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‘अमृतकाल’ के रोडमैप पर वैज्ञानिकों का विमर्श

नई दिल्ली। लाल किले की प्राचीर से 75वें स्‍वतंत्रता दिवस पर ‘आजादी का अमृत महोत्‍सव’ मनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब आजादी के 75 वर्षों की बात की, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि आगामी 25 वर्ष (2022-2047) ‘अमृतकाल’ होगा। इस कालखण्ड में हमारे संकल्‍पों की सिद्धि, हमें स्वतंत्रता के 100वें वर्ष तक लेकर जाएगी। प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण इसी पर आधारित है कि 25 साल बाद 2047 में देश जब स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मनाएगा, तब तक हमें उतना सामर्थ्यवान बनना होगा, जितना हम पहले कभी नहीं थे।

सपना साकार करने की तैयारी

प्रधानमंत्री के विजन-2047 को साकार करने से जुड़ी एक नई पहल के अंतर्गत हैदराबाद में हाल में दो दिवसीय साइंस लीडर्स कॉन्क्लेव आयोजित किया गया जिसमें शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों के प्रमुख और विचारकों ने आगामी 25 वर्षों के दौरान देश को विज्ञान के क्षेत्र में महाशक्ति बनाने के लिए रोडमैप पेश किया। वैज्ञानिक समुदाय के प्रमुखों ने उल्लेख किया कि भारत में भविष्य का रोडमैप मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन, सतत विकास लक्ष्यों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोगों पर केंद्रित होना चाहिए।

150 विशेषज्ञों ने किया मंथन

सम्मेलन का आयोजन सीएसआईआर-भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (IICT), हैदराबाद में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं विज्ञान भारती द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के महानिदेशक डॉ. शेखर सी. मांडे, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) सचिव डॉ. एस. चंद्रशेखर, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) सचिव डॉ. राजेश एस. गोखले और विज्ञान भारती के संगठन सचिव श्री जयंत सहस्रबुद्धे ने कॉन्क्लेव का उद्घाटन किया जिसमें देश भर के विभिन्न सरकारी वैज्ञानिक संस्थानों के 150 से अधिक प्रमुखों ने भाग लिया। इस अवसर पर मौजूद केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री किशन रेड्डी ने कहा- ‘भारत के वैज्ञानिक वैश्विक समस्याओं का समाधान पेश करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। कोविड-19 वैक्सीन के विकास में हमने यह देखा है। भारत अब सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होने की दिशा में काम कर रहा है। सरकार मौलिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी विकास, वैज्ञानिक अनुसंधान का समर्थन एवं स्टार्टअप समर्थन के लिए प्रतिबद्ध है।’ उन्होंने मंत्रालयों और उद्योग जगत के अनुसंधान संगठनों से विश्व स्तरीय उत्पाद विकसित करने के लिए मिलकर काम करने और अगले 25 वर्षों में भारत की युवा शक्ति को सही दिशा में उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया है। विज्ञान संस्थानों के प्रमुखों के इस सम्मेलन में सामाजिक समस्याओं और लक्ष्यों पर विचार-विमर्श के साथ-साथ ‘अमृतकाल’ में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका को लेकर विस्तृत चर्चा की गई। इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, ऊर्जा सुरक्षा, सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और जल, कृषि एवं पर्यावरण प्रबंधन के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोग जैसे विषय मुख्य रूप से शामिल रहे हैं।

अधिक समन्वय की जरूरत

केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह भी इस संदर्भ में कुछ समय पूर्व कह चुके हैं कि युवा प्रतिभाओं का पोषण स्वतंत्रता के 100वें वर्ष के लिए सबसे अच्छा निवेश होगा। सम्मेलन के संयोजक और सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (NBRI), लखनऊ के निदेशक एस.के. बारिक ने कहा कि यह एक ऐसा अवसर है जब हमें देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की आधारशिला रखने वाले स्वतंत्रता पूर्व के भारत के हमारे महान वैज्ञानिकों की भूमिका को याद करते हुए भविष्य की रूपरेखा तैयार करने की जरूरत है। कोविड प्रकोप के समय रिकॉर्ड समय में टीके का विकास करने में वैज्ञानिक संस्थानों के बीच समन्वय को स्मरण करते हुए सम्मेलन में उपस्थित विशेषज्ञों द्वारा यह सहमति भी व्यक्त की गई कि भविष्य में प्रभावी परिणाम प्राप्त करने के लिए अधिक समन्वय और सहयोग की आवश्यकता होगी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. एस. चंद्रशेखर ने कहा-समाज के कल्याण के लिए निर्णय मंत्री स्तर पर लिए जाते हैं, उनके प्रसार का दायित्व राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं पर निर्भर करता है। देश में विज्ञान को आगे ले जाने में प्रयोगशालाओं की प्रमुख भूमिका है। डीबीटी सचिव डॉ. राजेश एस. गोखले ने कहा कि भारत ने कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए बेहद कम समय में टीके विकसित करके अपनी वैज्ञानिक क्षमता प्रदर्शित की है। उन्होंने कहा कि यह देश भर की विभिन्न प्रयोगशालाओं के सहयोग से ही संभव है।

रोडमैप तैयार करने पर बल

विज्ञान भारती के महासचिव सुधीर भदौरिया ने बदलाव के लिए विज्ञान के अधिक प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया। विज्ञान भारती के संगठन सचिव श्री जयंत सहस्रबुद्धे ने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व विपरीत परिस्थितियों में वैज्ञानिकों ने अपने संघर्ष के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया। उन्होंने हम पर विज्ञान की प्रगति के लिए सही मनोभाव विकसित करने की बड़ी जिम्मेदारी छोड़ी है। इस अवसर पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग (DRDO) के अध्यक्ष डॉ. जी. सतीश रेड्डीय डॉ वी.एम. तिवारी, निदेशक (अतिरिक्त) सीएसआईआर-आईआईसीटी एवं निदेशक, सीएसआईआर-एनजीआरआई और डीआरडीओ के अनुसंधान केंद्र इमारत के निदेशक डॉ. यू. राजाबाबू, डॉ. वी.के. सारस्वत, सदस्य, नीति आयोग, डॉ. टी. महापात्रा, सचिव, कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग भी उपस्थित थे।

इंडिया साइंस वायर से साभार

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