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भारत में चिह्नित किये हीरा-युक्त Kimberlites के नये संभावित क्षेत्र

नयी दिल्ली। चेन्नई के उत्तर-पश्चिम और हैदराबाद के दक्षिण में गहरे रंग के चट्टानी टीलों में हीरा हो सकते हैं। भूगर्भशास्त्र की दृष्टि से ये चट्टानी टीले भारत के पूर्वी धारवाड़ क्रेटन क्षेत्र में आते हैं। सीएसआईआर-राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI), हैदराबाद द्वारा जारी जानकारी के अनुसार मैफिक चट्टानों के इन टीलों की आयु-निर्धारण के क्रम में संस्थान के वैज्ञानिकों ने हीरे वाले किम्बरलाइट्स (Kimberlites) के नये संभावित स्थलों की पहचान की है। इससे सतह से कई किलोमीटर नीचे हीरे पाये जाने की संभावना को बल मिला है। फिर भी हीरा-खनन के उपयुक्त स्थानों को खोजने के लिए आगे कई और वैज्ञानिक अध्ययनों की आवश्यकता होगी।

कर्नाटक-आंध्र में भी स्थलों की पहचान

पूर्वी धारवाड़ क्रेटन क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में ऐसे 150 से अधिक किम्बरलाइट्स स्थलों की पहचान हो चुकी है जिनमें से कर्नाटक के रायचूर और आंध्रप्रदेश के वज्रकरूरु स्थित किम्बरलाइट्स क्षेत्र हीरा-युक्त पाए गए हैं। मैफिक चट्टानों में सिलिका की मात्रा लगभग 50 प्रतिशत कम होती है और ये मैग्नीशियम तथा फेरिक यौगिकों से भरपूर होते हैं। मैग्नीशियम और फेरिक शब्दों को संयुक्त और संक्षिप्त कर भूवैज्ञानिक उन्हें मैफिक चट्टान कहते हैं। आमतौर पर ये चट्टानें बेहद सख्त होती हैं, जिनका खनन सड़क और भवन निर्माण में उपयोग के लिए किया जाता है।

धरती से 150 किमी नीचे मिलना संभव

हीरे अधिकांशतः धरती की परत से 150 किलोमीटर से भी अधिक गहराई में निर्मित और संरक्षित होते हैं। ये हीरे किम्बरलाइट्स चट्टानों में धरती की सतह के निकट भी पाये जा सकते हैं। किम्बरलाइट्स चट्टानों का नामकरण दक्षिण अफ्रीका के किम्बरले नामक स्थान पर किया गया है, जहाँ से हीरे के खनन की शुरुआत हुई थी।

आठ अलग-अलग कालखंडों की पहचान

NGRI के शोधकर्ताओं ने कम से कम आठ अलग-अलग कालखंडों की पहचान की है, जब धरती के गर्भ से निकलने वाले खौलते लावा (मैग्मा) ने कालांतर में ठंढे होकर पूर्वी धारवाड़ क्षेत्र में मैफिक डाइक का निर्माण किया। शोधकर्ता ई. नागराजू बताते हैं-एकत्र किये गए नमूनों की डेटिंग से पता चला है कि इनमें से पहला लगभग 2367 मिलियन वर्ष पहले निर्मित हुआ था। इसके बाद की आग्नेय शैलें (अन्तर्वेधी चट्टानें) लगभग 2253, 2216, 2210, 2082, 2180, 1886 तथा 1864 मिलियन वर्ष पूर्व की निर्मिति बतायी जा रही हैं। टीम के सदस्य वी. परशुरामुलु बताते हैं-1864 मिलियन वर्ष पूर्व घटित होने वाली मैफिक घटना, मैफिक डाइक पर शोध करने वाले पूर्ववर्ती अध्ययनकर्ताओं की दृष्टि में नहीं आ पायी थी।

इंडिया साइंस वायर से साभार

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