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मानसिक रोगों का महत्वपूर्ण कारण लाइफस्टाइल

डॉ. अभिलाषा द्विवेदी

आजकल मानसिक रोगों से संबंधित समस्याओं में दिन प्रति दिन वृद्धि हो रही हैं. इसके कारण अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन हमारी बदलती हुई लाइफस्टाइल भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। मनोभाव केंद्रित नीति द्वारा तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय व्यक्ति इमोशनल बिहैवियर को दिखाता है। यद्यपि, यदि कोई व्यक्ति स्ट्रेस का सामना करने में असक्षम होता है तब वह प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त कूटनीति की ओर रूझान कर लेता है। यदि ये निरंतर अपनाए जाएं तो विभिन्न प्रकार के मनोविकार उत्पन्न हो सकते हैं।
प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त व्यवहार परिस्थिति का सामना करने में सक्षम नहीं बनाते है। यह सिर्फ अपनी कार्यवाहियों को व्यवहारिक दिखाने का माध्यम मात्र है। ज्वर, खांसी, जुकाम इत्यदि जैसी शारीरिक समस्या विभिन्न प्रकार के मनोविकार होते हैं। इन वर्गों के मनोविकारों की सूची निम्न एंग्जायटी से लेकर गंभीर साइकिक डिसऑर्डर जैसे मैनीपुलेशन या खंडित मानसिकता तक है। आइए यहां हम मानसिक रोगों के प्रकारों पर एक दृष्टि डालें।
1. साइकोसोमेटिक और सोमेटिक डिसऑर्डर-आज के समय में कुछ बीमारियाँ बहुत ही सामान्य बन चुकी हैं जैसे लो ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज इत्यादि। हालाँकि, ये सभी शारीरिक समस्या हैं लेकिन ये मनावैज्ञानिक कारणों जैसे स्ट्रेस और एंग्जायटी से उत्पन्न होती हैं। इसलिए साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर अर्थात मनोदैहिक विकार व मानसिक समस्याएं हैं जो शारीरिक लक्षण दर्शातीं हैं, लेकिन इसके कारण साइकोलॉजिकल होते हैं। वहीं मनोदैहिक की अवधारणा में मन का अर्थ मानस है और दैहिक का अर्थ शरीर है। इसके विपरीत सोमेटिक डिसऑर्डर वे विकार हैं जिनके लक्षण शारीरिक है परंतु इनके बायोलॉजिकल कारण सामने नहीं आते। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति पेट दर्द की शिकायत कर रहा है लेकिन तब भी व्यक्ति के पेट में कोई समस्या नहीं होती है।
2. चाइल्डहुड डिसऑर्डर-आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि बच्चे भी मेंटल डिसऑर्डर का शिकार हो सकते हैं। डीएसएम का चौथा इम्प्रैशन चाइल्डहुड के विभिन्न प्रकार के डिसऑर्डर का निदान ढूंढता है। आमतौर पर यह पहली बार शैशवकाल, बाल्यावस्था या किशोरावस्था में पहचान में आते हैं। इनमें से कुछ अटेंशन डेफेसिट-हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर पाए जाते हैं जिसमें बच्चा सावधान या फोक्सड नहीं रहता या वह हाइपर एक्टिविटी व्यवहार करता है और स्वलीन विकार जिसमें बच्चा अंतर्मुखी हो जाता है, बिल्कुल नहीं मुस्कुराता और देर से भाषा सीखता है।
3. साइकोएनालिसिस और मेंटली डिसऑर्डर-आपने अक्सर सड़क पर चलते हुए कभी किसी व्यक्ति को गंदे कपड़ों में, कूड़े के आसपास पड़े गंदे भोजन को खाते देखा होगा या फिर अजीब तरीके से बातचीत या बिहैव करते हुए देखा होगा। ऐसे व्यक्तियों में व्यक्ति, जगह और समय के विषय में कमजोर जानकारी होती है। हम अक्सर उन्हें पागल, बेसुध आदि कह देते हैं, लेकिन नैदानिक भाषा में इन्हें मेंटली डिसऑर्डर कहते हैं। ये मेंटल डिसऑर्डर की एक गंभीर स्थिति होती है, जो अशांत विचारों, मनोभावों और व्यवहार से होते हैं। साइकोएनालिसिस डिसऑर्डर में असंगत मानसिकता, दोषपूर्ण अभिज्ञा, संचालक कार्यकलापों में बाधा, नीरस और अनुपयुक्त भाव होते हैं। डिफ्रेनशीएशन का अर्थ किसी ऐसी चीज को देखना है जो वास्तव में फिजीकल रूप से वहाँ नहीं होती है, कुछ ऐसी आवाजें जो वहां पर वास्तव में नहीं हैं।
4. एंग्जायटी डिसऑर्डर-यदि कोई व्यक्ति बिना किसी विशेष कारण के डरा हुआ, भयभीत या चिंतित महसूस करता है तो कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति एंग्जायटी डिसऑर्डर से ग्रसित है। एंग्जायटी डिसऑर्डर के विभिन्न प्रकार होते हैं जिसमें चिंता की भावना विभिन्न रूपों में दिखाई देती है। इनमें से कुछ विकार किसी चीज से अत्यन्त और तर्कहीन डर के कारण होते हैं और जुनूनी-बाध्यकारी विकार जहां कोई व्यक्ति बार-बार एक ही बात सोचता रहता है और अपने कार्य को दोहराता है।
5. मूड डिसऑर्डर-वे व्यक्ति जो मूड डिसॉर्डर के अनुभवों से ग्रसित होते हैं, उनके मनोभाव लॉन्ग टर्म तक प्रतिबंधित हो जाते हैं। वे किसी एक मनोभाव पर स्थिर हो जाते हैं या इन भावों की श्रेणियों में बदलते रहते हैं। उदाहरण स्वरूप चाहे कोई व्यक्ति कुछ दिनों तक उदास रहे या किसी एक दिन उदास रहे और दूसरे ही दिन खुश रहे, उस के व्यवहार का परिस्थिति से कुछ संबंध न हो। इस तरह व्यक्ति के व्यवहारिक लक्षणों पर आश्रित मूड डिसऑर्डर दो प्रकार के होते हैं-
डिप्रेशन : डिप्रेशन ऐसी मेंटल स्टेज है जो उदासी, रूचि का अभाव और प्रतिदिन की क्रियाओं में प्रसन्नता का अभाव, नींद कम आना, भूख में कमी, वजन कम होना या ज्यादा भूख लगना और वजन बढ़ना, आलस, दोषी महसूस करना, अयोग्यता, असहायता, निराशा, एकाग्रता स्थापित करने में परेशानी और अपने व दूसरों के प्रति नकारात्मक विचारधारा के लक्षणों को दर्शाती है।
बाइपोलर डिसऑर्डर-बाइपोलर डिसऑर्डर एक गंभीर मानसिक रोग है, जिसमें बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की मनोदशा असामान्य रूप से बदलती है। इस बीमारी में वे कभी बहुत खुश, सक्रिय, उन्माद में रह सकते हैं।
6. विघटनशील विकार-किसी-किसी अभिघातज घटना के बाद व्यक्ति अपना पिछला अस्तित्व, गत घटनाएं और आसपास के लोगों को पहचानने में असमर्थ हो जाता है। नैदानिक मनोविज्ञान में इस तरह की समस्याओं को विघटनशील विकार कहा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजच्युत व समाज से पृथक हो जाता है। विघटनशील स्मृतिलोप, विघटनशील मनोविकार का एक वर्ग है, जिसमें व्यक्ति आमतौर पर किसी तनावपूर्ण घटना के बाद महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सूचना को याद करने में असमर्थ हो जाता है। विघटन की स्थिति में व्यक्ति अपने नये अस्तित्व को महसूस करता है। दूसरा वर्ग विघटनशील पहचान विकार है जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त तो खो ही देता है, वहीं नये अस्तित्व की कल्पना करने लगता है। अन्य वर्ग व्यक्तित्वलोप विकार है, जिसमें व्यक्ति अचानक बदलाव या भिन्न प्रकार से विचित्र महसूस करता है। व्यक्ति इस प्रकार महसूस करता है जैसे उसने अपने शरीर को त्याग दिया हो या फिर उसकी गतिविधियां अचानक से यांत्रिक या स्वप्न के जैसी हो जाती है।
7. पर्सनालिटी डिसॉर्डर-पर्सनालिटी डिसॉर्डर की जड़ें किसी व्यक्ति के शैशव काल से जुड़ीं होती हैं, जहां कुछ बच्चे लोचहीन और अशुद्व विचारधारा विकसित कर लेते हैं। ये विभिन्न पर्सनालिटी डिसॉर्डर व्यक्ति में हानिरहित अलगाव से लेकर भावनाहीन क्रमिक हत्यारे के रूप में सामने आते हैं। पर्सनालिटी डिसॉर्डर की श्रेणियों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहले, समूह की विशेषता अजीब और सनकी व्यवहार है। चिंता और शक दूसरे समूह की विशेषता है और तीसरे समूह की विशेषता है नाटकीय, भावपूर्ण और अनियमित व्यवहार। पहले समूह में व्यामोहाभ, अन्तराबन्धा, पागल (सिज़ोटाइपल) व्यक्तित्व विकार सम्मिलित हैं। दूसरे समूह में आश्रित, परिवर्जित, जुनूनी व्यक्तित्व मनोविकार बताए गए हैं। असामाजिक, सीमावर्ती, अभिनय (हिस्ट्राथमिक), आत्ममोही व्यक्तित्व विकार तीसरे समूह के अन्तर्गत आते हैं।

