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सुखद…गुजरात के दो बड़े आयोजनों में प्लास्टिक के सामानों सेे परहेज

अजय वर्मा

नयी दिल्ली। पर्यावरण को लेकर दुनिया भर में बढ़ती चिंताएं और चेतना से अब लोग प्रभावित होने लगे हैं जिसका असर इनकेे कामकाज में दिखने लगा हैं। हाल ही में गुजरात में आयुष मंत्रालय के आयोजित दो कार्यक्रमों के दौरान किए गए पर्यावरण के अनुकूल उपायों और व्यवस्थाओं ने भी यही साबित हुआ।

जहरीले गैस उत्सर्जन में कमी

इन कार्यक्रमों के दौरान प्लास्टिक की एक लाख से अधिक बोतलों, 15000 टैग और 50 हजार चाकू-छुरी इत्यादि (प्लास्टिक कटलरी) के अनुमानित उपयोग से बचा गया जिससे अनुमानित तौर पर 119437.5 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष (Co2e) की कमी हुई। इसके अलावा, दुनिया भर के देश, संगठन और संस्थाएं एक बार उपयोग होने वाला प्लास्टिक जैसी बुराइयों को रोकने के लिए एक साथ आ रहे हैं। यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) के पक्षों के सम्मेलन के 14वें सत्र में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘‘एक बार उपयोग होने वाला प्लास्टिक न केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है बल्कि यह भूमि के स्वास्थ्य को बिगड़ने का भी एक प्रमुख कारण है। हाल ही में गुजरात में आयुष मंत्रालय के संपन्न हुए कार्यक्रमों के जरिए इस दिशा में मिसाल के साथ नेतृत्व करने की सरकार की मंशा को उजागर किया गया। प्रधानमंत्री ने 19 अप्रैल को जामनगर में ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह के दौरान दुनिया के पहले WHO वैश्विक पारंपरिक औषधि केंद्र (GCTM) की नींव रखी और 20 अप्रैल को मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेयसस की उपस्थिति में 3 दिवसीय वैश्विक आयुष निवेश और नवाचार शिखर सम्मेलन (जीएआईआईएस) का उद्घाटन किया। इन दोनों बड़े आयोजनों ने कार्बन फुटप्रिंट्स को कम करने के लिए एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक पर समर्पित प्रयासों के साथ अंकुश लगाने के देश के संकल्प को प्रतिध्वनित किया है। ये दोनों बड़े कार्यक्रम वैश्विक महत्व के थे।

तांबे के बोतल दिये गये पीने को

इन दोनों कार्यक्रमों के आयोजन में पर्यावरण के अनुकूल उपायों की एक विस्तृत श्रृंखला को अपनाकर पर्यावरणीय चेतना का प्रदर्शन किया गया। प्लास्टिक की पानी की बोतलें, प्लेट, कप, नेक बैज आदि सहित एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक को प्रदूषण का प्रमुख कारक मानते हुए इन कार्यक्रमों के आयोजन के दौरान फिर से इस्तेमाल होने वाली चाकू-छुरी इत्यादि (कटलरी), कांच की बोतलें, पेपर कप आदि का उपयोग किया गया। इन कार्यक्रमों में पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाया गया और प्रतिभागियों को किट प्रदान की गई थी जिसमें पीने के पानी के लिए तांबे की बोतलें शामिल थीं। सुविधाजनक स्थानों पर पानी की व्यवस्था की गई थी। आयोजकों ने बताया कि ‘‘पर्यावरण जागरूकता इस कार्यक्रम के आयोजन को लेकर फैसले लेने के केंद्र में बना रहा जैसे कि कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के उद्देश्य से प्लास्टिक फ्लेक्स बैनर और ऐसी अन्य सामग्री के उपयोग से बचना।

प्लास्टिक के बिना जीने की कवायद

दिलचस्प बात यह है कि ‘स्मार्ट एंड सस्टेनेबल आयुष फैक्ट्रीज फॉर द फ्यूचर‘ पर प्रदर्शनी में स्वच्छ, हरित और टिकाऊ भविष्य के लिए कुशल अपशिष्ट निपटान की दिशा में किए जाने वाले उपाय बताए और प्लास्टिक के बिना जीने का तरीका भी दिखाया जिसे आमतौर पर बहुत ही जरूरी और सबसे सुविधाजनक माना जाता है। पर्यावरणविद् डॉ. प्रतीक मेहता ने बताया कि हाल ही में परीक्षण किए गए मानव रक्त के 80ः नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक पाए जाने की सूचना है। उन्होंने प्लास्टिक के बिना जीवन जीने के दृष्टिकोण को अपनाने पर भी जोर दिया। यह अनुमान लगाया गया कि यदि कार्बन उत्सर्जन को ध्यान में रखा जाए तो यह पता चलता है कि तीन दिवसीय कार्यक्रम में संयुक्त रूप से 27000 लोगों के आगमन को देखते हुए अनुमानित तौर पर 119437.5 किलोग्राम के बराबर कार्बन डायऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने में सफलता मिली।

 

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