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कोरोना महामारी के चलते हमारे मार्ग में आ रही किसी भी चुनौती से निपटने के लिए हम बेहतर तरीके से तैयार हैं’- डॉ हर्षवर्धन ने ‘इंडिया इकनॉमिक कॉन्क्लेव’ में कहा

द टाइम्स नाउ द्वारा आयोजित ‘इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव’ में आज केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का इंटरव्यू लिया गया।
भारत में कोविड-19 महामारी के अभी तक के अनुभव और कोविड मामलों में फिर से आ रही तेजी पर बात करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, “केंद्र और राज्य सरकारों के विस्तृत ठोस प्रयासों और ‘टेस्ट, ट्रैक एंड ट्रीट’ रणनीति में भारत के निवेश के चलते देश में न्यूनतम मामले दर्ज हुए हैं और प्रति 10 लाख मौतों में भी भारत बेहतर स्थिति में रहा है। महामारी के प्रारंभिक चरण में हमें हर चीज एकदम शुरू से स्थापित करनी पड़ी। चाहे वो निगरानी, ​​प्रयोगशाला की क्षमता, कोविड के लिए समर्पित अस्पताल के बुनियादी ढांचे, चिकित्सीय और वैक्सीन संबंधी लॉजिस्टिक्स ही क्यों न हों। इसके अलावा कोविड के खिलाफ सही व्यवहार को सार्वजनिक आंदोलन बनाने के कदम को भी नहीं भूला जा सकता है। हमने यह प्रदर्शित किया है कि ‘टेस्ट, ट्रैक और ट्रीट’  की नीति से किस हद तक कोविड फैलने से रोका जा सकता है।”
उन्होंने कहा, “अब जब चीजें व्यवस्थित हो गई हैं तो इस महामारी के चलते हमारे मार्ग में आ रही किसी भी चुनौती से निपटने के लिए हम बेहतर तरीके से तैयार हैं। कोरोना के मामलों में हालिया उछाल की स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है। कोविड ​​प्रोटोकॉल के सख्ती से पालन के साथ-साथ जहां कहीं भी आवश्यकता हो छोटे कंटेनमेंट ज़ोन बनाने जैसे निर्णायक कदम उठाकर बढ़ते मामलों पर नजर रखी जा रही है।”
भारत में कोविड की दूसरी लहर पर एक सवाल के जवाब में, डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, “भारत ने देश में कोविड महामारी से निपटने में एक श्रेणीबद्ध, सक्रिय, संपूर्ण सरकार और समाज के दृष्टिकोण का अनुसरण किया है। अर्थव्यवस्था और वाणिज्यिक गतिविधियों के क्रम में खुलने के बाद देश में कोविड-19 के ग्राफ में निरंतर गिरावट आई है। यह उस आर्थिक प्रभाव को नकारने के लिए आवश्यक था जो भारत सहित विश्व स्तर पर इस महामारी ने पैदा किया है। इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि हर महामारी कई लहरों में आती है और कोविड भी कोई अपवाद नहीं है। यह तब साफ हो गया जब यूरोप और अमेरिका में कोरोना की दूसरी लहर आई। वैज्ञानिक समुदाय अभी भी इस बात की खोज में लगा हुआ है कि आखिर महामारी इस तरह से क्यों व्यवहार करती है।”
उन्होंने आगे कहा, “सामाजिक दूरी कायम करना कोविड-19 वायरस के फैलाव को रोकने का एक स्थापित तरीका है। सामाजिक दूरी रखने के इन उपायों को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि इन्हें साक्ष्य आधारित बनाया जाए। इस संदर्भ में, आंशिक लॉकडाउन जैसे नाइट कर्फ्यू या वीकएंड लॉकडाउन का वायरस के फैलाव चक्र पर अधिक प्रभाव नहीं होगा। टीके के रूप में, अभी भी कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर शोध की गुंजाइश है। जैसे कि इन टीकों से वायरस के संक्रमण पर क्या असर पड़ता है और टीके का असर कितने वक्त तक रहता है। जो बात साफ हो चुकी है, वह यह है कि इस टीके से रोग की गंभीरता कम होती है और मृत्यु दर भी प्रभावित होती है।”
वायरस की गतिशील प्रकृति और इसके प्रभाव पर टिप्पणी करते हुए, डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, “इस वायरस का इतिहास अज्ञात है। कोविड 19 बीमारी अपने व्यवहार में बहुत गतिशील है। इसलिए पहले दिन से ही हम महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए निर्णय लेने में वैज्ञानिक प्रमाणों का सहारा ले रहे हैं।  हमारी वायरस के प्रसार की जांच करने के लिए रोकथाम की रणनीति वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित थी जिसकी दुनिया भर में प्रशंसा हुई। हम वायरस की प्रकृति या प्रवृत्ति में किसी भी तरह के परिवर्तन पर नजर रखने के लिए इसका जीनोम अनुक्रमण कर रहे हैं। टीकाकरण अभियान वैज्ञानिक एल्गोरिदम के माध्यम से विश्लेषण किए गए विज्ञान आधारित डेटा के अनुसार चलाया जा रहा है। लगभग 6 टीके परीक्षण के विभिन्न चरण में हैं, और जब वे सभी वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा कर लेंगे तभी उन्हें अनुमति दी जाएगी। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) इस मामले को पहले से ही नजदीकी से देख रहा है. यहा एक गतिशील प्रक्रिया है। “
