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पहली बार दुनिया में भारत लीड कर रहा आयुर्वेद को  : डॉ. वार्ष्णेय

स्वास्थ्य संसद 2023 : अमृत तत्व-4
  • बदलाव के इस दौर में स्वास्थ्य क्षेत्र पीछे  
  • क्लिनिक, अस्पताल और डॉक्टर बढ़े लेकिन मरीज और बीमारी कम नहीं
  • भारतीय समाज में स्वास्थ्य के प्रिवेंटिव आयाम रिवाजों का हिस्सा
महिमा सिंह/अजय वर्मा

नयी दिल्ली/भोपाल। स्वास्थ्य संसद के दौरान भारत का स्वास्थ्य और मीडिया की भूमिका पर मंथन हुआ। इसमें आरोग्य भारती संस्थान के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अशोक वार्ष्णेय और डायलॉग इंडिया व मौलिक भारत के संपादक अनुज अग्रवाल ने अपनी राय रखी।

डॉ. वार्ष्णेय ने कहा कि आम आदमी और मीडिया के लोगों को यह समझना होगा कि हेल्थ और चिकित्सा दोनों अलग है जबकि आम आदमी इसे एक ही समझता है। उसे मेडिकल कैम्प और हेल्थ अवेरनेस कैम्प एक ही लगता है। लेकिन बदलाव के इस दौर में स्वास्थ्य क्षेत्र क्यों पीछे रहे। अधिकांश लोग यही सोचते है कि खाते-पीते काम करते रहो, बीमार ना पड़ो। इतना खर्च कौन करेगा दवा पर। कोविड महामारी में ही 143 करोड़ आबादी वाले भारत ने उपचार के सहारे वायरस को हरा दिया जबकि जो अस्पताल गए, उनमें से ज्यादातर घर नहीं आए।

हमारे यहां प्रिवेंटिव आयाम हमेशा शामिल रहा है। छोटे-छोटे व्यवहार और आदत में यह झलकता है। मसलन मंदिर जाते हैं तो प्रसाद में एक चम्मच गंगा जल और 2 तुलसी दल मिलता है। उसे आप खाकर आगे बढ़ जाते है। वो 2 पत्ता तुलसी जो अपने खाली पेट खाया, वह पूरे दिन आपके पेट की सेहत का खयाल रखता है। पाचन दुरुस्त रखता है। चैत्र माह में नीम की कोंपल या पत्तियों को खाया जाता है जो रक्त साफ करता है व पेट और शरीर को ठंडक देता है। इस तरीके की स्वास्थ्य से जुड़ी रीतियाँ, त्योहार दैनिक व्यवहार में है जिनका हमें फायदा मिलता है। वायरस का असर कम होने पर भी लोग गरम पानी और काढ़़ा पीते है और 60 प्रतिशत लोग नियमित योग कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि विज्ञान और तकनीक के युग में भी सुविधा कम, असुविधा अधिक है। लोगों की दिनचर्या और आहार-विहार खराब है। इससे लाइफ स्टाइल बीमारी का जन्म होता है। जीवनचर्या ठीक कर इसे संभाला जा सकता है। अगर 50 प्रतिशत लोग भी इसमें सुधार करें तो बीमारी नहीं होगी। उपचार में लगने वाला धन राष्ट्र के विकास में काम आएगा।

उनके मुताबिक फार्मा कंपनी द्वारा 1839 में लिखी गयी  किताब पढ़ कर लोग डॉक्टर बनते हैं। वो कभी अपने विरोध के पक्ष प्रिवेंटिव एस्पेक्ट को लिखेंगे ही नहीं। इसकी ठोस जानकारी तो दादी-माताओं को होती थी। आज की चिकित्सा व्यवस्था पैथी केंद्रित है। बीते सालों में क्लिनिक, अस्पताल और डॉक्टर बढ़े लेकिन मरीज और बीमारी कम नहीं हुई। यहीं मीडिया का काम शुरू होता है। व्यक्ति स्वस्थ्य कैसे रहे, यह बताने का काम उसका ही है। कोई भी अस्पताल सेवाभाव से नहीं चलता। सब धन और प्रोटोकाल से चलते है। अस्पताल और डॉक्टरों की भीड़ से स्वास्थ्य और वेलनेस नहीं आने को। हमारे जैसे देश के लिए प्रिवेंटिव एस्पेक्ट काफी महत्वपूर्ण है। उसका हर किसी तक पहुँच निश्चित करना मीडिया का काम है। आज दुनिया भर में इलनेस से ज्यादा वेलनेस की चर्चा है। पर हमें हैपीनेस पर भी ध्यान देना है। वास्तविक स्वास्थ्य वह है जब शरीर और मन प्रसन्न हो। भारतीय ट्रेडिशनल मेडिसिन सिस्टम को अब दुनिया ने माना है। हमें भी इसे पालन करना चाहिए। इसे समझकर ही डब्लू एच ओ ने 2020 में आयुर्वेद को इंटेरनेशनल हेल्थ व्यवस्था का हिस्सा माना। 170 देशों ने अपनी ट्रेडिशनल मेडिसिन व्यवस्था को फिर से फॉलो करना शुरू कर दिया है। खास बात ये है कि बीते 75 सालों में पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत आयुर्वेद और ट्रेडिशनल मेडिसिन के प्रतिनिधि के रूप में दुनिया को लीड कर रहा है।

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