स्वास्थ्य संसद 2024 : अमृत तत्व-6
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स्वास्थ्य पत्रकारिता में रोजगार की अच्छी संभावना
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एलोपैथी इलाज गलत नहीं, गलत मेडिकल माफिया
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80 प्रतिशत टेस्ट और सर्जरी अनावश्यक
नयी दिल्ली/भोपाल (स्वस्थ भारत मीडिया)। मीडिया को कार्पाेरेट पत्रकारिता के बदले जमीनी हकीकत का सामना करना होगा वरना उसकी भूमिका हमेशा संदिग्ध बनी रहेगी। धरातल पर आने के लिए उसे जनजीवन पर केंद्रित होना होगा। स्वास्थ्य क्षेत्र पर फोकस करना होगा।
यह विचार डायलॉग इंडिया व मौलिक भारत के संपादक अनुज अग्रवाल के हैं जो उन्होंने स्वास्थ्य संसद-2023 के सत्र में रखे थे। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के नजरिये से देखें तो भारत में एक भी स्वास्थ्य आधारित चैनल और पोर्टल नहीं है। आशुतोष जी धन्यवाद के पात्र हैं जो इस क्षेत्र में वेब पोर्टल स्वस्थ भारत डॉट इन चला रहे हैं पर इतने बड़े देश के लिए एक पोर्टल काफी नहीं। अगर मीडिया ग्रुप और कॉलेज स्वास्थ्य पत्रकारिता सिखाये तो भावी पत्रकारों को रोजगार का काफी अवसर मिलेगा।
उनका कहना था कि अतीक अहमद का एनकाउन्टर मीडिया में 15 दिन तक चलता रहता है। पर उसको आगे लाने वाले लोगों और राजनेताओं की कहानी क्यों नहीं छपती? उन्होंने कहा कि भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र पर एक शोध बताता है कि यहां दवा, 80 प्रतिशत टेस्ट और सर्जरी अनावश्यक है। एलोपैथी इलाज गलत नहीं, गलत मेडिकल माफिया है। बाजार ये नहीं कहता कि आप अनावश्यक रूप से लोगों को बीमार कर उनसे धन लूटें। विश्व रूप चौधरी ने अपने किताब में लिखा है कि भारत में कैंसर रोगी बनाए जा रहे है। कैंसर टेस्ट की विधि से बॉडी में डेड सेल कैसर सेल के रूप में ऐक्टिव होने लगती है। केंद्र सरकार का भी अनुमान है कि 2030 तक हर दो में एक कैंसर का रोगी होगा।