स्वस्थ भारत मीडिया
नीचे की कहानी / BOTTOM STORY

नशे की लत खत्म करने की चुनौती

अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस (26 जून) पर खास
अरविंद जयतिलक

एक कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने नागरिकों को शारीरिक व मानसिक रुप से स्वस्थ रखे। कहा भी जाता है कि एक स्वस्थ व समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए उसके नागरिकों का शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ होना आवश्यक है। पर यह तभी संभव है जब राज्य अपने नागरिकों को उचित स्वास्थ्य उपलब्ध कराने के लिए नशाखोरी पर लगाम कसेगा। यह किसी से छिपा नहीं है कि बिगड़ते स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक रूप से शराब और तंबाकू उत्पाद जिम्मेदार है जिसके सेवन से देश में हर वर्ष लाखों लोगों की मौत हो रही है। 2006 में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि केंद्र व राज्य सरकारें संविधान के 47 वें अनुच्छेद पर अमल करें यानी शराब की खपत घटाए। लेकिन सरकारों का रवैया ठीक इसके उलट है। वह शराब पर पाबंदी लगाने के बजाए उसे बढ़ावा दे रही हैं।
जन स्वास्थ्य और नीति विशेषज्ञों के एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने विश्व प्रसिद्ध स्वास्थ्य पत्रिका ‘लांसेट’ को पत्र लिखकर अपील की है कि पूरे विश्व भर में तंबाकू के बिक्री पर 2040 तक रोक लगनी चाहिए अन्यथा इस सदी में एक अरब लोग धूम्रपान और तंबाकू के उत्पादों की भेंट चढ़ जाएंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो तंबाकू के सेवन से प्रतिवर्ष 60 लाख लोग मौत के मुंह में जाते हैं। साथ ही तंबाकू सेवन कर रहे लोगों को तरह-तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। विशेषज्ञों की मानें तो तंबाकू का सेवन मौत की दूसरी सबसे बड़ी वजह और बीमारियों को उत्पन करने के मामले में चौथी बड़ी वजह है। यही नहीं दुनिया में कैंसर से होने वाली मौतों में 30 फीसदी लोगों की मौत तंबाकू उत्पादों के सेवन से होती है। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों को उम्मीद है कि अगर विभिन्न देशों की सरकारें सिगरेट कंपनियों के खिलाफ राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएं और कठोर कदम उठाएं तो विश्व 2040 तक तंबाकू और इससे उत्पन होने वाले भयानक बीमारियों से मुक्त हो सकता है।
आकलैंड विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ रॉबर्ट बिगलेहोल के मुताबिक सार्थक पहल के जरिए तीन दशक से भी कम समय में तंबाकू को लोगों के दिलोदिमाग से बाहर किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए सभी देशों, संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को एक मंच पर आना होगा। जागरुकता की कमी और सिगरेट कंपनियों के प्रति नरमी का नतीजा है कि तंबाकू सेवन से मरने वाले लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है। लोगों को अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा तंबाकू सेवन से उत्पन बीमारियों से निपटने में खर्च करना पड़ रहा है। अगर इस धनराशि को गरीबी और कुपोषण मिटाने पर खर्च किया जाय तो उसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेगा। लेकिन विडंबना है कि इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
यह तथ्य है कि तंबाकू उत्पादों का सर्वाधिक उपयोग युवाओं द्वारा किया जा रहा है और उसका दुष्प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। याद होगा कि गत वर्ष भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के एक सर्वेक्षण से भी खुलासा हुआ कि कम उम्र के बच्चे धुम्रपान की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं और यह उनके स्वास्थ के लिए बेहद खतरनाक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 70 फीसद छात्र और 80 फीसद छात्राएं 15 साल से कम उम्र में ही नशीले उत्पादों मसलन पान मसाला, सिगरेट, बीड़ी और खैनी का सेवन शुरु कर देते हैं। अभी गत वर्ष पहले स्वीडिश नेशनल हेल्थ एंड वेल्फेयर बोर्ड और ब्लूमबर्ग फिलांथ्रोपिज की रिसर्च से उद्घाटित हुआ कि धूम्रपान से हर वर्ष 6 लाख से अधिक लोग मरते हैं जिनमें तकरीबन 2 लाख से अधिक बच्चे व युवा होते हैं।
धूम्रपान कितना घातक है, यह ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लैंसेट की उस रिपोर्ट से भी पता चल जाता है जिसमें कहा गया है कि स्मोकिंग न करने वाले 40 फीसदी बच्चों और 30 फीसद से अधिक महिलाओं-पुरुषों पर सेकेंड इसका घातक प्रभाव पड़ता है। वे शीध्र ही अस्थमा और फेफड़े का कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बन जाते हैं। याद होगा गत वर्ष पहले WHO के टुबैको-फ्री इनिशिएटिव के प्रोग्रामर डॉ. एनेट ने इसको लेकर गहरी चिंता जताते हुए कहा था कि अगर लोगों को इस बुरी लत से दूर नहीं रखा गया तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। उल्लेखनीय है कि भारत में इसकी कुप्रवृत्ति अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में सर्वाधिक है। इसका मूल कारण अशिक्षा, गरीबी और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है।