अब बात समाधान की

भौतिकतावाद, बाजारवाद हमेशा व्यक्तिवाद की वकालत करता है। उसके लिए व्यक्ति उपभोक्ता नहीं बल्कि स्वयं बाजार के पुष्ट होने का ईंधन है। शरीर की फिजियोलॉजी कहती है कि यदि हमें अपने मन मस्तिष्क को ठीक रखना है तो हैप्पी हॉर्माेन का शरीर में स्वतः स्राव होते रहना चाहिए। और यह बाजार नहीं देता है बल्कि देश-दुनिया समाज परिवार में दिया जाने वाला हमारा योगदान हमें सस्टेनेबल हैप्पी हॉर्माेन रिलीज करने में मदद करता है।
शारीरिक श्रम करना भी शरीर और मन के लिए अमृत समान है। शरीर से पसीना निकलना मनोदशा को दुरुस्त करने और मनोदैहिक समस्याओं को दूर करने में कारगर है।
अपनों का साथ, सुरक्षा और प्रेम की भावना उनका स्पर्श यह हमेशा मन को किसी भी दबाव या ट्रामा से उबरने में जादुई प्रभाव देता है। समस्याएं बहुत सारी हो सकती हैं किन्तु समाधान बहुत सरल है और वो है हमारी अपनी सांस्कृतिक जीवन पद्धति।

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