इजरायल और अमेरिका से खबरे हैं कि कोरोना को रोकने के लिए वहां टीका बनाने का काम निर्णायक दौर में है। अगर इसमें कामयाबी मिली तो उम्मीद की जानी चाहिए कि मानवता जीतेगी और कोरोना हारेगा, जैसे अतीत में सार्स हारा है, प्लेग हारा है, चेचक हारा है, हैजा हारा है।
उमेश चतुर्वेदी
कोविड 19 यानी आम बोलचाल की भाषा में कोरोना नामक महामारी ने साबित कर कर दिया है कि प्रकृति के दांव के आगे वैज्ञानिक सर्वोच्चता की सोच भी बौनी साबित हो सकती है। नियति और प्रकृति पर विजय पाने का विज्ञान जब भी दावा करता है, प्रकृति अपना कोई नया रूप दिखा देती है, जिसके सामने अच्छी भली वैज्ञानिक सोच भी नियतिवादी होने को मजबूर हो जाती है।
उन्नीसवीं सदी की प्लेग हो या फिर बीसवीं सदी का हैजा और चेचक, सबने प्रकृति की ताकत को ही स्थापित किया है। दिलचस्प यह है कि हर बार कुछ अंतराल के बाद प्रकृति के इस खेल पर विज्ञान विजयी बनता रहा, इसके बाजवूद समाज इन बीमारियों के बहाने प्रकृति के उन सनातन नियमों की ओर आगे बढ़ता रहा, जिसे कई बार वैज्ञानिक तर्कों के नाम पर खारिज भी करता रहा है। राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वीकार किया कि विज्ञान अभी तक कोरोना की महामारी को रोक पाने के लिए अभी तक कोई विशेष उपाय नहीं सुझा पाया है।
कोरोना के मसले पर राजनीतिक दल एक हैं
इन पंक्तियों को लिखे जाते वक्त तक दुनियाभर में कोरोना के 12 लाख 73 हजार 990 लोग संक्रमित पाए गए हैं, जबकि भारत में यह संख्या 4067 हो गई है। चीन में जहां कोरोना संक्रमण की स्थिति काबू में आ रही है, वहीं इटली में हालात खराब हैं। इस वजह से वहां लोगों के जुटने पर रोक है। बेशक भारत में कोरोना ने जान का ज्यादा नुकसान नहीं किया है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि वक्त रहते केंद्र सरकार ने इसके बचाव के लिए कदम उठा लिए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कोरोना को रोकने के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की निगरानी कर रहे हैं और अधिकारियों से लगातार रिपोर्ट मांग रहे हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन भी लगातार इस मोर्चे पर सक्रिय हैं। बेशक भारतीय राजनीतिक माहौल इन दिनों बेहद कटु है। राजनीतिक दलों के बीच मतभेद नहीं, मनभेद हो गए हैं। लेकिन कोरोना के मसले पर राजनीतिक दल एक हैं। इसका ही असर है कि देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या यूरोप के कई देशों की तुलना में बेहद सीमित है।
भारत की तैयारियों की तारीफ
संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के कदमों की तारीफ विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी की है। भारत की तैयारियों की तारीफ इसके पूर्व संसद के बजट सत्र में भी दिखा था, जब लोकसभा में पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम और राज्यसभा में आनंद शर्मा ने कोरोना को रोकने के लिए उठाए गए कदमों की तारीफ की। यह बात और है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ठीक उसी वक्त सरकार की आलोचना कर रहे थे, जब उनके ही सांसद और वरिष्ठ नेता सरकार की प्रशंसा कर रहे थे।
स्वच्छता भारत का जीवन दर्शन रहा है
आबादी के लिहाज से देखें तो चीन के बाद दूसरे नंबर पर भारत है। फिर भी कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या सीमित है तो इसकी बड़ी वजह यह भी है कि भारत में स्वच्छता संस्कार का विषय है। बच्चे को साफ रहने, खाने-पीने की चीजों को बिना हाथ धोए ना लेने, शौच आदि के बाद हाथ धोने आदि का विधान रहा है। यूरोप में स्वच्छता का संस्कार तो प्लेग की महामारी के बाद आया। लेकिन भारत में स्वच्छता जीवन दर्शन रही है।
