अजय वर्मा
नयी दिल्ली। इलेक्ट्रॉनिक सामानों की उपयोगिता बढ़ने के साथ ही देश में इन दिनों खराब और बेकार हो चुके इन सामानों का अंबार लगता जा रहा है। स्मार्टफोन, कंप्यूटर-लैपटॉप समेत करीब 11 लाख टऩ इलेक्ट्रॉनिक सामान घरों में पड़े हुए हैं। Accenture के साथ मिलकर इंडियन सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक एसोसिएशन (ICEA) ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को लेकर एक अहम सर्वे किया है। इसकी रिपोर्ट ‘पाथवेज टु ए सर्कुलर इकॉनमी इन इंडियन इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर’ शीर्षक के साथ जारी की गई है। पर्यावरण के लिहाज से ई-कचरा भी खतरा है।
मोबाइल-लैपी की उम्र 5 साल
इस विकराल हालत को देखते हुए केंद्र सरकार ने हाल ही इससे निबटने की नीति घोषित करते हुए 134 इलेक्ट्रॉनिक सामानों की उम्रसीमा तय की है। इसके मुताबिक मोबाइल फोन, लैपटॉप, आईपैड और स्कैनर की उम्र 5 साल होगी। इसके बाद ये कचरा की कैटेगरी में आ जायेंगे। इसी तरह फ्रीज की उम्र 10 साल, वाशिंग मशीन की 9 साल, रेडियो की 8 साल निर्धारित की गयी है।
एक व्यक्ति पर 4 खराब इलेक्ट्रॉनिक सामान
सर्वे में 40 फीसद प्रतिभागियों ने माना कि उनके पास मोबाइल और लैपटॉप सहित कम से कम चार ऐसे उपकरण हैं, जो वर्षों से खराब पड़े हैं। उपभोक्ताओं के इस बर्ताव के पीछे तीन मुख्य कारण हैं। पहला, बदले में अच्छे ऑफर का नहीं मिलना, दूसरा, उपकरणों से व्यक्तिगत लगाव क्योंकि डेटा लीक होने का खतरा है। तीसरा अहम कारण जागरूकता की कमी है। यह बात भी सामने आयी कि पांच में से दो उपभोक्ता बेकार उपकरण को रीसाइक्लिंग के लिए देने से मना कर देते हैं क्योंकि उन्हें पता ही नहीं है कि रीसाइक्लिंग कितना जरूरी है।
2021 में ऐसे सामान थे 51.5 करोड़
रिपोर्ट कहती है कि 2021 में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों (हर 15 मोबाइल फोन पर एक लैपटॉप) की संख्या करीब 51.5 करोड़ थी। मगर 7.5 करोड़ बेकार भी पड़े थे। बाद के सालों में यह संख्या बढ़ी ही होगी। मालूम हो कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की रीसाइक्लिंग मुख्यतः दो तरह से होती है। पहला कबाड़ियों के जरिये और दूसरा, थोक कबाड़ कारोबारियों के जरिए। कबाड़ी घरों से बेकार पड़े इलेक्ट्रॉनिक सामान इकट्ठा करते हैं। जबकि थोक कबाड़ कारोबारी ब्रांड के साथ मिलकर इन सामानों को जमा करते हैं।
कबाडी को सौंपना ही फिलहाल विकल्प
90 फीसद बेकार मोबाइल कबाड़ी घरों से लेकर आते हैं। वास्तविक रीसाइक्लिंग के समय भी 70 फीसद उपकरण कबाड़ियों के जरिए ही आते हैं जिसमें 22 फीसद संगठित कंपनियों के जरिए आये होते हैं। कठिन प्रक्रिया के कारण दो फीसद का ही इस्तेमाल पुर्जे निकालने के लिए होता है। बाकी को जमीन के भीतर गड्ढे में डाल दिया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मरम्मत की जरूरत वाले करीब 60 फीसद उपकरणों को सस्ते अनौपचारिक क्षेत्र में खपा दिया जाता है। इस बाजार में महज 18 फीसद उपभोक्ता ही संगठित कंपनियों के जरिये अपने उपकरणों की मरम्मत कराते हैं।