लाभार्थियों को कम वैक्सीन कवरेज और टीका लगवाने को लेकर झिझक के बारे में चिंताओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “कोविड-19 टीकाकरण अभियान की भारत के इस महामारी के खिलाफ मोर्चे में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है। खास तौर पर उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करने में टीके का बड़ा योगदान है जिनकी जान विभिन्न कारणों से ज्यादा जोखिम में है। हेल्थ केयर वर्कर्स में दूसरी खुराक की कवरेज 76.88 प्रतिशत है और फ्रंट लाइन वर्कर्स में यह तादाद 71.94 प्रतिशत की है। बाकी के हेल्थ केयर वर्कर्स और फ्रंट लाइन वर्कर्स को भी उनके नंबर के मुताबिक टीका लगाया जाएगा।  इसके अलावा, कोविशिल्ड वैक्सीन की दो खुराक के बीच का समय अंतराल भी 4-8 सप्ताह तक बढ़ा दिया गया है, जो दूसरी खुराक कवरेज के कम होने की गलत धारणा दे सकता है, जो सच नहीं है। 60 वर्ष से अधिक और 45 वर्ष से अधिक (अन्य रोगों से ग्रस्त) प्राथमिकता वाले आयु समूह का टीकाकरण 1 मार्च से शुरू हुआ था और उनकी दूसरी खुराक अप्रैल के महीने में लगनी होगी। यह फिर से दूसरी खुराक की कम कवरेज का संदेश दे सकता है। सरकार आज तक प्रत्येक दिन टीकाकरण किए जा रहे लाभार्थियों की संख्या और प्राथमिकता वाले आयु वर्ग के लोगों की संख्या पर टीका लगा रही है। हम राज्यों को प्रति दिन टीकाकरण क्षमताओं के अनुसार टीकों की आपूर्ति सुनिश्चित कर रहे हैं।
कुछ रिपोर्टों के सामने आने के बाद कोविडशील्ड को लेकर बढ़ती चिंताओं पर प्रतिक्रिया देते हुए डॉ हर्षवर्धन ने कहा, “ऐसे मामलों की उन देशों की संबंधित सरकारों द्वारा जांच की जा रही है जहां वे सामने आए हैं। भारत में टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटनाओं के सभी मामलों की निगरानी एक मजबूत निगरानी प्रणाली के माध्यम से की जाती है। टीकाकरण के बाद प्रतिकूल असर की सभी घटनाओं का मूल्यांकन गठित की गई एईएफआई समिति द्वारा किया जाता है.। यह समिति निर्धारित करती है कि क्या घटना वैक्सीन या टीकाकरण प्रक्रिया से संबंधित है या किसी अन्य कारण के चलते हुई है। वर्तमान साक्ष्य के अनुसार, भारत में टीकाकरण के बाद कोई  प्रतिकूल घटना सामने नहीं आई है।”
उन्होंने आगे कहा, “हमारे राष्ट्रीय नियामकों ने कोविशिल्ड और कोवाक्सिन के क्लिनिकल परीक्षणों से इनके असर और सुरक्षा डेटा की जांच की है। मैं फिर से यह बताना चाहूंगा कि हमारे देश में इस्तेमाल किए जा रहे दोनों टीके पूरी तरह से सुरक्षित और प्रतिरक्षात्मक हैं। वर्तमान में सुरक्षा के बारे में कोई चिंता नहीं है। भारत में टीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।”
उन्होंने कहा, ” वैक्सीन के प्रति विश्वास को बनाए रखने और आबादी के बीच किसी भी टीके के प्रति झिझक को दूर करने के लिए हमारी संचार रणनीति पूर्ण रूप से तैयार है। इसे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया जा रहा है। किसी भी गलत सूचना या अफवाह की जल्द पहचान और सही जानकारी के साथ इसका मुकाबला करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में संचार राष्ट्रीय मीडिया रैपिड रिस्पॉन्स सेल की स्थापना की गई है। आम जनता और स्वास्थ्य सेवा और फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न तैयार किए गए हैं और व्यापक रूप से प्रसारित किए गए हैं। वैक्सीन के प्रति विश्वास जगाने के लिए विशेषज्ञों की पहचान की गई है जो इस विषय पर अखबारों में लेख लिखेंगे। प्रमुख विशेषज्ञों द्वारा फैक्ट चेक वीडियो भी तैयार किए गए हैं जिन्हें आम जनता के लिए सही और तथ्यात्मक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रसारित किया गया है।
टीकाकरण अभियान को  ‘जन आंदोलन’ बनाने के प्रधानमंत्री के स्पष्ट आह्वान को दोहराते हुए, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, ” टीकाकरण अभियान को मजबूती प्रदान करने के लिए रोजाना टीकाकरण की संख्या को बढ़ाया जा रहा है। इसे एक जन आंदोलन बनाने के लिए सभी हितधारकों को इसमें शामिल किया गया है।”
वैक्सीन संबंधी दुष्प्रभावों के विषय पर, डॉ. हर्षवर्धन ने उत्तर दिया, “टीकाकरण के बाद गंभीर प्रतिकूल घटनाओं का प्रतिशत टीकाकरण किए गए लाभार्थियों की कुल संख्या का 0.0002 प्रतिशत है, जो बहुत कम है। इस प्रकार कुछ मामलों का चयन एक सामान्यीकरण नहीं है और उनके कारणों और प्रभावों को स्थापित करने की आवश्यकता है। हम एईएफआई के कार्य-मूल्यांकन के दौरान सभी वैज्ञानिक साक्ष्यों का संज्ञान ले रहे हैं।”
डॉ. हर्षवर्धन ने आश्वस्त किया कि वर्तमान टीके SARS-CoV-2 और वर्तमान वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सरकार लगातार बदलते परिदृश्य पर नजर रख रही है। उन्होंने कहा कि उपलब्ध वैज्ञानिक सबूतों के अनुसार, कार्यक्रम को और मजबूत बनाया जाएगा।

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