नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। विदेशी मानकों के बदले भारतीय परिस्थिति के आधार पर मरीजों का इलाज करने की तैयारी चल रही है। अब तक विदेशी मानकों के आधार पर यह हो रहा है। रोग की पहचान के लिए भी कई तरह के टेस्ट, बीपी, शुगर, कोलेस्ट्रॉल या फिर हीमोग्लोबिन जैसे लैब अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं। जबकि खानपान, आदत और अनुवांशिकता के आधार पर पश्चिम देशों से भारतीय आबादी काफी अलग है।
टास्क फोर्स का हुआ गठन
इस दिशा में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) भारतीय आबादी के हिसाब से प्रयोगशाला जांच के मानक तय करने की तैयारी में है। कुछ काम हुए हैं लेकिन यह सब तय करने में तकरीबन साल लग जायेंगे। इस क्रम में उसने 49 हजार से अधिक मरीजों के रक्त के नमूना लेकर अपने और विदेशी दोनों मानकों के आधार पर विश्लेषण किया और पाया कि विदेशी मानक और WHO के आधार पर 30 फीसद एनीमिया ग्रस्त मिले जबकि ICMR ने अपने मानकों से जांच की तो यह आंकड़ा 19 फीसद निकला। अब ICMR के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने टास्क फोर्स का गठन कर भारतीय आबादी के हिसाब से प्रयोगशाला जांच के मानक तय करने का फैसला लिया है।
भारतीय मानक बनाना जरूरी
खबरों के मुताबिक मानक के आधार पर ही मरीज का इलाज किया जाता है। इसके अलावा इन्हीं मरीजों की संख्या के आधार पर यह देखा जाता है कि देश में कितने एनीमिया, दिल, रक्तचाप या कोलेस्ट्रॉल के मरीज हैं? उदाहरण के लिए सरकार हर साल राष्ट्रीय एनीमिया मुक्त अभियान चलाती है जिसमें 700 से 800 करोड़ का बजट भी खर्च होता है जबकि मानक अलग होने से एनीमिया रोगियों की संख्या में अंतर आ रहा है जो स्टडी में साबित हो चुका है।