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स्वास्थ्य संसद में कवियों ने जमाया रंग

भोपाल/नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। स्वास्थ्य संसद-2023 के दूसरे दिन गंभीर मुद्दों पर चर्चा के बाद जब सारे सांसद शाम में गणेश शंकर विद्यार्थी सभागार में जुटे तब वे स्वास्थ्य क्षेत्र में उभर रही चिंताओं से व्यथित थे। लेकिन जब ये शाम गुजरी तब सभी उमंग और उल्लास से भरकर निकले। इस शाम  मंच उम्दा कवियों से सजा हुआ था जिसका संचालन रेडियो उद्घोषक अनुपमा श्रीवास्तव ने किया। मंच की शोभा बढ़ा रहे थे संगीतकार सरोज सुमन, आगरा की भूमिका जैन, बॉलीवुड के गीतकार ‘शेखर अस्तित्व’ जिन्होंने इस कवि सम्मेलन की अध्यक्षता भी की, मुंबई से डॉ. अलका अग्रवाल, दिल्ली से आलोक अविरल, भोपाल से बोधमिता श्रीवास्तव, शाहजहांपुर से अमित त्यागी, मुंबई से संतोष कुमार झा। सभी का परिचय कराने के बाद MCU के कुलपति के जी सुरेश ने उन्हें शॉल और प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया।

मंच संचालिका अनुपमा श्रीवास्तव ने कहा कि शारीरिक स्वास्थ्य की तरह मानसिक स्वास्थ्य भी काफी महत्वपूर्ण है इसलिए लोगों के मन का हाल दुरुस्त करने को देश भर से प्रसिद्ध कवियों को यहाँ बुलाया गया है। ये  हमें कविता के माध्यम से खुश रहना बताएंगे। कवियों से सजा यह मंच लोगों के मन पर ताजगी और आनंद का प्रभाव जरूर छोड़ेगा।

बोधमिता श्रीवास्तव ने युवाओं के मन को भांप कर प्यार से जुड़ी कई कविताओं का पाठ किया और सभागार तालियों, वाह-वाह से गूंज उठा। प्यार के तराने सुनने के बाद संचालिका ने श्रोताओं पर एक शेर बरसाया- ‘दिल्लगी वो नहीं जो चुभकर गुजर जाती है/ मुहब्बत वो है जो दिल में उतर जाती है। तुमको बदलना था तुम ना बदले/ अरे मुहब्बत में तो कायनात भी बदल जाती है।

अब बारी थी संतोष कुमार झा की और उन्होंने कहा-उनका इश्तकबाल जो खुद आए हैं, उनका विशेष रूप से अभिनंदन जो जबरी यहाँ लाए गए हैं। महान सुकरात का एक प्रसंग बताया कि जब किसी ने पूछा कि दुनिया में सबसे सुखी कौन है, तब उनका उत्तर था-जो संबसे स्वस्थ है वो सबसे सुखी है। उन्होंने कुछ छंदमुक्त कविताएं सुनायीं-एक बानगी….

एक छत थी चार दीवारे थीं/अब चार छत है, तमाम दीवारें हैं।

सच बोलने वालों लबों पर ताले लगा लो/सियासतदानों को सच सुनना अच्छा नहीं लगता।

भूमिका जैन ने श्रोताओं के दिल को सबसे ज्यादा उत्साह और प्रेम से भरा। उनकी हर एक कविता ने जनता को वाह-वाह, क्या बात है जैसे शब्द बोलने पर मजबूर कर दिया। भूमिका जी ने पहली कविता प्रेम को समर्पित की … प्यार ही रखता है दिल को साद भी, नासाद भी।

आलोक अविरल की पहली पेशकश-स्वास्थ्य संसद लगी हुई है, शून्य काल में पूछो प्रश्न/तन मजबूत बनेगा कैसे, कैसे शुद्ध रहेगा मन?/….और फिर कविताओं की झड़ी….

अलका जी ने कुछ गंभीर कविताएं कहीं-मोहब्बत की बातें समझ कैसे पाउं, समझना पड़ेगा/जुदाई की रातें कैसे बिताऊं, समझना पड़ेगा…

मूलतः संगीतकार सरोज सुमन ने सुनायी-यमुना डगर मैं ना जाऊँ दइया… छेड़ेंगे कृष्ण कन्हैया….मैं तो कहूँ मुरली की धुन सुन, बस में ना रहे जिया…

अमित त्यागी ने मंच संभालते ही एक गजल लुढ़काया-हिन्दी और उर्दू के नाम है फखत/ एक आह भरत है दूजी करवट बदलती है/दरख्तों से गिरी शोखियाँ ख्वाबों में ढलती है….

अनुपमा श्रीवास्तव ने कुछ यूं फरमाया-पाना है नव अर्श नया इंसान चाहिए/ बेबसी लाचारी की साँझ ढले नूतन विहान चाहिए/विकास की ऊंची अट्टालिकाएं भी हो गर गम नहीं/ ह्रदय को ईंट गारा ना समझे संवेदनाओं से भरा जहान चाहिए….

शेखर अस्तित्व की चुटीली पंक्तियों को देखें… कि आंकड़ों को नचा लिया होगा/फाइलों से बचा लिया होगा/के रोटियाँ थाल तक नहीं पहुंचीईई/ रास्ते में बचा लिया होगा।

एक और…. पड़ेंगे पीछे तो फिर ठीक से पीछे पड़ जाएंगे/घूरना बंद करो आँखों में गड़ जाएंगे/पुराने घर का पलस्तर ना समझना हमको/खुरच के देख लो नाखून उखड़ जाएंगे।

एक से एक कवितायें और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच लोगों ने उनसे  प्रसिद्ध गीत ‘कर हर मैदान फतह’ को गाकर सुनाने का अनुरोध किया। यह सुनने के बाद तो वो फिर लौटे मंच पर और जनता का उत्साह चरम पर जा पहुंचा। गीत समाप्ति पर उनके जाने तक लोगों ने तालियों के शोर से उनको आभार कहा।

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