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बैंगन के लिए नया जैविक कीटनाशक

नयी दिल्ली। बैंगन भारत की सबसे लोकप्रिय सब्जियों में से एक है लेकिन बुआई के बाद इसकी फसल पर विभिन्न प्रकार के कीटों का खतरा निरंतर बना रहता है। तना और फल छेदक (fruit and shoot borer) कीट बैंगन की पैदावार को अत्यधिक क्षति पहुंचाते हैं। भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने तना और फल छेदक कीट से निपटने में स्वयं बैंगन के अंतर्निहित नियंत्रण तंत्र और उसके जैव कीटनाशक की प्रभावी उपयोगिता को रेखांकित किया है। तना और फल छेदक कीट को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक भारी कीटनाशकों का उपयोग बैंगन को किसानों के लिए व्यावसायिक रूप से अव्यवहार्य और उपभोक्ताओं के लिए जोखिम भरा बना देता है।
क्या चुनौती से निपटने में बैंगन तथा तना और फल छेदक कीट की पारस्परिक क्रिया की रासायनिक पारिस्थितिकी का उपयोग किया जा सकता है? भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER), पुणे और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) कॉम्प्लेक्स फॉर नॉर्थ ईस्ट हिल (NEH) क्षेत्र, उमियाम, मेघालय से जुड़े शोधकर्ताओं का यह अध्ययन इसी बात का पता लगाने पर केंद्रित है।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. सागर पंडित बताते हैं-हमारा उद्देश्य सिंथेटिक कीटनाशकों के भार को कम करने तथा तना और फल छेदक कीट नियंत्रण के लिए एक सुरक्षित साधन खोजने का था जिसे बैंगन-कीट प्रबंधन में एकीकृत किया जा सके। विभिन्न रंग और आकार में उगने वाले बैंगन की खेती पूरे एशिया में बड़े पैमाने पर की जाती है।आलू और टमाटर के बाद बैंगन भारत में तीसरी सबसे ज्यादा खपत होने वाली सोलानेसी पादप कुल की श्सोलनमश् प्रजाति की सब्जी है। तना और फल छेदक कीट के हमलों के कारण भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में इसके फल 40-100 फीसद तक नष्ट हो जाते हैं।
तना और फल छेदक कीट कोमल टहनियों और फलों के अंदर सुरंग खोदता है। चूंकि वे टहनियों और फलों में अंदर संकरे स्थानों में छिपे रहते हैं, इसलिए उनतक कीटनाशकों की पर्याप्त पहुँच नहीं हो पाती। इस चुनौती से निबटने के लिए किसान को बारंबार और अधिक मात्रा में विभिन्न प्रकार के कृत्रिम कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है। परिणामस्वरूप, बाजार में पहुँचने वाले बैंगन में कीटनाशकों के भारी अवशेष जमा होते हैं, जो उपभोक्ताओं के लिए खतरनाक हैं।
रासायनिक पारिस्थितिकी एक विज्ञान है जिसमें यह अध्ययन करना शामिल है कि पौधे, कीड़े, सूक्ष्म जीव आदि रसायनों से बनी अपनी भाषाओं का उपयोग करके एक दूसरे के साथ कैसे संवाद करते हैं। हमने पाया कि एक प्रतिरोधी बैंगन किस्म, RC-RL 22, गेरानियोल नामक पदार्थ पाया जाता है जो तना और फल छेदक कीट को इसकी पत्तियों पर अंडे देने से रोकता है। गेरानियोल, मादा एसएफबी पतंगों को दूर भगाता है। वे गेरानियोल-लेपित पौधों पर नहीं बैठ पातीं-डॉ. पंडित बताते हैं।
शोधकर्ताओं ने बैंगन की सात किस्मों की पत्तियों की गंध निकालकर उन्हें फिल्टर पेपर में डुबोकर सात बैंगन किस्मों की महक वाले सात अलग-अलग फिल्टर पेपर बनाए। पतंगों ने न तो RL22 गंध फिल्टर पेपर को छुआ और न ही उस पर अंडे दिए। वे उतरे और अन्य छह फिल्टर पेपरों पर बैठे भी और अंडे भी दिए। इससे इस बात की पुष्टि हुई कि RL 22 पत्ती की गंध मादा कीटों के विरूद्ध एक निषेधात्मक कवच प्रदान करती है।
शोध टीम ने यह भी खुलासा किया कि बैक्टीरिया में RL 22 के गेरानियोल उत्पादक जीन की क्लोनिंग करके गेरानियोल का उत्पादन प्रयोगशाला में भी किया जा सकता है। जीन को सरल प्रजनन द्वारा अतिसंवेदनशील किस्मों में स्थानांतरित किया जा सकता है ताकि उन्हें तना और फल छेदक-प्रतिरोधी बनाया जा सके। इसके लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव निर्माण की आवश्यकता नहीं होगी। चूंकि यह बैंगन का अपना जीन है, इसलिए इस जीन से युक्त आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्मों को भी आसानी से स्वीकृति मिल सकती है-डॉ. पंडित स्पष्ट करते हैं।
अतिसंवेदनशील बैंगन किस्मों पर गेरानियोल के प्रयोग से मादा पतंगों द्वारा अंडे देने की घटना में 90 फीसद तक की गिरावट दर्ज की गई। शोधकर्ता स्पष्ट करते हुए कहते हैं-हमने RL 22 के गेरानियोल उत्पादन जीन को निष्क्रिय कर इसके गेरानियोल उत्पादन को घटा कर भी देखा। ये गेरानियोल-विहीन पौधे तना और फल छेदक पतंगों को नहीं रोक सके। इससे पुष्टि हुई कि RL 22 का तना और फल कीट-प्रतिरोध गेरानियोल के कारण था।
गेरानियोल की तना और फल छेदक कीट-रोधी क्षमता की पुष्टि के बाद अब गेरानियोल-उत्सर्जक उपकरणों को बैंगन के खेतों में स्थापना के लिए डिज़ाइन करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। दीर्घकालिक समाधान के रूप में, बैंगन की उच्च गेरानियोल उत्सर्जित करने वाली किस्मों को भी विकसित किया जा सकता है।
कीट भी कीटनाशकों के विरुद्ध प्रतिरोध विकसित करते हैं- विशेषकर जब एक ही कीटनाशक यौगिक का उपयोग लंबी अवधि के लिए किया जाता है। इसलिए, एक एकीकृत कीट प्रबंधन कार्यक्रम में अन्य ज्ञात यौगिकों के साथ या अन्य कीट प्रबंधन प्रथाओं के साथ नए यौगिक का उपयोग करना एक आम चलन है। शोधकर्ता आश्वस्त करते हुए कहते हैं-गेरानियोल के पूरक के तौर पर हमने तना और फल छेदक कीटों के अन्य प्राकृतिक निवारक ढूंढना भी आरंभ कर दिया है। शोध टीम में रितुपर्णा घोष, डेनिस मेट्ज़, सुरहुद संत, मारूफ शेख, आशीष देशपांडे, ज्ञानेश्वर एम. फिराके और सागर पंडित शामिल थे। यह अध्ययन न्यू फाइटोलॉजिस्ट जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

इंडिया साइंस वायर से साभार

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