नयी दिल्ली। IIT, मद्रास के शोधकर्ताओं को एक ऐसी सांख्यिकीय पद्धति विकसित करने में सफलती मिली है, जो सतह के नीचे शैल संरचना के आकलन के साथ-साथ पेट्रोलियम तथा हाइड्रोकार्बन भंडार का पता लगाने में सक्षम है। ऊपरी असम बेसिन में स्थित ‘टिपम फॉर्मेशन’ में शैलीय वितरण और हाइड्रोकार्बन संतृप्ति क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने में इस पद्धति को प्रभावी पाया गया है।
सटीक जानकारी देने में सक्षम
इस पद्धति का उपयोग भूकंपीय सर्वेक्षणों से प्राप्त आँकड़ों के विश्लेषण के लिए किया गया है। पेट्रोलियम रिजर्व के लिए विख्यात उत्तर असम क्षेत्र के कुओं से संबंधित आँकड़ों को भी इस अध्ययन में शामिल किया गया है। इस पद्धति से शोधकर्ताओं को 2.3 किलोमीटर की गहराई वाले क्षेत्रों में शैलों के वितरण और हाइड्रोकार्बन संतृप्ति क्षेत्रों से संबंधित सटीक जानकारी प्राप्त करने में सफलता मिली है।
शोध पत्रिका में प्रकाशित
IIT मद्रास के पेट्रोलियम इंजीनियरिंग प्रोग्राम, ओशन इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ता प्रोफेसर राजेश आर. नायर के नेतृत्व में यह अध्ययन एम. नागेंद्र बाबू एवं डॉ वेंकटेश अंबत्ती के सहयोग से किया गया है। यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है। प्रोफेसर राजेश नायर बताते हैं कि भूकंपीय छवियों के कम रिज़ॉल्यूशन और वेल-लॉग और भूकंपीय सर्वेक्षणों से प्राप्त डेटा के संबंध को स्थापित करने में कठिनाई से भूमिगत संरचनाओं की इमेजिंग चुनौतीपूर्ण होती है। हमारी टीम ने जटिल कूप लॉग और भूकंपीय डेटा से हाइड्रोकार्बन क्षेत्र की भविष्यवाणी करने के लिए यह नयी पद्धति विकसित की है।
पॉइसन इम्पीडेंस का भी पता लगा
शोधकर्ताओं ने अपने विश्लेषण में ‘पॉइसन इम्पीडेंस’ (PI) नामक एक उल्लेखनीय प्रवृति की भी पहचान की है। बलुआ पत्थर के भंडार क्षेत्र में द्रव सामग्री की पहचान करने के लिए पीआई का उपयोग किया गया है। इसके निष्कर्षों के आधार पर शोधकर्ताओं का दावा है कि पारंपरिक विधियों की तुलना में हाइड्रोकार्बन क्षेत्र का अनुमान लगाने में यह पद्धति अधिक प्रभावी पायी गई है।
चित्र परिचय : एम. नागेंद्र बाबू, प्रोफेसर राजेश नायर और डॉ वेंकटेश अंबत्ती (बाएं से दाएं)
इंडिया साइंस वायर से साभार