‘ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वेक्षण द्वितीय’ की रिपोर्ट में कहा जा चुका है कि देश में सबसे ज्यादा सेवन खैनी और बीड़ी जैसे उत्पादों का होता है। इसमें 11 वयस्क खैनी का और 8 प्रतिशत वयस्क बीड़ी का सेवन करते हैं जिनमें युवतियां व महिलाएं भी होती हैं। कार्यालयों और घरों के अंदर काम करने वाले हर 10 में से 3 स्त्री-पुरुष पैसिव स्मोकिंग का शिकार होते हैं। जबकि सार्वजनिक स्थानों पर इसके प्रभाव में आने वाले लोगों की संख्या 23 प्रतिशत है। यह किसी से छिपा नहीं है कि गांवों और शहरों में हर जगह तंबाकू उत्पाद उपलब्ध हैं और युवा वर्ग उनका आसानी से सेवन कर रहा है। अगर इसकी बिक्री पर रोक लगता है तो निश्चित ही इस जहर का दुष्प्रभाव युवाओं के रगों में नहीं दौडेगा।
सरकार इस सच्चाई को समझे कि धूम्रपान का फैलता जहर युवाओं और बच्चों के बालमन को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। गौर करें तो महिलाओं में भी इसकी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। गत वर्ष पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में भी कहा गया कि देश में 14.2 प्रतिशत महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक तंबाकू की खपत के मामले में 6 पूर्वाेत्तर राज्य-मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा और असम सबसे आगे हैं। तंबाकू सेवन से कैंसर, फेफड़ों की बीमारियां और हृदय संबंधी कई रोगों की संभावना बढ़ रही है। अगर महिलाओं को इस बुरी लत से दूर नहीं रखा गया तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। बेहतर होगा कि सरकार इस पर विचार करे कि नौजवानों को इस जहर से कैसे दूर रखा जाए और उन्हें किस तरह स्वास्थ्य के प्रति सचेत किया जाए? निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार नौजवानों को नशाखोरी के विरुद्ध सचेत कर रहे हैं। लेकिन आवश्यक यह भी है कि नशाखोरी के विरुद्ध कड़े कानून बनाया जाए। यह सही है कि सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान को रोकने के लिए कानून और कठोर अर्थदंड का प्रावधान किया गया है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि कानून के बाद भी युवाओं में जहर घोलती यह बुरी लत फैलती ही जा रही है। कानून के बावजूद भी बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, अस्पतालों एवं अन्य सार्वजनिक स्थलों पर विशेष रुप से युवाओं को धूम्रपान करते देखा जा सकता है।
यह स्थिति इसलिए बनी हुई है कि कानून का कठोरता से पालन नहीं हो रहा है। उचित होगा कि इसके खिलाफ न सिर्फ कड़े कानून बनाए जाएं बल्कि उसका सही ढंग से क्रियान्वयन भी हो। बेहतर होगा कि उसकी बिक्री पर ही रोक लगा दी जाए या अत्यधिक सीमित कर दी जाए। लोगों को इससे दूर रखने के लिए यह भी आवश्यक है कि उससे उत्पन होने वाली खतरनाक बीमारियों से अवगत कराया जाए। इसके लिए सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं सभी को आगे आना होगा।
इस दिशा में स्कूल महती भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए कि स्कूलों में होने वाली सांस्कृतिक गतिविधियां एवं खेलकूद बच्चों के बालमन पर सकारात्मक असर डालती हैं। इन गतिविधियों के सहारे बच्चों में नैतिक संस्कार विकसित किए जा सकते हैं। पहले स्कूली पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य होती थी। शिक्षक बच्चों को आदर्श व प्रेरणादायक किस्से-कहानियों के माध्यम से उन्हें सामाजिक-राष्ट्रीय सरोकारों से जोड़ते थे। धूम्रपान के खतरनाक प्रभावों को रेखांकित कर उससे दूर रहने की शिक्षा देते थे। लेकिन विगत कुछ समय से स्कूली शिक्षा के पाठ्क्रमों से नैतिक शिक्षा गायब है। अब शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा देने तक सिमटकर रह गया है। उचित होगा कि सरकार तंबाकू उत्पादों के पैकेटों पर 85 फीसद सचित्र चेतावनी छापने के नियम का कड़ाई से पालन कराए और साथ ही तंबाकू उत्पादों की बिक्री बंद करने की दिशा में भी विचार करे।

Related posts

The government would soon set up a separate Central Drug Controller for traditional medicines!

Ashutosh Kumar Singh

अपने खेत में ही बनायें जैविक उर्वरक और कीटनाशक

admin

भारत में चिह्नित किये हीरा-युक्त Kimberlites के नये संभावित क्षेत्र

admin

Leave a Comment