मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में हज़ारों की संख्या में दवा बाँट रहे कम्पाउंडर महज़ दसवीं पास है। फार्मेसी काउंसिल ऑफ़ इंडिया के नियमों के तहत दवा बाँटने का कार्य केवल रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट ही कर सकते है। दवा बाँटने के लिए फार्मेसी में डिप्लोमा, डिग्री या मास्टर की पढाई के साथ ही संबंधित स्टेट फार्मेसी काउंसिल में रजिस्टर्ड होना अनिवार्य है। सरकारी नौकरियों में दसवीं पास किसी भी गैर फार्मासिस्ट को कम्पाऊण्डर का दर्ज़ा दे कर दवा वितरण कार्य करवाना मरीज़ों की जान से खिलवाड़ है। सूत्रों के मुताबिक सरकारी दवा भंडारों पर इन कम्पाउंडरों का ही कब्ज़ा है जो दवा की खरीद संबंधी टेंडर में धड़ल्ले से हस्तक्षेप करते है।
दवा की गुणवत्ता की जांच से लेकर भंडारण और वितरण तक का काम देखने वाले इन कम्पाउंडरों तो दवा की जानकारी ना के बराबर है। मरीज़ों को गलत दवा दिए जाने की खबरें आम हो चली है। हाल में ही बड़वानी जिले में गलत दवा के इस्तेमाल से कई मरीज़ों की आखों की रोशनी चली गई थी। प्रांतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन के प्रवक्ता विवेक मौर्य ने बताया की प्रदेश में बैचलर और मास्टर डिग्री फार्मा प्रोफेशनल्स से कही कही कंप्यूटर ऑपरेटर तक का काम लिया जा रहा है, वही दूसरी तरफ दसवीं पास को कम्पाउंडर को गैर क़ानूनी रूप से दवा बांटने हेतु प्राधिकृत किया गया है। फार्मासिस्ट संगठन ने जल्द से जल्द कम्पाउंडरों को दवा वितरण कार्य से हटाए जाने की मांग की है।
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