नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। हाल ही संपन्न एक नये अध्ययन ने न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों जैसे अल्जाइमर, डिमेंशिया और इससे संबंधित रोगों के लिए नई उम्मीद दी है।
दो रणनीतियां बनाकर हुई स्टडी
इसके लिए कोलकाता के बोस इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर अनिरबन भुनिया और उनकी टीम ने दो अलग-अलग रणनीतियां अपनाईं। सबसे पहले उन्होंने एमिलॉयड बीटा एकत्रीकरण से निपटने के लिए रासायनिक रूप से संश्लेषित पेप्टाइड्स का उपयोग किया। दूसरा, आयुर्वेद से लसुनाद्य घृत (LG) नामक एक दवा का पुनः उपयोग करते हैं, जिसने पहले अवसाद से संबंधित मानसिक बीमारियों के इलाज में प्रभावशामी भूमिका निभाई।
आयुर्वेद एक्सपर्ट का भी मिला साथ
प्रतिष्ठित जर्नल बायोकेमिस्ट्री (ACS) में हाल ही में प्रकाशित एक हालिया पेपर में बोस इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर भुनिया ने साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स (SINP) कोलकाता और आईआईटी-गुवाहाटी के अपने सहयोगियों के साथ बताया कि रासायनिक रूप से डिज़ाइन किए गए पेप्टाइड्स गैर विषैले सीरम-स्थिर हैं और एमिलॉयड प्रोटीन विशेष रूप से एबी 40/42 को बाधित करने के साथ-साथ इन्हें अलग करने में प्रभावी हैं। इसके अतिरिक्त प्रोफेसर भुनिया ने लखनऊ विश्वविद्यालय के राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज और अस्पताल के आयुर्वेद विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. संजीव रस्तोगी और साहा इंस्टीट्यूट के अन्य शोधकर्ताओं के साथ मिलकर इसे दिखाया भी कि यह कैसे काम करता है।