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Bipolar Disorder : हर रात के बाद प्रभात

बच्चों के मानसिक हेल्थ पर भी समान नजर रखने की जरूरत

डॉ. आनंद श्रीवास्तव

मीता को बचपन से लगता था कि उसकी अपनी कोई पहचान नहीं है। सब उसे मोहित की बहन के तौर पर जानते हैं। ऐसा नहीं था कि मोहित ने स्कूल में सफलता के झंडे गाड़ दिए हों और मीता एकदम फिसड्डी रही हो। मोहित अगर पढॉई के साथ स्पोर्ट्स में भी चौंपियन था, तो गीत-संगीत में मीता की कोई बराबरी नहीं थी। पढ़ाई में अव्वल तो वह थी ही। अलबत्ता, उसे एक बात का हमेशा मलाल रहता कि उसकी कामयाबी उसकी पहचान क्यों नहीं बन सकती। वह कहती भी, ठीक है, घर और सोसायटी में छोटी बहन के तौर पर पहचान में कोई बुराई नहीं है क्योंकि मोहित बड़ा भाई है, लेकिन स्कूल में तो मैंने भी मेडल जीते हैं।
दोनों भाई-बहन की उम्र में कोई चार साल का फर्क था। स्कूलिंग के बाद मोहित ने आईआईटी, दिल्ली से बीटेक किया और फिलहाल जापान की एक फर्म में आईटी प्रोफेशनल हैं। जबकि स्कूलिंग के बाद से ही मीता तय नहीं कर पा रही कि उसे करना क्या है? कभी एमकॉम करने की जिद, तो कभी सीए बनने का जुनून। पटियाला से दिल्ली आकर एमकॉम में दाखिला लिया। एक साल बाद लगा कि सीए करना चाहिए तो सीए की तैयारी में डेढ़ साल लगा दिए। फिर अचानक लगने लगा कि इससे बेहतर था कि एमकॉम करती। बस इसी उधेड़बुन में समय निकलता जा रहा था। वह तय नहीं कर पा रही थी कि आखिर करना क्या है। इसी सब के बीच कभी वह डिप्रेशन में चली जाती तो कभी अति उत्साह से लबरेज।
हॉस्टलमेट्स मीता के व्यवहार में बहुत तेजी से होने वाले बदलाव से थोड़ा हैरान रहते क्योंकि पल में मीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता, और पल में लगता कि उससे ज्यादा कूल कोई हो ही नहीं सकता। दो-तीन महीने से उसका चिड़चिड़ापन भी बढ़ गया था। अक्सर खोई-खोई भी रहने लगी थी। गुस्से में एक रात उसने हॉस्टल में हंगामा खड़ा कर दिया। टेबल पर रखे सामान फेंकने लगी। जो कोई पास आता, मारने के लिए झपटती, जैसे होशो-हवास खो बैठी हो। दोस्तों को लगा कि मीता को कन्ट्रोल करना मुश्किल है तो उन्होंने तुरंत मीता के पापा को इन्फॉर्म किया। फिर फटाफट, एक डॉक्टर से फोन पर बात की तो उन्होंने साइकियाट्रिस्ट के पास ले जाने की सलाह दी। छह-सात फ्रैंड्स उसे लेकर नई दिल्ली में मानसिक रोगों के इलाज के लिए प्रसिद्ध विद्यासागर इन्स्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, न्यूरो एंड एलायड साइंसेज (विमहांस) पहुंचे। वहां के डॉक्टरों को लगा कि उसे एडमिट करना जरूरी है।
ये सब बताते-सुनाते, प्रोफेसर विनय कपूर (बदला हुआ नाम) भावुक हुए जा रहे थे। उनके माथे पर चिंता की लकीरें लगातार गहराती जा रही थीं। बोले, मीता के हॉस्पिटल में होने की खबर सुनकर मैं पटियाला से फौरन दिल्ली के लिए रवाना हो गया। यहां आकर लगा कि आखिर कहां कमी रह गई। मैंने और मेरी वाइफ रोनिता ने दोनों बच्चों के पालन-पोषण और करियर बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लेकिन मीता को देखकर यही लगता है कि हमने बच्चों के फिजिकल हेल्थ पर तो खूब ध्यान दिया, लेकिन मेंटल हेल्थ के बारे में शायद हम सोच भी नहीं सके। कैंटीन में कॉफी पीने के बाद उन्होंने मेरी मुलाकात विमहांस में साइकियाट्रिस्ट डॉक्टर गजानन से कराई।
