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साइबर अटैक के बाद दिल्ली एम्स में अब तक हालात सामान्य नहीं

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। दिल्ली एम्स की सर्वर हैकिंग का मामले का अब तक पूर्ण समाधान नहीं हो सका है। डाटा चोरी की बात अलग है। खबर मिल रही है कि इसमें चीन के हैकरों का हाथ है और डार्क वेब पर इसका डाटा बेचा भी जा रहा है। 23 नवंबर को इसके 50 में 5 सर्वर पर साइबर अटैक हुआ था।

सिस्टम ऑडिट के लिए एक्सपर्ट जुटे

जानकारी के अनुसार सुरक्षा एजेंसियों ने कंसल्टेंसी फर्म अर्न्स्ट एंड यंग (E-Y) से संपर्क किया है। एम्स ने इस साल के मध्य में अपने साइबर सिस्टम का ऑडिट करने के लिए इसे लगाया था। एक कानून प्रवर्तन एजेंसी ने जांच में सहायता करने और यह जांचने के लिए कि क्या लेखा परीक्षकों ने सिस्टम में कोई भेद्यता पाई है, पिछले सप्ताह इसके अधिकारियों को बुलाया गया था।

मंत्री को साजिश की आशंका

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने इसे बड़ी साजिश माना है। उन्होंने आशंका जताई है कि इसके पीछे बड़े संगठित गैंग हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह कोई सामान्य अटैक नहीं है। यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।

साइबर अटैक के पीछे चीन के दो ग्रुप

साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक चीन के दो रैनसमवेयर ग्रुप- सम्राट ड्रैगनफ्लाई और ब्रॉन्ज स्टारलाइट (DEV-0401) इस हमले के पीछे हो सकते हैं। हालांकि, अभी इसकी पुष्टि की जा रही है। दूसरा संदेह लाइफ नाम के एक ग्रुप पर है, जिसे वानारेन नामक रैंसमवेयर का नया वर्जन माना जा रहा है। जांच से यह भी पता चलता है कि हो सकता है कि हैकर्स ने बिक्री के लिए डेटा को डार्क वेब पर डालना शुरू कर दिया हो, क्योंकि उनकी मांगें पूरी नहीं हुई थीं। हैक किए गए डेटा को इंटरनेट के गुप्त हिस्से डार्क वेब पर संदेह इसलिए भी है कि इस पर AIIMS डेटा के नाम से 1600 बार सर्च किया गया है।

डार्क वेब से पकड़ना कठिन

डार्क वेब इंटरनेट सर्चिंग का ही हिस्सा है, लेकिन इसे सर्च इंजन पर नहीं ढूंढा जा सकता। इस तरह की साइट को खोलने के लिए स्पेशल ब्राउजर की जरूरत होती है, जिसे TOR कहते हैं। डार्क वेब की साइट को Tor Encryption Tool की मदद से छिपा दिया जाता है। ऐसे में कोई इन तक गलत तरीके से पहुंचता है तो उसका डेटा चोरी होने का खतरा हो जाता है।

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