नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। IIT कानपुर अब कृत्रिम बारिश का परीक्षण कर रहा है। हाल ही उसने DGCA की अनुमति के बाद पांच हजार फीट के ऊपर कृत्रिम बारिश का ट्रायल किया। IIT ने स्वयं के प्लेन में क्लाउड सीडिंग का अटैचमेंट लगाकर केमिकल का छिड़काव किया। इस दौरान 15 मिनट तक प्लेन संस्था के ऊपर ही चक्कर लगाता रहा। वहां यह प्रोजेक्ट तकरीबन 6 साल से चल रहा है। एयरक्राफ्ट में लगी डिवाइस से सिल्वर आयोडाइड, सूखी बर्फ, साधारण नमक से बने हुए केमिकल का फायर किया गया।
सफल परीक्षण का दावा
कृत्रिम बारिश के प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने मीडिया को बताया कि प्लेन के पंखों में डिवाइस लगाई गई, जिससे केमिकल का छिड़काव किया गया। इसकी वजह से बारिश नहीं हुई, क्योंकि क्योंकि बादलों के भीतर क्लाउड सीडिंग नहीं की गई थी। लेकिन परीक्षण सफल रहा। सफल इस मायने में कि क्लाउड सीडिंग के लिए संस्थान तैयार है। आने वाले कुछ हफ्तों में फिर क्लाउड सीडिंग का परीक्षण कराया जाएगा।
DGCA की अनुमति से हुए सफल परीक्षण
प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि बारिश इसलिए नहीं हुई क्योंकि हमने बादलों में फ्लेयर्स को फायर नहीं किया। ये एक ट्रायल था लेकिन टेस्टिंग सफल रही। अब हम अगले चरणों में क्लाउड सीडिंग चलाने के लिए तैयार हैं। यह परीक्षण डीजीसीए की अनुमति के बाद हुआ है। उन्होंने बताया कि आईआईटी कानपुर ने एक यूनिक एक्पेरिमंट पूरा किया है। सेसना एयरक्राफ्ट के जरिए कृत्रिम बादल बनाए गए, जो यूएस में तैयार किया गया है। वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर के 56 देश क्लाउड सीडिंग का प्रयोग कर रहे हैं।
अमीरात में ड्रोन से कृत्रिम बारिश
संयुक्त अरब अमीरात ने ड्रोन के जरिए बादलों को इलेक्ट्रिक चार्ज करके अपने यहां आर्टिफिशियल बारिश कराई। हालांकि ये बारिश कराने की नई तकनीक है। इसमें बादलों को बिजली का झटका देकर बारिश कराई गई। इलैक्ट्रिक चार्ज होते ही बादलों में घर्षण हुआ और दुबई और आसपास के शहरों में जमकर बारिश हुई। 50 के दशक में वैज्ञानिकों ने प्रयोग करते हुए महाराष्ट्र और यूपी के लखनऊ में कृत्रिम बारिश कराई थी. दिल्ली में 02-03 साल पहले वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश की तैयारी कर ली गई थी.
पहला प्रयोग 1947 में
कृत्रिम बारिश की ये प्रक्रिया बीते 50-60 वर्षों से उपयोग में लाई जा रही है। क्लाउड सीडिंग का सबसे पहला प्रदर्शन फरवरी 1947 में ऑस्ट्रेलिया के बाथुर्स्ट में हुआ था। 60 और 70 के दशक में अमेरिका में कई बार कृत्रिम बारिश करवाई गई। चीन ने 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान इसका प्रयोग 21 मिसाइलों के जरिए किया था जिससे बारिश के खतरे को टाल सके।.
भारत में पहला प्रयोग 1951 में
भारतीय मौसम विभाग के पहले महानिदेशक एस के चटर्जी के नेतृत्व में 1951 में इसके प्रयोग शुरू हुए थे। उन्होंने तब हाइड्रोजन गैस से भरे गुब्बारों में नमक और सिल्वर आयोडाइड को बादलों के ऊपर भेजकर कृत्रिम बारिश कराई थी। टाटा फर्म ने 1951 में वेस्टर्न घाट में कई जगहों पर इस तरह की बारिश कराई। पुणे के रैन एंड क्लाउड इंस्टीट्यूट ने यूपी और महाराष्ट्र में ऐसी कृत्रिम बारिश कराई। 93-94 में सूखे से निपटने के लिए तमिलनाडु में ऐसा काम हुआ। 2018 में दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने पर कृत्रिम बारिश की तैयारी की गई थी। इसरो से विमान भी हासिल हो गया था लेकिन मौसम प्रतिकूल होने की वजह से कृत्रिम बारिश नहीं करवाई जा सकी।