स्वस्थ भारत मीडिया
नीचे की कहानी / BOTTOM STORY विविध / Diverse स्वास्थ्य स्कैन / Health Scan

मोदी सरकार के चार वर्षः ग्रामीण स्वास्थ्य की बदलती तस्वीर

आशुतोष कुमार सिंह
ट्वीटर हैंडलः @ashutosh_swasth
 
भारत की आत्मा गांवों में बसती हैं। यही कारण है कि आजादी से लेकर अभी तक भारत के गांवों को समृद्ध एवं सेहतमंद बनाने के लिए सरकारें नई-नई योजनाएं बनाती रही हैं। सेहतमंद भारत के लिए यह आवश्यक भी है कि गांवों की सेहत में सुधार किए जाएं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी यही कहते थे कि सरकार की योजनाओं की कसौटी अंतिम जन होता है। गर अंतिम जन तक किसी भी लोक-कल्याणकारी योजना का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है इसका मतलब यह होता है कि वह योजना धरातल पर सफल नहीं हो पायी है।
भारत के राजनीतिक इतिहास में 2014 का वर्ष बहुत महत्वपूर्ण माना गया। केन्द्र में एक नई पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई। इस सरकार ने आते ही स्वास्थ्य के मुद्दे को प्रमुखता से अपने एजेंडे में शामिल किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि स्वास्थ्य का विषय एक जन-आंदोलन बन गया।
2 अक्टूबर 2014 को भारत सरकार ने ‘स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत’ अभियान की शुरूआत की। इसका असर यह हुआ कि पूरे देश में बड़े-बड़े सेलिब्रेटियों ने भी अपने हाथ में झाड़ू उठा लिया। गली-मुहल्लों में साफ-सफाई के लिए युवा स्वयंसेवक सामने आने लगे। बीते चार वर्षों में स्वच्छता आग्रहियों की संख्या लगातार बढ़ती गयी। गांवों में भी अब कोई गंदगी फैलाता हुआ नज़र आता है कि छोटे-छोटे बच्चे इसका विरोध करते हुए नज़र आ रहे हैं। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से देखा जाए तो स्वच्छ भारत अभियान बहुत बड़ा जनआंदोलन बन चुका है और इससे भारत के गांवों को बहुत लाभ हुआ है।
इतना ही नहीं इस सरकार ने घर-घर शौचालय अभियान को भी जन-आन्दोलन बनाया। इसका परिणाम यह हुआ कि शौच के लिए बाहर जाने वालों की संख्या 30 फीसद से भी कम रह गयी है। इस अभियान ने एक सामाजिक क्रांति का रूप ले लिया है। जिस घर में शौचालय नहीं हैं, उस घर में लड़कियां शादी तक नहीं करना चाहती हैं। मीडिया में ऐसे कई मामले देखने-पढ़ने को मिले हैं जिसमें लड़की ने शादी करने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि ससुराल पक्ष में शौचालय नहीं बना है। इस संदर्भ को सिनेमा जगत ने भी बड़े पर्दे पर बखूबी उकेरा है। ट्वालेट एक प्रेमकथा फिल्म ने भी लोगों में शौचालय के प्रति जागरुकता पैदा की है। इतना ही नहीं सभी घर में शौचालय हो, इसके लिए सरकार ने आर्थिक मदद भी की है। सबसे ज्यादा बीमारी अस्वच्छ जल के कारण लोगों को होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार जल-नल योजना चला रही है। इसके तहत प्रत्येक घर को नल से जोड़ा जा रहा है, ताकि पीने योग्य जल उपलब्ध कराया जा सके।
 स्वास्थ्य बजट में बढ़ोत्तरी
किसी भी देश का ‘स्वास्थ्य बजट’ वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ होता है। यहीं कारण है कि भारत सरकार भी अपने स्वास्थ्य बजट को उत्तरोत्तर बढ़ाती जा रही है। रोगों के भार को कम करने के लिए बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूरत होती है। इस नज़र से इस बार का स्वास्थ्य बजट भारत की तस्वीर बदलने वाला कहा जा रहा है। पिछले साल के मुकाबले 12 फीसद ज्याद बजट सेहत के मद में सरकार ने जारी किया है। इस बार 56,226 करोड़ रुपये आवंटित हुआ है। 2014 के बाद प्रत्येक बजट में सरकार ने स्वास्थ्य के मद में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से बजट आवंटन पर विशेष ध्यान दिया है। इस सरकार का ध्यान इस बात पर ज्यादा रहा कि लोग बीमार ही न पड़े। यहीं कारण है कि इस सरकार ने स्वास्थ्य के मसले को जन-आंदोलन बनाया। लोगों को भागीदार बनाया।
वित्तमंत्री के बजटीय भाषण में स्वास्थ्य की तस्वीर
