नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। जब आप कैंसर से जंग लड़ने की ठान लेते हें तो हताषा के साथ-साथ सकारात्मकता के शिखर को भी चूमने लगते हैं। ऐसा ही हुआ है जानेमाने पत्रकार रवि प्रकाश के साथ। लंग कैंसर के क्षेत्र में काम करने वाली दुनिया की प्रतिष्ठित संस्था इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग कैंसर (IASLC) ने उन्हें इस साल के पेशेंट एडवोकेट एडुकेशनल अवार्ड के लिए चुना है। उन्हें यह पुरस्कार कैलिफ़ोर्निया के सैन डिएगो शहर में आयोजित होने वाले वर्ल्ड कांफ्रेंस ऑन लंग कैंसर (WCLC) के दौरान 7 सितंबर को दिया जाएगा। यह पुरस्कार लंग कैंसर के क्षेत्र में मरीज़ों के मुद्दों को उठाने वाले शख्स को हर साल दिया जाता है।
उनके ही शब्दों में
जिंदगी आराम से चल रही थी। तभी एक दिन अचानक कैंसर ने दस्तक दे दी। अंतिम स्टेज में मेरे शरीर में घुस आया। मेरी साँसें अब चंद घंटे, महीने या साल की मेहमान थीं। उसका भी कोई तय समय नहीं। दुनिया से जाने का वक्त कब आ जाए, इसकी कोई गारंटी आज भी नहीं है। तभी मैंने कैंसर को समझना शुरू किया। मरीज़ों की दिक़्क़तें समझी तो फिर इसकी आवाज उठानी शुरू की। मुझे ख़ुशी है कि IASLC जैसी प्रतिष्ठित संस्था ने इसे संज्ञान में लिया और मुझे इस साल के प्रतिष्ठित 2024 IASLC Patient Advocate Educational सम्मान के लिए चुना। जैसे ही यह खबर वायरल हुई, तमाम दोस्तों ने बधाइयाँ भेजनी शुरू कर दी। सोशल मीडिया पोस्ट लिखे। मैं जानता हूँ कि आप सब मुझे कितना प्यार करते हैं। मैं आपके सपोर्ट, दुआएँ और मोहब्बत की वजह से ही ज़िंदा हूँ। कृतज्ञ हूँ आप सबका। मेरी ज़िंदगी पर आप सबका उधार है। यह जिंदगी नहीं चल पाती अगर टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई के प्रोफ़ेसर और मेरे डॉक्टर कुमार प्रभाष और उनकी टीम नहीं होती, राँची के मेरे अंकोलॉजिस्ट डॉ. गुंजेश कुमार सिंह नहीं होते। मेरे पैंक्रियाटाइटिस को ठीक रखने वाले डॉ अंतरिक्ष कुमार, आँखों की डॉ. भारती कश्यप, स्किन के डॉ. कुमार प्रतीक और डायबीटीज़ को नियंत्रित रखने वाले डॉ. अंकित श्रीवास्तव का भी आभार। आपने न केवल मेरा इलाज किया बल्कि इज्ज़त और मोहब्बत भी दी। मेरा परिवार आप डॉक्टर्स का आभारी है। आभार लंग कनेक्ट की शानदार टीम का भी, जिसने कभी लगने ही नहीं दिया कि मैं बीमार हूँ। आभार मेरी संपादक रुपा झा और बीबीसी के सभी साथियों का, जो मज़बूत दीवार की तरह मेरे पीछे खड़े हो गए। मुझे लड़खड़ाने ही नहीं दिया। इस कैंसर ने मौत निश्चित कर दी लेकिन इतने लोगों से मेरा वास्ता भी कराया, इसलिए कैंसर का भी शुक्रिया। मेरी पत्नी संगीता और बेटे प्रतीक को प्यार, जिन्होंने मेरी हर ज़रूरत का ख्याल रखा। हम कभी साथ रोए, तो कभी अगले ही पल कॉफी भी पी। आभार उनका भी, जो मेरी इस यात्रा में कहीं नजर नहीं आए। यह पुरस्कार आप सबको और कैंसर के लाखों मरीज़ों को समर्पित है। सबको प्रणाम।
अब तक लिया 60 केमो
दरअसल जिस साल उन्हें कैंसर का पता चला, उसी साल बेटे ने प्प्ज् की परीक्षा पास की थीं। अच्छे रैंक से। सीमित आय के बीच टूटना आसान था। लेकिन वे लड़े। अब बेटा IIT दिल्ली से पास कर कैंपस प्लेसमेंट में नौकरी पा चुका है। वे खुश रहते हैं। BBC के लिए रिपोर्टिंग भी कर रहे हैं। अब तक 60 केमो ले चुके हैं। अब कैंसर से जूझ रहे हर किसी के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं।