिसर्च से खुलासा

संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. अरुण ने बताया कि आर्सेनिक लोगों के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के साथ जुड़ जाता है। इसके बाद सिस्टीन, टॉरिन और चेनोडॉक्सिकोलिक एसिड जैसे अन्य यौगिकों के साथ मिलकर पित्ताशय की थैली तक पहुंच जाता। इसकी वजह से पित्ताशय की पथरी बनती है। लंबे समय तक इसका इलाज नहीं होने पर पित्ताशय की थैली के कैंसर रोग में तब्दील हो जाता है। यह अध्ययन पित्ताशय की थैली के 152 रोगियों पर किया गया। उनके पित्ताशय की थैली में बहुत अधिक आर्सेनिक पाया गया।

गंगा के मैदानी इलाकों में ज्यादा रोगी

इस अध्ययन में पित्ताशय की थैली की बीमारी से सबसे प्रभावित पटना, बक्सर, भोजपुर, सारण, वैशाली, सारण, समस्तीपुर, गोपालगंज, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा, कटिहार, मुंगेर और भागलपुर को पाया गया। इसके अलावा गंगा के मैदानी इलाकों में इस बीमारी का बोझ बहुत अधिक है।

रिसर्च टीम में शामिल विशेषज्ञ

महावीर कैंसर संस्थान के वैज्ञानिकों प्रोफेसर अशोक घोष, डॉ. अरुण कुमार, डॉ. मोहम्मद अली, डॉ. मनीषा सिंह, डॉ. घनीश पंजवानी, डॉ. प्रीति जैन, डॉ. अजय विद्यार्थी, टोक्यो विश्वविद्यालय से डॉ. मैको साकामोतो, कनाडा के सस्केचेवान विश्वविद्यालय के डॉ. सोम नियोगी, दिल्ली एम्स से डॉ. अशोक शर्मा, नीदरलैंड से संतोष कुमार, यूपीईएस विश्वविद्यालय से डॉ. ध्रुव कुमार, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, पटना से डॉ. अखौरी विश्वप्रिया, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय से डॉ. रंजीत कुमार और पटना वीमेंस कॉलेज से डॉ. आरती कुमारी ने इस शोध कार्य में सहयोग किया।

भारत में दुनिया के 10 फीसद केस

डाटा बता रहा है कि 2020 में दुनियाभर में कैंसर के करीब सवा 19 करोड़ केस मिले थे। इनमें 1 लाख से ज्यादा केस पित्ताशय की थैली के कैंसर के थे, जिनमें साढ़े 84 हजार से अधिक की मौत हो गई। भारत में वैश्विक पित्ताशय की थैली के कैंसर के मामलों का 10 फीसद और हर साल लगभग 10 लाख नए कैंसर के मामले होते हैं, जिसमें मृत्यु दर हर साल 33 फीसद तक होती है।

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