स्वस्थ भारत मीडिया
समाचार / News

शिशुओं को निगल रहा है डायरिया

riya newsएक से पांच साल तक की उम्र में होने वाली मृत्यु में 17 प्रतिशत शिशुओं की मृत्यु की वजह डायरिया है। 7,60,000 पांच साल से कम उम्र के बच्चे प्रतिवर्ष डायरिया की भेंट चढ़ जाते हैं। भारत में आधिकारिक श्रोतों के अनुसार 01 से 04 साल तक की उम्र में जिन बच्चों की मृत्यु हो जाती है, उनमें 24 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मृत्यु की वजह डायरिया है और इसी प्रकार 05 से 14 वर्ष तक के 17 प्रतिशत बच्चे डायरिया की वजह से मौत के शिकार होते है। डायरिया की वजह से सबसे अधिक नवजात शिशुओं की मृत्यु 06 माह से लेकर 12 माह के बीच हुई है। जिन परिवारों में नवजात शिशु हो उनके लिए यह छह महीने अधिक संवेदनशील हैं और इन महीनों में सबसे अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है।
दुनिया में विकासशील देशों के अंदर डायरिया (दस्त) एक आम बीमारी है। जिसकी चपेट में सबसे अधिक नवजात शिशु आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में पांच वर्ष से कम उम्र के नवजात आठ लाख बच्चे डायरिया की वजह से मौत के मुंह में चले जाते हैं। मरने वाले बच्चों में अधिकांश विकासशील देशों से होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात शिुशुओं की मृत्यु की वजह लगभग 90 फीसदी मामलों में गंदे पानी का इस्तेमाल, अस्वच्छता और साफ-सफाई की कमी है। डायरिया को लेकर द यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस एमरजेंसी फंड की राय भी कुछ ऐसी ही है। कई विकासशील देशों ने स्वच्छता और साफ-सफाई को लेकर जागरूकता अभियान चलाने में बहुत सारा पैसा खासतौर से पिछले दो दशकों में खर्च किया है। लेकिन इसका कोई खास असर बीमारी से हो रही मृत्यु पर पड़ता नहीं दिखा। डायरिया से आज भी औसतन 2200 बच्चों की मृत्यु प्रतिदिन हो रही है। यह मलेरिया और एड्स की वजह से मरने वाले कुल मरीजों की संख्या से भी अधिक बड़ी संख्या है।
यह तो हम जानते हैं कि मानव मल खुला ना छोड़कर और अपने आस-पास स्वच्छता का ख्याल रख कर डायरिया के संक्रमण से बच सकते हैं। कई बार स्वच्छता का ख्याल न रख पाने की वजह से और कई बार मक्खी, पौधे, मछली, दूसरे जानवारों, मिट्टी और पानी के माध्यम से भी बीमारी घर के अंदर दाखिल हो जाती है। इसलिए बीमारी से बचने के लिए हमें कुछ अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। मसलन टॉयलेट के इस्तेमाल के बाद हाथ की सफाई करना हमारी आदत में शामिल होना चाहिए। घर जिसमें हम रहते है, उसकी साफ-सफाई जरूरी है। जहां हम काम करते हैं और हमारी रसोई भी साफ सुथरी होनी चाहिए। पैर खाली नहीं होना चाहिए, हमें जूता या चप्पल पहनना चाहिए। यूनिसेफ से डायरिया से बचाव के लिए ‘वाशÓ का मंत्र दिया। वाश बना है, वाटर, सेनीटेशन और हाइजीन से। यह बात अब स्पष्ट है कि अस्वच्छ पानी और साफ-सफाई की कमी डायरिया की मुख्य वजह है। लेकिन इन कमियों का प्रभाव रोगी और रोग पर क्या पड़ता है, इस विषय पर अभी अध्ययन
हो रहा है।
पानी और सफाई किसी भी देश के टिकाऊ विकास के लिए जरूरी है। इस बात को संयुक्त राष्ट्र ने सितंबर 2015 में अपने 17 सस्टनेबल डेवलपमेंट गोल में शामिल करके अधिक स्पष्टता प्रदान की। 17 टिकाऊ विकास के लक्ष्यों में छ_ा लक्ष्य पानी और स्वच्छता को संयुक्त राष्ट्र 2030 तक हर एक व्यक्ति तक पहुंचाने की वकालत करता है। यह लक्ष्य आज की तारिख में भारत के लिए भी पा लेना एक बड़ी चुनौती है। इसके बावजूद की भारत में प्रधानमंत्री के आग्रह पर स्वच्छता का अभियान देश में ‘स्वच्छ भारत अभियानÓ के नाम से जोर शोर से आंदोलन की तरह चलाया जा रहा है। 