    1 फरवरी,2018 को तत्कालीन वित्त मंत्री अरूण जेटली ने अपने वित्तीय भाषण में स्वास्थ्य विषय पर विशेष ध्यान दिया। वित्तमंत्री ने कहा कि, “हमारी सरकार का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को सहायता और अवसर प्रदान करना है ताकि वह अपने आर्थिक और सामाजिक सपने को पूरा करने की अपनी पूरी संभावित क्षमता का उपयोग कर सके। हमारी सरकार सामाजिक आर्थिक जातीय जनगणना के अनुसार वृद्धों, विधवाओं, बेसहारा बच्चों, दिब्यांगजनों और वंचित लोगों के प्रत्येक परिवार तक पहुंचाने के लिए एक ब्यापक सामाजिक सुरक्षा तथा संरक्षण कार्यक्रम कार्यान्वित कर रही है। राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम पर आवंटित 2018-19 में 9975 करोड़ रुपये रखा गया है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ हमारी सरकार का मार्गदर्शक सिद्धांत है। मैं ‘आयुष्मान भारत’ में दो प्रमुख पहल की घोषणा करता हूं। टीवी पीड़ित सभी रोगियों को उनके उपचार कि अवधि के दौरान 500 रुपये प्रति माह के हिसाब से पोषाहार हेतु सहायता प्रदान करने के लिए 600 करोड़ रुपये आवंटित किया जाता है। हम देश में मौजूदा जिला अस्पतालों को अपग्रेड कर 24 नए सरकारी चिकित्सा कॉलेजों और अस्पतालों की स्थापना करेंगे। इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि प्रत्येक 3 संसदीय क्षेत्रों के लिए कम से कम एक चिकित्सा महाविद्यालय हो। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में भारत के स्वास्थ्य प्रणाली की नींव के रुप में स्वास्थ्य एवं आरोग्य केन्द्रों की परिकल्पना की गयी है। ये 1.5 लाख केन्द्र स्वास्थ्य देख रेख प्रणाली को लोगों के घरों के पास लाएंगे। ये स्वास्थ्य केन्द्र असंचारी रोगों, मातृत्व तथा बाल स्वास्थ्य सेवाओं सहित व्यापक स्वास्थ्य देखरेख उपलब्ध कराएंगे। ये केन्द्र आवश्यक दवाएं एवं नैदानिक सेवाएं भी मुफ्त उपलब्ध कराएंगे। मैं इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए 1200 करोड़ रुपये का प्रावधान करने के लिए वचनबद्ध हूं। मैं इन केन्द्रों को अपनाने में सीएसआर और लोकोपकारी संस्थाओं के जरिए निजी क्षेत्र को योगदान के लिए आमंत्रित करता हूं। हम सब जानते हैं कि हमारे देश में लाखों परिवारों को ईलाज के लिए उधार लेना पड़ता है या संपत्तिया बेचनी पड़ती है, सरकार निर्धन एवं कमजोर परिवारों की ऐसी दरीद्रता के बारे में अत्यधिक चिंतित है। अब हम 10 करोड़ से अधिक गरीब एवं कमजोर परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) को दायरे में लाने के लिए एक फ्लैगशीप राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना प्रारंभ करेंगे। इसके तहत द्वितीयक एवं तृतीयक देखरेख के लिए अस्पताल में भर्ती होने के लिए प्रति परिवार पांच लाख रुपये तक का वार्षिक कवरेज प्रदान किया जायेगा। यह विश्व का सबसे बड़ा सरकारी वित्त-पोषित स्वास्थ्य देख-रेख कार्यक्रम होगा। आयुष्मान भारत की यह दो पहल वर्ष 2022 तक एक नए भारत की निर्माण करेगी।’
30 अप्रैल 2018 से आयुष्मान भारत के अंतर्गत वेल इक्विप्ड आरोग्य केन्द्र खुलने शुरू हो चुके हैं। जिस दिन डेढ़ लाख आरोग्य केन्द्र खुल जाएंगे निश्चित रूप से ग्रामीण भारत की स्वास्थ्य जरूरतों को बहुत हद तक पूर्ण किया जा सकेगा।
स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च के मामले में भारत की स्थिति
 भारत में कुल जीडीपी में महज 1.4 फीसद स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में 170 देशों में से भारत 112वें स्थान पर है। चीन में कुल जीडीपी का 3 फीसद स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया जाता है। वैश्विक औषत स्वास्थ्य खर्च जीडीपी का 5.4 फीसद है। अन्य देशों का स्वास्थ्य पर जीडीपा का खर्च तालिका 1 में देखें। यहां भी समझना जरूरी है कि लोग बीमार न पड़े इसके लिए भी सरकार अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे मद में खर्च कर रही है। स्वच्छ भारत अभियान, स्वच्छ जल, पोषण अभियान जैसे मदों में भी सरकार खर्च कर रही हैं, जिसका संबंध स्वास्थ्य से ही हैं। कई विशेषज्ञों का मानना हैं कि जीडीपी के आधार पर स्वास्थ्य के मद में किए जा रहे खर्च प्रतिशत के आंकड़े भारत के परिप्रेक्ष्य में पूरी तरह सटीक नहीं माना जाना चाहिए।
तालिका-1
देश में स्वास्थ्य पर खर्च (जीडीपी का)
 

