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एक बहुउपयोगी लेकिन विस्मृत फूल महुआ

एक बहुउपयोगी लेकिन विस्मृत फूल महुआ

अजय वर्मा

नयी दिल्ली। एक लोकगीत की पंक्ति है—महुआ चुवत आधी रैन हो रामा, चइत महीनवा…अभी चैत माह है और इसी माह का फल है महुआ। अगर इसे नशा से न जोड़ें तो स्वास्थ्य के लिहाज से यह प्रकृति का अनमोल उपहार है। इसे एक कल्पवृक्ष माना गया है जो इंसान समेत पृथ्वी के अन्य प्राणियों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद हैं। कवियों—साहित्यकारों के लिए उपमा—उपमेय, सब कुछ है। लोकगीतों में भी इसकी खुशबू बिखरी पड़ी है। हालांकि अब यह विस्मृत और सभ्य समाज से तिरस्कृत हो चुका है।

महुआ : पीएम ने भी सराहा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने मन की बात में भी इसकी खूबियों का जिक्र कर चुके हैं। पीएम मोदी ने कहा था कि महुआ के फूल गांव और आदिवासी समुदाय के लोगों के लिए बहुत खास है। इसका इस्तेमाल अब सिर्फ घर और मंदिरों की सजावट के लिए नहीं बल्कि कई अन्य प्रकार से भी किया जा रहा है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के राजाखोह गांव में चार बहनों ने महुआ से कुकीज बनाना शुरू किया है। तेलंगाना के आदिलाबाद की दो बहनें भी इसके फूलों से कई प्रकार के पकवान बनाती हैं। इससे स्वाद के साथ-साथ लोगों की सेहत को भी बढ़ावा मिल रहा है। महुआ (Madhuca Indica) का पेड़ मुख्य रूप से भारत, नेपाल और श्रीलंका के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है। भारत में महुआ के फल, बीज, फूल और छाल का इस्तेमाल जड़ी-बूटी के तौर पर किया जाता है। फरीदाबाद की न्यूट्रिशनिस्ट मीना कुमारी के अनुसार महुआ के फूलों में विभिन्न प्रकार के विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन और हेल्दी फैट पाया जाता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफलेमेटरी गुण होते हैं। यह सभी चीजें स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत फायदेमंद होती है।

महुआ खाने के फायदे

  • महुआ के बीज और फूल में प्राकृतिक तौर पर चीनी पाई जाती है। यह शरीर को तुरंत एनर्जी देने में मदद करती है। ग्रामीण इलाकों में शारीरिक कमजोरी और दुर्बलता को दूर करने के लिए महुआ के फूल और बीज का सेवन कई प्रकार से किया जाता है।
  • महुआ में मौजूद फाइबर जैसे तत्व पाचन क्रिया को दुरुस्त बनाने में मदद करते हैं। नियमित तौर पर महुआ का सेवन करने से पेट में दर्द, एसिडिटी और कब्ज की समस्या से राहत मिलती है। यह मल को मुलायम बनाकर मल त्याग की प्रक्रिया को भी आसान बनाता है।
  • महुआ के फूलों में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाकर संक्रामक बीमारियों का खतरा कम करते हैं।
  • महुआ के फूलों को सुखाकर कई प्रकार की मिठाइयां, ड्रिंक्स और दवाओं में मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है।
  • कुछ आदिवासी समाज में महुआ के बीजों का तेल निकालकर खाना पकाने में प्रयोग करते हैं।

महुआ : परिचय और इतिहास

इसके फूल सुंदर और मीठी सुंगंध वाले होते हैं। जब पुष्पित होते हैं तो वातावरण में नशीली खुशबू छा जाती है। यह आम आदमी का फूल और फल दोनों हैं। शहरी लोग इसे आदिवासियों का अन्न कहते हैं। पांचवे दशक में महुआ ग्रामीण जन-जीवन का आधार होता था। हर घर में शाम को महुआ के सूखे-फूल को धो-साफ कर चूल्हों में कंडा-उपरी की मंद आंच में पकाने के लिए रख देते थे। रातभर वह पकता, पक कर छुहारे की तरह हो जाता। ठंडा हो जाने पर उसे दही, दूध के साथ खाया जाता रहा। महुआ के पेड़ों के नीचे पडे मोती के दाने टप-टप चूते हैं सुबह देर तक। जो फूल में अधखिले रह जाते है, रात उन्हें सेती है, दूसरे दिन उनकी बारी होती है। पूरे पेड़ में एक भी पत्ता नहीं, सिर्फ टंगे हुए, गिरते हुए फूल। इतने सुकुमार कि कूंची में ही सूख जाते हैं, वे सूखकर ही गिरते हैं, उनकी मिठास मधु का पूर्ण आभास देती है। जहां से फूल झरे थे, महीने डेढ़ महीने बाद गुच्छों में फल बन जाते हैं। परिपक्व होने पर किसान इनको तोड़-पीटकर इनके बीज को निकाल-फोड़कर बीजी को सुखाकर इसका तेल बनाते है। इस तेल को गांव डोरी के तेल के नाम से जानता है। ऐंड़ी की विबाई, चमडे की पनही को कोमल करने देह में लगाने से लेकर खाने के काम आता है। गांव की लाठी कभी इसी तेल को पीकर मजबूत और सुन्दर साथी बनती थी।

महुआ : नाश्ता भी, भोजन भी

महुआ गर्मी के दिनों का नाश्ता तो है ही कभी-कभी पूरा भोजन भी होता है। बरसात के तिथि, त्योहारों में इसकी बनी पूड़ी सप्ताह तक कोमल और सुस्वाद बनी रहती है। मात्र आम के आचार के साथ इसे लेकर पूर्ण भोजन की तृप्ति प्राप्त होती है। इस महुए के फूल के आटे का कतरा सिंघाडे के फूल को फीका करता है। सूखे महुए के फूल को खपड़ी (गगरी) में भूनकर, हल्का गीला होने पर बाहर निकाल भुने तिल को मिलाकर, दोनों को कूटकर बडे लड्डू जैसे लाटा बनाकर रख लेने से वर्षान्त के दिनों में पानी के जून में, नाश्ते के रूप में लेने से खेती की सारी थकान दूर कर देता है।

महुआ : रोगों में भी असरदार

महुआ का पेड़ वात (गैस), पित्त और कफ (बलगम) को शांत करता है, वीर्य व धातु को बढ़ाता और पुष्ट करता है, फोड़ों के घाव और थकावट को दूर करता है, यह पेट में वायु के विकारों को कम करता है, इसका फूल भारी शीतल और दिल के लिए लाभकारी होता है तथा गर्मी और जलन को रोकता है। यह खून की खराबी, प्यास, सांस के रोग, टी.बी., कमजोरी, नामर्दी, खांसी, बवासीर, अनियमित मासिक-धर्म, वातशूल (पेट की पीड़ा के साथ भोजन का न पचना) गैस के विकार, स्तनों में दूध का अधिक आना, फोड़े-फुंसी तथा लो-ब्लडप्रेशर आदि रोगों को दूर करता है।

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