ड़ॉ. गजानन ने बताया, जिस रात मीता हॉस्पिटल आई, उसकी हालत को देखते हुए, एडमिट करना जरूरी था। कुछ जरूरी टेस्ट्स हुए तो पता लगा कि बाइपोलर डिसऑर्डर की शिकार है। बाइपोलर डिसऑर्डर दरअसल, एक मानसिक बीमारी है, जो डिप्रेशन और मूड में बदलाव की वजह बनती है। इसमें रोगी की मनोदशा दो विपरीत अवस्था में बदलती रहती है। बीमारी की चपेट में आने के बाद कई बार व्यवहार पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है। आमतौर पर इस बीमारी का पता 25 साल की उम्र के आसपास चलता है, लेकिन लक्षण किशोरावस्था या बाद में भी जाहिर हो सकते हैं। यह बीमारी पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करती है। अलबत्ता, परिवार के किसी सदस्य में यह बीमारी होने से बाइपोलर डिसऑर्डर होने की आशंका काफी बढ़ जाती है। इसके अलावा, दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर्स में असंतुलन से बाइपोलर डिसऑर्डर हो सकता है। तनाव भी बाइपोलर डिसऑर्डर के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार होता है।
डॉ. गजानन के मुताबिक, बाइपोलर डिसऑर्डर का चक्र, कभी-कभी कई दिन, कभी हफ्तों और कभी महीनों तक चलता है। सामान्य मनोदशा के विपरीत, बाइपोलर डिसऑर्डर की स्थिति में मनोदशा में बदलाव इतना प्रचंड होता है कि उससे व्यक्ति की काम करने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। बाइपोलर डिसऑर्डर, अलग-अलग लोगों में अलग तरीके से दिख सकता है। मेडिकल टर्म में कहें तो लक्षण अपने पैटर्न, गंभीरता और आवृत्ति में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। कुछ लोगों में या तो उन्माद का अधिक खतरा होता है या फिर अवसाद का, जबकि कुछ लोगों का भरोसा नहीं होता। उन्हें कभी उन्माद का खतरा होता है और कभी अवसाद का खतरा। कुछ लोगों का मूड बार-बार खराब होता है, जबकि कई लोगों को अपने पूरे जीवनकाल में एक-दो बार ही इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ता है।
डॉ. गजानन की बात जारी थी…बाइपोलर डिसऑर्डर में चार तरह की मनोदशा देखने को मिलती है। कभी उन्माद, कभी हाइपोमैनिया, कभी अवसाद या कभी-कभी तीनों तरह की स्थिति। उन्माद के संकेत और लक्षण की बात करें तो बिना कारण हँसना, बोलना, नाचना, गाना, सामान्य से अधिक खुश रहना, सोने की इच्छा में कमी, बड़े-बड़े दावे (बातें) करना, खुद को बड़ा बताना, अपने अन्दर अत्यधिक शक्ति का अनुभव करना, बहुत सारे काम एक साथ करने की कोशिश करना, परन्तु किसी भी काम को सही से न कर पाना, और यौन इच्छा में वृद्वि। इसके दूसरे पहलू यानी डिप्रेशन या अवसाद के संकेत एवं लक्षण एकदम भिन्न होते हैं। उसमें ऊर्जा और थकान में कमी, चिड़चिड़ापन या उदासी, चिंता और क्रोध की भावना, एकाग्रता में कमी, बेकार की भावनाओं का उत्पन्न होना, अत्यधिक नींद आना या सोने में परेशानी होना, भूख अधिक लगना या बिल्कुल भी भूख न लगना शामिल है।
मैं बड़े ध्यान से डॉ. गजानन की बात सुन रहा था….बाइपोलर डिसऑर्डर लंबे समय तक रहनेवाली स्थिति है। इसलिए, मरीज को दवा से ज्यादा प्यार और प्रोत्साहन की जरूरत होती है। मैं खुश हूं कि एक महीने के इलाज के बाद मीता को हॉस्पिटल में छुट्टी मिल रही है। वह काफी खुश है। उसको लिवाने आए उसके पापा डॉ. कपूर और मम्मी रोनिता के चेहरे पर भी सुकून साफ नजर आ रहा था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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