देश जीडीपी (%)
भारत 1.4
अमेरिका 18.1
जर्मनी 11.3
फ्रांस 11.0
जापान 10.9
इटली 8.9
कनाडा 10.6
ब्रिटेन 9.7
पाकिस्तान 0.7
नेपाल 2.3
श्रीलंका 2.0

स्वास्थ्य की दिशा में उठे सरकारी कदम
भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के 31 पृष्ठों के अपने मसौदे में भारत को स्वस्थ रखने की अपने नीतियों को प्रस्तुत किया है। पृष्ठ 9 के अनु.3.2 में बचावात्वमक स्वास्थ्य नीति का उल्लेख किया गया है। इसमें सरकार ने कहा है कि किस तरह लोग बीमार न पड़े इसके लिए काम करना जरूरी है। स्वच्छ भारत अभियान, स्वस्थ एवं संतुलित आहार एवं नियमित व्यायाम,तंबाकू एवं शराब के प्रति जागरूकता फैलाना,यात्री सुरक्षा-रेल और सड़क हादसों से हो रही मौतों को रोकना, निर्भया नारी-लैंगिक हिंसा के खिलाफ कार्रवाई करना और कार्य स्थल की सुरक्षा सुनिश्चित करना एवं आंतरिक एवं बाह्य प्रदूषण को कम करना जैसे लक्ष्यों को लेकर सरकार आगे बढ़ रही है।
इसी तरह नई स्वास्थ्य नीति के अनु.4.2 में किशोर स्वास्थ्य को बेहतर करने की बात कही है। इस दिशा में सरकार ने विद्यालयी पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य और स्वच्छता को शामिल करने का विचार कर रही है। वहीं किशोरों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए प्रयत्नशील है। किशोरों को समूचित पोषण मिल सके, उनके मानसिक समस्याओं का निदान हो सके इस दिशा में सरकार चिंतनशील है। अनु.4.3 में कुपोषण एवं अन्य पोषक कमियों को दूर करने की बात कही गयी है। इसमें यह माना गया है कि पोषण के अभाव के कारण बीमारियों की बोझ बढ़ती जा रही है। खासतौर से एनीमिया एक प्रमुख बीमारी के रूप में सामने आई है। इससे निजात पाने के लिए सरकार स्कूली स्तर पर आयरन, कैल्शियम, विटामिन ए की गोलियां वितरित कर रही है। वहीं अनु. 4.7 में मानसिक स्वास्थ्य एवं अनु.5 में महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से निजात पाने के उपायों पर सरकार ने अपनी स्थिति को स्पष्ट किया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2017 में 15 वर्षों के अंतराल के बाद नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति जारी की गई। 15 मार्च, 2017 को मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) 2017 को अपनी स्वीकृती दी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में सरकार ने यह संकल्प लिया है कि 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को जीडीपी का 2.5 प्रतिशत तक बढाया जायेगा। साथ ही यह भी कहा गया है कि भारत सरकार स्वास्थ्य और आरोग्य केन्द्रों के माध्यम से व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का बड़ा पैकेज उपलब्ध कराने के प्रति कृत संकल्प है। इसी संकल्प का असर इस बार के बजट में भी देखने को मिला है।
 ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
लड़कों के मुकाबले लड़कियों की लिंगानुपात में कमी से पूरा देश चिंतित है। लड़कियों को गर्भ में ही मार देना एक सामाजिक बीमारी के रूप में सामने आया है। भ्रूण हत्या न सिर्फ एक बेटी की हत्या है बल्कि एक माँ के लिए मानसिक एवं शारीरिक प्रतारणा का कारण भी है। इस बीमारी को दूर करने के लिए सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान की सफलता को रेखांकित करते हुए पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में महिला और बाल विकास मंत्रालय तथा यूनिसेफ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर आयोजित ‘बालिकाओं के सशक्तिकरण में खेलों की भूमिका’ विषय पर अपनी बात रखते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा था कि, सरकार लड़कियों और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काफी कार्य कर रही है। प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं कार्यक्रम लड़कियों का मान बढ़ाने और उनके अधिकारों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध है। 