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जेनरिक दवाइयां अनिवार्य रूप से देश के सभी दवा दुकानों पर उपलब्ध होनी चाहिए

इस काम में चिकित्सक, फार्मासिस्ट, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, स्वास्थ्य पत्रकार, सरकार के प्रतिनिधि, दवा कंपनियों के मालिक सभी को मिलकर देशहित में एकजुट होकर फैसला करना होगा। अगर ऐसा करने में हम सफल रहे तो निश्चित रूप से भारत में महंगी दवाइयों के कारण पनपी गरीबी को रोका जा सकता है।

आशुतोष कुमार सिंह
ट्वीटर हैंडलः ashutosh_swasth
भारत जैसे देश में लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराना किसी भी सरकार के लिए आसान काम नहीं है। वह भी उस समय जब दवा का बाजार 1 लाख करोड़ रुपये के आस-पास हो। जब पूरा बाजार लोगों को लूटने में लगा हो उस समय लोगों को गुणवत्तायुक्त सस्ती दवाइयां मिल सके इसके लिए अब सरकार को कड़े फैसले लेने चाहिए।

 
प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के अंतर्गत भारत सरकार निश्चित रूप से लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने में जुटी है। जाने-अनजाने में सरकार ने एक समानान्तर दवा बाजार बनाने की कोशिश की है। एक बाजार जिस दवा को 100 रुपये में बेच रहा है, उसी दवा को जनऔषधि केन्द्र में 10 रुपये में बेचा जा रहा है। मुनाफे के खेल को खत्म करने की एक सार्थक कदम भारत सरकार ने उठाया है। लेकिन सही अर्थों में 3600 जनऔषधि केन्द्रों से देश की सवा अरब जनता को सस्ती दवाइयां नहीं उपलब्ध कराई जा सकती है। इसके लिए सरकार को दवा बाजार के अर्थतंत्र को ठीक से समझना होगा। बाजार के खेल को समझना होगा। बिना इसे समझे सरकार आम लोगों तक सस्ती दवाइयों की खुराक नहीं पहुंचा सकती है।
मेरे पास एक उपाय है। अगर सरकार मेरे सुझाओं पर अमल करे तो लोगों को सस्ती दवाइयां मिल सकती हैं। सबसे पहला उपाय तो यह है कि देश के सभी पंचायतों में जनऔषधि केन्द्र खोले जाएं। और इन केन्द्रों पर फार्मासिस्ट सरकार के तरफ से रखे जाएं। इससे लोगों को सस्ती दवाइयां भी मिलेगी और बेरोजगार फार्मासिस्टों को रोजगार भी मिलेगा।
दूसरा उपाय यह है कि देश की जितनी दवा दुकाने हैं, उन दवा दुकानों पर अनिवार्य रूप से जनऔषधि की दवाइयां रखवाई जाए। अगर इन दवा दुकानों पर कानून जनऔषधि की दवाइयां उपलब्ध कराई जायेंगी तो निश्चित रूप से सस्ती दवाइयों को नीचे तक ले जाया जा सकता है। जो दुकानदार जेनरिक दवाइयां रखने से मना करे उसका लाइसेंस रद्द करने का कानूनन प्रावधान हो।
यह बात हुई दवा की उपलब्धता की। लेकिन इससे बड़ी समस्या यह है कि चिकित्सक जेनरिक दवा लिखते ही नहीं है। इसके लिए यह जरूरी है कि सरकार इसकी अनिवार्यता भी सुनिश्चित करे की डॉक्टर जेनरिक दवाइयां लिखे। जेनरिक दवाइयाों को लेकर चिकित्सकों का यह कहना है कि मल्टी मोलीक्योर्स दवा को अलग-अलग लिखना आसान नहीं है। इसका भी उपाय है। सरकार जितने भी मिश्रित साल्ट वाली दवाइयां हैं उनका एक जेनरिक नाम खुद तय कर दे। चिकित्सकों को उस मिश्रित साल्ट को उसी नाम से लिखने के लिए कानूनन बाध्य किया जाए। तब जाकर दवा के नाम पर मची लूट पर अंकूश लगाया जा सकता है।
इस काम में चिकित्सक, फार्मासिस्ट, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, स्वास्थ्य पत्रकार, सरकार के प्रतिनिधि, दवा कंपनियों के मालिक सभी को मिलकर देशहित में एकजुट होकर फैसला करना होगा। अगर ऐसा करने में हम सफल रहे तो निश्चित रूप से भारत में महंगी दवाइयों के कारण पनपी गरीबी को रोका जा सकता है। और स्वस्थ भारत विकसित भारत के सपने को एक नव पंख लग सकता है।
 

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