अजय वर्मा
नयी दिल्ली। लोगों के मन में पैसों की हवस और अंधाधुंध शहरीकरण ने वनों-पर्वतों को उजाड़ दिया है। यह साबित किया है राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय की एक स्टडी ने। यह खुलासा करता है कि पिछले कुछ वर्षों में अरावली पर्वत माला की सैकड़ों पहाड़ियां गायब हो गई। 1975-2019 के बीच उच्चतर अरावली क्षैत्र (हरियाणा और उत्तरी राजस्थान) से 31 पहाड़ियां लुप्त हो गईं। निचले इलाकों से बड़ी संख्या में यह विनाश हुआ है।
दिल्ली के लिए खतरे की घंटी
इनके सुरक्षा कवच के हटने पर पिछले कुछ वर्षाे में आसपास के इलाकों में विनाशकारी आंधी तूफ़ान की घटनाओं में वृद्धि हुई है। पर बात जल्दी ही इन इलाकों से निकल कर दिल्ली के द्वार तक पहुंचने लगेगी-रेत भरी आंधी के रूप में। यह आसन्न भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। इसके साथ साथ अरावली की विशिष्ट आबोहवा में उगने वाली वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई हैं। ऐसे प्रमाण हैं कि इन क्षेत्रों में विचरण करने वाले तेंदुए, चिंकारा और अन्य जंतु आबादी की ओर बढ़ने लगे हैं।
2018 में मिला था खनन रोकने का आदेश
ध्यान रहे कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन लोकुर ने इन्हीं दुष्परिणामों के मद्देनज़र अरावली क्षेत्र में खनन रोकने का आदेश दिया था। उनके सामने भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी जिसमें बताया गया कि अरावली क्षेत्र के रिकॉर्ड में दर्ज़ 128 में से 30 पहाड़ियों का गैरकानूनी खनन के चलते अब कोई अता पता नहीं बचा है। तब राजस्थान सरकार की ओर से यह हलफनामा दिया गया था कि पिछले कुछ दशकों में तीस से ज्यादा पहाड़ धरती से गायब हो गए। इस पर दो जजों की पीठ ने कटाक्ष करते हुए यह बहुचर्चित सवाल पूछा कि उस इलाके में क्या हनुमान जी आए थे जो सुमेरु पर्वत की तरह अपने कंधों पर सारे पहाड़ों को लेकर चले गए? वर्तमान की कमाई भविष्य के लिए कितनी घातक साबित होगी, इसकी फ़िक्र किसी हुकूमत को नहीं।