नयी दिल्ली। स्वास्थ्य मंत्रालय पिछले वित्तीय वर्ष 2023-24 में आवंटित धन का 10 फीसद से अधिक उपयोग नहीं कर सका। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के बाद से यह मंत्रालय द्वारा अप्रयुक्त छोड़े गए धन का उच्चतम अनुपात है। वास्तविक रूप से खर्च न की गई राशि 8550.21 करोड़ रुपये बैठती है। यह चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सभी नए 16 एम्स जैसे संस्थानों की स्थापना व्यय के रूप में आवंटित राशि से अधिक है। इस उद्देश्य के लिए अनुमानित व्यय 6800 करोड़ रुपये है।
कम खर्च का सिलसिला हाल से
अंग्रेजी मीडिया की खबर के मुताबिक पिछले छह वर्षों पर नजर डालें तो स्वास्थ्य के लिए आवंटित धन के कम उपयोग की प्रवृत्ति 2022-23 से शुरू हुई। 2019-20 से शुरू होकर स्वास्थ्य मंत्रालय का संशोधित अनुमान लगातार चार वर्षों तक बजट अनुमान से अधिक था। दूसरे शब्दों में उन चार वर्षों में, मंत्रालय को उसके लिए शुरू में निर्धारित बजट से अधिक धन आवंटित किया गया। यह ऐसे समय में आया है जब भारत का स्वास्थ्य पर आवंटित व्यय पहले से ही दुनिया में सबसे कम में से एक है। जेब से खर्च में गिरावट के बावजूद स्वास्थ्य लागत हर साल हजारों लोगों को गरीबी में धकेलने का एक कारक रही है, जिसकी पुष्टि सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने भी एक रिपोर्ट में की है। मोदी सरकार द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में हर साल स्वास्थ्य बजट बढ़ाने की परिकल्पना की गई है ताकि 2025 तक स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 फीसद खर्च करने के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके। लेकिन यह गिरावट देश को विपरीत दिशा में ले जाती दिख रही है।
HPV वैक्सीन का जिक्र नहीं
इस साल फरवरी में अपने अंतरिम बजट भाषण में सीतारमण ने घोषणा की थी कि सरकार सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए 9-14 वर्ष की आयु वर्ग की लड़कियों को HPV वैक्सीन लेने के लिए प्रोत्साहित करेगी। हालाँकि कोई बजटीय विवरण नहीं दिया गया। उम्मीद थी कि इस बार अपने पूर्ण बजट में वह इस कार्यक्रम का ब्यौरा देंगी. लेकिन इस बार बजट में HPV वैक्सीन रोल-आउट का कोई जिक्र नहीं था।
PMSSY में भी कमी
प्रधान मंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) के दो घटक हैं -एम्स की स्थापना और मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों और संस्थानों का उन्नयन। यह महत्वपूर्ण है कि PMSSY बजट में गिरावट आई है। दस्तावेज़ में एम्स की स्थिति का भी पता चलता है। इसमें कहा गया है कि वाजपेयी सरकार के दौरान संकल्पित छह एम्स-भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश पूरी तरह कार्यात्मक हैं। लेकिन बजट दस्तावेज़ में मोदी सरकार के 10 वर्षों के दौरान बनाए गए 16 नए एम्स में से किसी के लिए भी ‘पूरी तरह कार्यात्मक’ वाक्यांश का उपयोग नहीं किया गया है। इसमें कहा गया है-आगे के चरणों में कैबिनेट द्वारा 16 एम्स को मंजूरी/अनुमोदन दिया गया है और जिनमें से 11 एम्स काम कर रहे हैं। ये एम्स हैं-गोरखपुर, रायबरेली, नागपुर, कल्याणी, मंगलगिरि, बीबीनगर, बठिंडा, देवघर, बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश), राजकोट और गुवाहाटी। विजयपुर (जम्मू), मदुरै, दरभंगा, अवंतीपुरा (कश्मीर) और मनेठी (हरियाणा) में एम्स पहले स्थान पर चालू होने के लिए लंबित हैं।
स्वास्थ्य शिक्षा खर्च में गिरावट
दूसरा मद जिसमें उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है वह है स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा के लिए मानव संसाधन। इस वर्ष के लिए केवल 1274.8 करोड़ रुपये का परिव्यय है। इसका एक कारण यह हो सकता है कि यह योजना पिछले वर्ष के 6500 करोड़ रुपये के बजटीय आवंटन के मुकाबले केवल 1519 करोड़ रुपये ही खर्च कर सकी।
जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान के बजट में कटौती
इसी तरह, विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास विभाग के बजट में भी 500 करोड़ रुपये की कटौती की गई। ऐसा पिछले वर्ष आवंटित राशि के आधे से भी कम उपयोग के कारण हो सकता है। ICMR को इस साल 300 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी मिली है।
(बनजोत कौर की रिपोर्ट का संपादित अंश)