161 जिलों में शुरू किये गये इस कार्यक्रम के परिणाम अत्यधिक उत्साहवर्द्धक हैं। उन्होंने कहा कि 2015-2016 और 2016-2017 की अवधि में 104 जिलों में जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) में सुधार देखा गया, 119 जिलों में एएनसी पंजीकरण की तुलना में पहली तिमाही में पंजीकरण में प्रगति दर्ज हुई और 146 जिलों में अस्पतालों में प्रसव कराने की स्थिति में सुधार हुआ है। इतना ही नहीं समाज भी बेटियों के स्वास्थ्य के मुद्दे पर ज्यादा सक्रीय हुआ है। बिहार समस्तीपुर में एक चिकित्सक हैं डॉ. एन.के आनंद। वे ‘स्वस्थ बालिका स्वस्थ समाज’ के ध्येय को लेकर आगे चल रहे हैं और अभी तक 7000 से अधिक बालिकाओं का निःशुलक् ईलाज कर चुके हैं। इसी तरह पुणे में डॉ. गणेश राख हैं, जो बेटियों के जन्म पर पैसा नहीं लेते बल्कि उनके जन्म को सेलीब्रेट करते हैं। उपरोक्त बदलाव मोदी सरकार के चार वर्ष की बड़ी उपलब्धि है।
मिशन सघन इन्द्रधनुष
अंग्रेजी में एक कहावत है ‘प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर’किसी भी बीमारी को रोकने का सबसे उत्तम उपाय बचाव है। इस बात को सरकार भी मानती है। और इस दिशा में टीकाकरण अभियान चला रही है। देश के नौनिहालों को बीमारी से बचाने के लिए सरकार टीकाकरण पर बहुत जोर दे रही है। हाल ही में देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि टीके से किसी रोग का इलाज संभव है तो किसी भी बच्चे को टीके का अभाव नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री गुजरात के वडनगर में सघन मिशन इंद्रधनुष का शुभारंभ करते हुए उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के जरिए भारत सरकार ने दो वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे और उन गर्भवती माताओं तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है जो टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत यह सुविधा नहीं पा सकी हैं।
यहां ध्यान देने वाली  बात यह है कि विशेष अभियान के तहत टीकाकरण पहुंच में सुधार के लिए चुने हुए जिलों और राज्यों में दिसंबर 2018 तक पूर्ण टीकाकरण से 90 प्रतिशत से अधिक का लक्ष्य रखा गया है।(9) मिशन इंद्रधनुष के अंतर्गत 2020 तक पूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है। (10) इसके तहत 90 प्रतिशत क्षेत्रों को शामिल किया जाना है। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इस कार्यक्रम को 11 अन्य मंत्रालय और विभाग भी अपना समर्थन प्रदान कर रहे हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, पंचायती राज, शहरी विकास, युवा कार्य एवं अन्य मंत्रालयों ने सघन मिशन इंद्रधनुष कार्यक्रम में अपना सहयोग दिया है। मोदी सरकार के चार वर्षों  में यह देखने को मिला है कि सरकार अन्य मंत्रालय भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोगी सिद्ध हो रहे हैं।
 प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना
लोगों को सस्ती दवाइयां मिल सके, इसके लिए सरकार ने तीव्रगति से 3350 से ज्यादा जनऔषधि केन्द्र खोलवाए है। इस वर्ष के अंत तक इसकी संख्या 4000 तक होने की संभावना है। इन केन्द्रों पर 100 रुपये बाजार मूल्य की दवा 10-15 रुपये में उपलब्ध है। देश के गरीब जनता के लिए ये केन्द्र बहुत उपयोगी है। गौरतलब है कि महंगी दवाइयों के कारण देश की 3 फीसद जनता गरीबी रेखा से ऊबर नहीं पा रही थी। ऐसे में जनऔषधि केन्द्रों की बढ़ती उपलब्धता एक क्रांतिकारी बदलाव है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में एक सार्थक पहल है आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण मिशन

