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जनऔषधि के निर्माण में क्वालिटी से समझौता नहीं : कुंदन सिंह

स्वास्थ्य संसद 2024: अमृत तत्व-5
  • सस्ती दवा के लिए ही जनऔषधि पर फोकस
  • हेल्थ सेक्टर में इंष्युरेंस टेररिज्म का बोलबाला : डॉ. शशांक
  • दुनियाभर में भारतीय दवा की मांग :   धीप्रज्ञ

नयी दिल्ली/भोपाल। स्वास्थ्य संसद-2023 के दूसरे दिन स्वस्थ भारत के निर्माण में जनऔषधि, पोषण और आयुष्मान की भूमिका पर अमृत मंथन हुआ जिसका संचालन धीप्रज्ञ द्विवेदी ने किया। इसमें फार्मास्यूटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइस ब्यूरो के डीजीएम कुंदन सिंह ने जनऔषधि को लेकर कई महत्वपर्ण जानकारियां दीं।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की चिंता लोगों तक सस्ती दवा उपलब्ध कराने की है और उसी मकसद से जनऔषधि पर फोकस किया जा रहा है। वे चाहते हें कि कम-से-कम दवा के बिना किसी की मौत न हो। अब तक इसके 9 हजार से अधिक केंद्र चालू हैं लेकिन 2025 तक 10 हजार केंद्र खुल जायेंगे। हमारे यहां क्वालिटी से समझौता नहीं किया जाता।
उन्होंने कहा कि आज भी लोगों के मन में भ्रम हैं कि महंगी दवा कारगर होती है। इसे जागरूकता से ही दूर किया जा सकता है। आप ताज्जुब करेंगे कि महज 151 स्टाफ के बूते इतना बड़ा प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। ऑडिटोरियम में उपस्थित श्रोताओं के सवाल पर उन्होंने कहा कि दवा निर्माण की सभी कच्ची सामग्री अगले पांच साल में भारत में बनने लगेगी। इसके लिए सरकार ने 50 हजार करोड़ का आवंटन किया हुआ है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कोई भी इसके ऐप janaushadhidugam पर जाकर दवा संबंधी जानकारी पा सकता है।

विज्ञान संचारक और मेवाड़ विष्वद्यिालय के निदेशक डॉ. शशांक द्विवेदी ने कहा कि सस्ती चिकित्सा देश की जरूरत है इसलिए आयुष्मान योजना को व्यापक रूप से बढ़ाने की जरूरत है। इसका लाभ सबको मिलना चाहिए। जनऔषधि को लेकर उनकी षिकायत थी कि इसके केंद्रों पर ब्रांडेड दवा भी मिल जाती है जो दुखद है। उन्होंने मेडिकल टेररिज्म के साथ ही हेल्थ इंश्युरेंस टेररिज्म की कड़ी निंदा की जहां लोगों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के नाम पर लूटा जाता है। डॉ. द्विवेदी ने छात्रों का आह्वान किया कि वे मेडिकल जर्नलिज्म करें और नूडल्स पत्रकारिता से बचें। पोषण और श्रीअन्न पर काम करें।
इस सत्र का संचालन कर रहे धीप्रज्ञ द्विवेदी ने जानकारी दी कि दुनिया भर में भारत निर्मित दवा की मांग है। यह कारोबार तीन बिलियन का है। दुनिया भर में 70 फीसद भारतीय वैक्सीन का प्रयोग हुआ है। अमेरिका के बाजार में 70 फीसद भारतीय दवा ही उपलब्ध है।

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