आशुतोष कुमार सिंह
चिकित्सक एवं मरीज के बीच जितना संवाद होगा उतना ही बेहतर ईलाज हो पाता है। ऐसे मरीज का यह अधिकार है कि वो चिकित्सक से पूरा समय ले। यहां पर यह ध्यान देना जरूरी है कि चिकित्सक अपनी सेवा दे रहा जिसके बदले वह मरीज से धन लेता है। ऐसे में मरीज की जिज्ञासाओं को शांत करना उसका नैतिक दायित्व भी है। ऐसे में मरीज यानी उपभोक्ता को अपने चिकित्सक से कुछ मूल भूत बातें जरूर करनी चाहिए।
साफ-साफ अक्षरों में दवाइयां लिखने के लिए डॉक्टर से कहें
आप यदि किसी डॉक्टर को शुल्क देकर अपना ईलाज करा रहे हैं तो यह आपका अधिकार है कि आप डॉक्टर से कह सके कि वह साफ-साफ अक्षरों में दवाइयों के नाम लिखे। साफ अक्षरों में लिखे दवाइयों के नाम से आपको दवा खरीदने से लेकर उसके बारे जानने-समझने में सुविधा होगी। फार्मासिस्ट भी गलती से दूसरी दवा नहीं दे पायेगा। जिस फार्म्यूलेशन की दवा है, उसे आप एसेंशीयल मेडिसिन लिस्ट से मिला सकते हैं। ज्यादा एमआरपी होने पर इसकी शिकायत ड्रग इंस्पेक्टर से लेकर एनपीपीए तक को कर सकते हैं। मेडिकल कॉउसिल ऑफ इंडिया ने भी चिकित्सकों से कैपिटल लेटर में दवाइयों के नाम लिखने के लिए कह चुका है।
अपने डॉक्टर से कहें सबसे सस्ती दवा लिखें
जिस फार्म्यूलेशन का दवा आपको डॉक्टर साहब लिख रहे हैं, उसी फार्म्यूलेशन की सबसे सस्ता ब्रान्ड कौन-सा है, यह आप डॉक्टर से पूछे। फार्मासिस्ट से भी आप सेम कम्पोजिशन की सबसे सस्ती दवा देने को कह सकते हैं। दवा लेने के बाद अपने डॉक्टर को जरूर दिखाएं। गौरतलब है कि डॉक्टरों पर सस्ती और जेनरिक दवाइयां लिखने के लिए सरकार भी लगातार एडवाजरी देती रही है।
सेकेंड ओपेनियन जरूर लें
यदि कोई गंभीर बीमारी की बात आपका डॉक्टर कहता हैं, तो ईलाज शुरू कराने से पहले एक दो और डॉक्टरों से सलाह जरूर लें। कई बार गलत ईलाज हो जाने के कारण मरीज की जान तक चली जाती है।
मेडिकल हिस्ट्री जरूर माँगे
आप जहाँ भी ईलाज कराएं, ईलाज की पूरी फाइल संभाल कर रखें। यदि अस्पताल में आप भर्ती हैं तो डिस्चार्ज होते समय मेडिकल हिस्ट्री जरूर माँगे। इसको सम्भाल कर रखे। आपकी मेडिकल हिस्ट्री भविष्य में आपके ईलाज में बहुत सहायक साबित होगी।
जिस तरह से जीवन का व्याकरण होता है उसी तरह दवा का भी व्याकरण है। इस व्याकरण को सही तरीके से या तो चिकित्सक समझा सकता है अथवा फार्मासिस्ट। आर्थिक व शारीरिक रूप से खुद को स्वस्थ रखने के लिए यह जरूरी है कि हम दवा संबंधी ज्ञान में इज़ाफा करें। सामान्य ज्ञान के स्तर पर जितना हमें जानना चाहिए उतना जरूर जानें। आप माने या न माने मैं दावे के साथ कह सकता हूं प्रत्येक व्यक्ति को इस व्याकरण को जानने की जरूरत है।
दवाइयों के नाम पर लूट
संसद में 2012 में यह कहा गया कि देश की दवा कंपनियां 1100 फीसद तक मुनाफा कमा रही है। इसको लेकर पूरे देश में बहुत हो-हल्ला मचा था। इसी बीच डीपीसीओ-2013 की ड्राफ्ट नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग ऑथोरिटी ने जारी किया था। उस मसौदे में दवाइयों की कीमतों को तय करने की जो सरकारी विधी बताई गई थी, उसका विरोध होना शुरू हुआ। बावजूद इसके बाजार आधारित मूल्य निर्धारण नीति को डीपीसीओ-2013 का हिस्सा बनाया गया। इसका नुकसान यह हुआ कि दवाइयों को लेकर जो लूट मची थी, वह कम होने की बजाय यथावत रह गई। 2014 में बनी नई सरकार ने आम लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए जनऔषधि केन्द्र को बढ़ावा देना शुरू किया है। लेकिन इसकी उपलब्धता अभी सीमित है। ऐसे में दवा के नाम पर उपभोक्ता लगातार लूटे जा रहे हैं। ऐसे में उपभोक्ताओं को जागरुक तो होना ही पड़ेगा ताकि संगठित लूट से वे खुद को बचा पाएं।
स्वास्थ्य बीमा धारकों की समस्या
जिन लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा है, उन्हें यह लगता है कि उनका अधिकार तो सुरक्षित है। बीमार पड़ेंगे और पैनल के अस्पताल में भर्ती हो जायेंगे। लेकिन इस व्यवस्था में दिक्कत यह है कि सरकार ने जो रेट तय कर रखे हैं, उस रेट पर कोई भी निजी अस्पताल बेहतर सेवा नहीं देता है। ऐसे में चूंकि रुपये का लेनदेन उपभोक्ता प्रत्यक्ष रुप से नहीं कर रहा होता है तो वो अस्पताल प्रशासन से कुछ कहने की स्थिति में नहीं होता। वहीं कई बार ऐसा भी होता है कि सरकारी कर्मचारियों को जितना खर्च करना पड़ता है, उतना सरकार की ओर से रिम्बर्स नहीं हो पाता। ऐसे में स्वास्थ्य बीमा को लेकर और स्पष्टता लाने की जरूरत है।