   विगत 22 मार्च 2018 को  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण मिशन को मंजूरी दी। इस मिशन में केंद्रीय सरकार का हिस्सा आयुष्मान भारत के तहत उपलब्ध होगा, जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक कार्यक्रम है। इस बावत केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा का कहना है कि, एनएचपीएम सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह स्वास्थ्य खर्च की भयावहता से 50 करोड़ लोगों (10 करोड़ परिवारों) को सुरक्षित करेगा। इससे देश के 40 प्रतिशत जनसंख्या को लाभ मिलेगा। यह योजना अस्पताल में भर्ती होने के द्वितीयक और तृतीयक स्तर को कवर करेगी। गौरतलब है कि पांच लाख रुपये की कवरेज वाली इस योजना में परिवार के आकार और उम्र की कोई सीमा नहीं रहेगी। इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल होने के वक्त यह योजना गरीब और कमजोर परिवारों की मदद करेगी। सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना के आंकड़ों के आधार पर समाज के गरीब और असहाय जनसंख्या को आयुष्मान भारत-एनएचपीएम योजना से वित्तीय मदद मिलेगी। केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना’ (आरएसबीवाई) तथा वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना (एससीएचआईएस) योजनाएं एनएचपीएम में शामिल कर दी  जाएंगी। सरकार द्वारा वित्त पोषित यह विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना होगी। लोग सरकारी और अधिसूचित निजी अस्पतालों में इलाज की सुविधा प्राप्त कर सकेंगे। सभी सरकारी अस्पतालों को इस योजना में शामिल किया गया है। निजी अस्पतालों की ऑनलाइन सूची बनाई जाएगी। निश्चित रूप से सरकार का यह प्रयास सार्वभौमिक स्वास्थ्य की दिशा में एक सार्थक कदम है।

 वर्तमान में स्वास्थ्य चुनौतियां
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार भारत में 6.8 फीसद ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन किया है। 4.4 फीसद शहरी क्षेत्र एवं 8.1 फीसद ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं ने तंबाकू का सेवन किया है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-3 के परिणाम से बेहतर है, तब 10.8 फीसद महिलाएं तंबाकू का सेवन करती थीं। इस सर्वे के अनुसार भारत का 44.5 फीसद पुरूष वर्ग किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन कर रहा है। शहरी क्षेत्र में 38.9 फीसद जबकी ग्रामीण क्षेत्र में 48.0 फीसद पुरूष तंबाकू का सेवन कर रहे हैं। पिछले सर्वे में भारत की 57 फीसदी पुरुष तंबाकू सेवन करते थे। इस सर्वे में यह भी सामने आया है कि देश की 1.5 फीसद महिलाएं शराब का सेवन कर रही हैं, जिसमें 0.7 फीसद शहरी एवं 1.5 फीसद ग्रामीण महिलाएं हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-3 के अनुसार 2.2 फीसद महिला आबादी शराब का सेवन करती थीं। वही 29.2 फीसद पुरुष आबादी शराब का सेवन करता है, शहर में रहने वाले 28.7 एवं गांव में रहने वाले 29.2 फीसद पुरूष शराब का सेवन करते हैं। (विशेष जानकारी के लिए तालिका-2 देखें) युवाओं में शराब पीने की लत से तकरीबन 60 प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सामने आई हैं। इसका सीधा संबंध आपके हिंसायुक्त व्यवहार से भी है। भारतीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4(आईएफएचएस-4) की रपट में पोषण संबंधित आंकड़ों को दिया गया है। इस सर्वे के अनुसार 22.9 फीसद ऐसी महिलाएं हैं जिनका बीएमआई सामान्य से कम है। शहरी महिलाओं में यह स्थिति 15.5 फीसद है तो ग्रामीण महिलाओं में यह 26.7 फीसद है। आईएफएचएस-3 के सर्वे में देश की 35.5 फीसद महिलाओं का बीएमआई सामान्य से कम था। इन आंकड़ों को देखकर यह तो कहा जा सकता है कि सुधार हो रहा है लेकिन यह सुधार और तीव्र गति से हो इसके लिए पहल किए जाने की जरूरत है।
ध्यान देने योग्य अन्य बिन्दु