यह शोध का विषय है कि बाद के दिनों में सार्वजनिक स्वच्छता से हमारा समाज क्यों किनारे होते गया? स्वच्छता के हमारे संस्कार, हमारे खान-पान की आदतों और आचार-व्यवहार प्रकृति के नियमों के अनुकूल रहे हैं। हमारे यहां शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जो शौचालय या मूत्रालय से बाहर निकलते ही पानी की खोज ना करना चाहता हो? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारतीय संस्कारशाला के ये तथ्य पता हैं, शायद यही वजह है कि उन्होंने 19 मार्च को राष्ट्र के नाम संबोधन में लोगों से संयम और संकल्प लेने की अपील की। उन्होंने बुजुर्गों से जहां बाहर ना निकलने की अपील की, वहीं 22 मार्च रविवार को सुबह सात बजे से लेकर नौ बजे रात तक खुद-ब-खुद जनता कर्फ्यू लगाने की भी मांग रखी।
कुछ लोग ऐसे हैं जो सुधर नहीं सकते
कोरोना को लेकर जागरूकता भले ही बढ़ी है। लेकिन जिस तरह आगरा, मुंबई, पंजाब के पटियाला से हो संदिग्धों के गायब होने को लेकर खबरें आईं, उससे साफ है कि समाज का एक वर्ग ऐसा है, जो अब भी सुधरने को तैयार नहीं है। फ्रैंकफर्ट से आई एक फ्लाइट में जब कुछ लोगों के संक्रमित होने का संदेह हुआ तो उन्हें क्वैरंटाइन के लिए ले जाने की कोशिश हवाई अड्डे पर तैनात सीआईएसएफ के अधिकारियों ने की तो लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया। हालांकि कुछ ऐसे भी लोग सामने आए, जिन्हें संक्रमण का शक हुआ तो खुद ही अलग रहने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों के पास जा पहुंचे।
भारत में ऐसे हालात में कई बार मुनाफाखोरों की बन आती है। हिंदुस्तान लीवर ने इस दौरान अपने साबुनों और सैनिटाइजर की कीमतें दस फीसद तक बढ़ा दी। मास्क की मनमानी कीमतें भी वसूलने में कुछ कारोबारी पीछे नहीं रहे। कुछ लोग जिम बंद करने से इतना नाराज हुए कि विरोध स्वरूप गंदी जगहों और सड़कों पर ही व्यायाम करने लगे। कुछ जगहों पर गोमूत्र और गाय का गोबर तक लोगों ने पांच सौ रूपए किलो बेच और खरीद डाला। कोरोना को नियंत्रित करने के लिए एक तरफ तत्परता भी दिख रही है तो दूसरी तरफ लूट तंत्र भी मौके की ताक में ना सिर्फ बैठा है, बल्कि अपनी कमाई में भी जुटा है।
प्रशासनिक तंत्र की मुस्तैदी
कोरोना को रोकने में जिस तरह राज्य और केंद्र का प्रशासन तत्परता दिखा रहा है, उससे एक बात साफ है कि भारतीय तंत्र अगर चाहे तो वह हर कदम चुस्ती से उठा सकता है। चुनाव के अलावा प्रशासनिक तंत्र में एक बार फिर तत्परता दिखी है। प्रशासनिक तंत्र में अलग से कोई भर्ती नहीं हुई है। कोई अलहदा ट्रेनिंग भी नहीं हुई, लेकिन नकारा, काम टालने, रिश्वतखोरी आदि के लिए बदनाम वही भारतीय प्रशासनिक तंत्र पूरी मुस्तैदी के साथ जुटा हुआ है।
इससे साफ है कि अगर सही तरीके से निर्देशित करने के साथ ही चाबुक का डर दिखाने वाली व्यवस्था हो तो काहिली और बदअमली के लिए कुख्यात भारतीय प्रशासनिक तंत्र सार्थक बदलावों का वाहक बन सकता है। वैसे कोरोना से राजस्थान बीते दिनों और उत्तर प्रदेश में दो साल बच्चों की दिमागी बुखार से हुई मौतों की तुलना नहीं की जा सकती। लेकिन एक बात जरूर कही जा सकती है कि अगर तंत्र चाहे, अपनी जिम्मेदारियां समझे तो दिमागी बुखार जैसी आपदाओं पर भी काबू पाया जा सकता है।
वैश्विक स्तर पर भारत मजबूती से खड़ा है
इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा ने कोरोना के इलाज और रोकथाम को लेकर उम्मीद बढ़ा दी है। ट्रंप ने कहा है कि मलेरिया की दवा कोरोना के इलाज में कारगर हो सकती है। हाल ही में इस दवा को उन्होंने भारत से आपूर्ति करने की अपील भी की है। वैसे चीन ने भी ऐसा कहा था। इजरायल और अमेरिका से खबरे हैं कि कोरोना को रोकने के लिए वहां टीका बनाने का काम निर्णायक दौर में है। अगर इसमें कामयाबी मिली तो उम्मीद की जानी चाहिए कि मानवता जीतेगी और कोरोना हारेगा, जैसे अतीत में सार्स हारा है, प्लेग हारा है, चेचक हारा है, हैजा हारा है।