2014 विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के आंकड़े बताते हैं कि भारत उन 45 देशों के समूह में शामिल है, जहां स्वच्छता आधी आबादी की पहुंच में भी नहीं है। प्रतिशत में आंकड़ा पचास फीसदी से भी कम का है। जिसकी वजह से देश की बड़ी आबादी गंदगी के बीच जीने को विवश है। डायरिया में ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ओआरएस) देने की शुरूआत भारत में हुई। धीरे-धीरे इसे पूरी दुनिया में स्वीकार किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह रोग धीरे-धीरे नियंत्रित हो रहा है। जहां विकासशील देशों में प्रति हजार नवजात शिशुओं में 13.6 शिशुओं की मृत्यु 1982 तक हो जाती थी, 1992 में वह घटकर 5.6 हो गया और 2000 में वह 4.9 रह गया।
भारत सरकार भी डायरिया को लेकर गंभीर है। इसलिए सरकार ने डायरिया से बचाव का विशेष कार्यक्रम बनाया है। जिसके अंतर्गत साबून से हाथ की अच्छी तरह सफाई का प्रचार किया जा रहा है, सप्लाई की पानी की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार, सामुदायिक स्तर पर साफ-सफाई को प्रोत्साहन, डायरिया से बचाव के साधन जन साधारण तक सहजता से उपलŽध कराने का प्रयास, आंकड़े बताते हैं कि भारत में ओआरएस का प्रयोग बढ़ा है, इस संबंध में समाज को और अधिक जागरूक होने की जरूरत है। एक शोध पत्र में बताया गया है कि ग्रामीण बिहार में सिर्फ 3.5 प्रतिशत स्वास्थ्य कर्मचारी डायरिया के ईलाज के लिए ओआरएस इस्तेमाल करने की सलाह परिवारों को दे रहे हैं। इस तरह के अध्ययनों के बाद प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की आवश्यकता को भी महसूस किया गया है, जो सामुदायिक स्तर पर समाज को डायरिया के संबंध में जागरूक कर पाए।
एक अहम सवाल यह भी है कि बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर हमारी योजना क्या है? हम यानी आम लोग और सरकार किस तरह से इस समस्या से निजात पाना चाहते हैं। जब हम शिशुओं के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो हमें मांओं के स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना होगा। ऊपर के आंकड़े बता रहे हैं कि डायरिया से मरने वाले
ज्यादातर शिशुओं की उम्र 6 माह से 12 माह है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस उम्र के बच्चे अमूमन मां का दूध ही पीते हैं। ऐसे में उनके स्वास्थ्य का संबंध मां के स्वास्थ्य से सीधे जुड़ता है। ऐसे में अगर डायरिया उन्मूलन को लेकर किसी भी तरह का अभियान या जागरूकता कैंपेन चलाने की पहल सरकार कर रही है तो उसे इन बिंदुओं पर भी गंभीरता से सोचना चाहिए। उसे अपने कैंपेन में माताओं के आहार-विहार को शामिल अवश्य करना चाहिए। यदि माताएं अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हो गयीं तो निश्चित रूप से डायरिया की बैक्ट्रिया से जूझने व लडऩे की ताकत शिशुओं में भी आयेगी। वैसे हम सब स्वाभाविक रूप से अपने स्वास्थ्य को लेकर कम सचेत व सजग रहते हैंं। भारतीय महिलाओं के संदर्भ में यह बात और भी प्रासंगिक है। शिशु को दूध पिला रही मां का स्वास्थ्य अगर किसी भी कारण से स्वास्थ्य-मानकों के अनुरूप नहीं है तो उसका असर दूध पी रहे शिशु के स्वास्थ्य पर निश्चित रूप से पड़ता है।
ऐसे में जरूरत इस बात की भी है कि सरकार डायरिया से जुड़े पुराने आंकड़ों के आधार पर डायरिया उन्मूलन के लिए प्राथमिकता तय करे और योजना बनाएं।  ताकि सही मायने में देश को  भविष्य में स्वस्थ मानव संसाधन मिल सके।साभारः दैनिक जागरण

Related posts

Research : मिर्गी की बीमारी में योग से मिलेगी राहत

admin

New way found to enhance strength and ductility of high entropy alloys

26 जनवरी को लाॅन्च होगी कोरोनारोधी नेजल वैक्सीन

admin

Leave a Comment