  • जन्म के समय लिंगानुपात- जो कि प्रति एक हजार बच्चों पर बच्चियों की संख्या से जाना जाता है- सुधर कर 914 से 919 हो गया है। सुधार की यही गति रही तो लिंगानुपात पूरी तरह ठीक होने में कई वर्ष लग जाएंगे।
  • शिशु मृत्यु दर कम होकर 57 से 41 पर आ गई। इस मामले में विश्व का औसत 30.5 और विश्व का सर्वोत्तम 2 है। वैश्विक मानदंड पर आने में अभी बहुत समय लगेगा।
  • पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर कम होकर 74 से 50 पर आ गई। इस मामले में विश्व का औसत 41 और विश्व का सर्वोत्तम 2.1 है।
  • पांच साल से कम आयु के बच्चों में, प्रत्येक दो में से एक खून की कमी का शिकार है; प्रत्येक तीन में से एक अपेक्षित वजन से कम और कुपोषित है; और प्रत्येक पांच में से एक दुर्बल है।
  • बच्चों के पोषण और उनकी सेहत की परवाह नहीं की है, इसलिए हमारे मानव संसाधन की गुणवत्ता शोचनीय है। आर्थिक वृद्धि और राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर तकनीकी प्रगति और सामाजिक सौहार्द तक, सब कुछ मानव पूंजी की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। डॉक्टरों पर हमारे मानव संसाधन को पल्लवित-पुष्पित करने का उत्तरदायित्व है, खासकर हमारे बच्चों के संदर्भ में, पर डॉक्टर बहुत कम हैं। भारत में 1681 लोगों पर एक डॉक्टर है (2016 का आंकड़ा) और 11,528 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। हम हर साल सिर्फ पचपन हजार स्नातक चिकित्सक और पच्चीस हजार परास्नातक चिकित्सक तैयार करते हैं। हर चिकित्सक पर कम से कम दो चिकित्सकों के काम का भार है।

 निष्कर्षः
आयुष्मान भारत, स्वच्छ भारत अभियान, पोषण अभियान, इंद्रधनुष अभियान, नल-जल योजना, उज्ज्वला योजना सहित तमाम ऐसी योजनाएं बीते चार वर्षों में लागू हुई हैं। इसका सकारात्मक असर देश के शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है। खासतौर से ग्रामीण इलाकों में शौचालय निर्माण एक क्रांतिकारी सामाजिक बदलाव की तरह दिख रहा है। प्रत्येक गांव में आशा कार्यकर्ताओं की उपलब्धता ने ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा को मजबूति प्रदान की है। बावजूद इसके भारत जैसे बड़े भूभाग एवं जनसंख्या वाले देश के लिए अपने नागरिकों की स्वास्थ्य को सेहतमंद बनाए रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है। और इस चुनौती को इस सरकार ने बीते चार वर्षों में सफलतापूर्वक स्वीकार किया भी है। मोदी सरकार के चार वर्ष में जो बदलाव दिख रहा है, उसे और तीव्र करने की जरूरत है।


नोटः यह आलेख भारत सरकार की पत्रिका कुरुक्षेत्र के जून, 2018 के अंक प्रकाशित हो चुका है।

लेखक परिचयः

स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय संयोजक एवं स्वस्थ भारत (न्यास) के चेयरमैन हैं। ‘कंट्रोल मेडिसिन मैक्सिमम् रिटेल प्राइस’, ‘जेनरिक लाइए पैसा बचाइए’, ‘तुलसी लगाइए रोग भगाइए’, ‘अपनी दवा को जानें’ और ‘स्वस्थ बालिका स्वस्थ समाज’ जैसे कैंपेनों के माध्यम से स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जागरूक करते रहे हैं। हाल ही में 90 दिनों में 20 हजार किमी की स्वस्थ भारत यात्रा पूरी कर लौटे हैं।

Related posts

स्वास्थ्य संसद में कवियों ने जमाया रंग

admin

अब Nestle के शिशु खाद्य उत्पाद की जांच कर रही FSSAI

admin

इस बीमारी ने ले ली फिल्म अभिनेता इरफान खान की जान

Ashutosh Kumar Singh

Leave a Comment