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दांव पर चिकित्सकों की साख!

सच तो यह है कि देश के चिकित्सक डॉ.बी.सी.राय को अपना नायक मानते हुए जन-सरोकारिता को अपनाएं साथ ही समाज के लोग अपने चिकित्सकों का विशेष ख्याल रखें, उनके साथ किसी भी तरह की अभद्रता न करें और संवाद का सहारा लें। इतना ही नहीं देश की सरकारों को भी चिकित्सा व्यवस्था की अव्यवस्था को दूर करने में और तीव्र गति से आगे आना होगा। तभी हम एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना को पूर्ण कर सकते हैं!
 
आशुतोष कुमार सिंह
मानव इतिहास में भगवान के बाद गर किसी को सबसे ज्यादा मान-सम्मान मिला है तो वह है गुरु एवं वैद्य। कालांतर में गुरु एवं वैद्य की परंपरा सिकुड़ती चली गई और शिक्षक एवं चिकित्सक शब्द अपने नए संस्कार के साथ प्रचलन में आए। भारतीय ज्ञान-परंपरा में विद्या दान करने एवं चिकित्सा सेवा भाव से करने की बात कही गई है। मानवीय जीवन के इन मुख्य बातों को वर्तमान समय में हमने लगभग भूला दिया है या यूं कहें कि ऐसी व्यवस्थागत जकड़न में फंस चुके हैं, जहां पर मूल्यों का कोई स्थान नहीं रह गया है। विद्या एवं चिकित्सा दोनों क्षेत्र पूंजी के गिरफ्त में हैं। पूंजी, पूंजीपति एवं पूंजीवाद का प्रथम लक्ष्य होता है लाभ कमाना। अगर बात यहीं तक सीमित रहती तो भी कोई बात नहीं थी। लाभ अगर न्याय-संगत हो तो उसे शुभ-लाभ कहा जाता है। लेकिन वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था शुभ-लाभ की मर्यादा को कोसो दूर छोड़ आया है। अब यह लाभा-लाभ की खोज में अपने मानवीय दायित्वों को भूल चुका है।
धरती के दूसरे भगवान कहे जाने वाले चिकित्सकों की साख आज निम्न-स्तर पर पहुंच चुकी है। मानवीय इतिहास में चिकित्सकों की इतनी बुरी स्थिति कभी नहीं थी। उनका मान-सम्मान इधर के कुछ दशकों में जिस अनुपात में घटा है, उसमें अकेले चिकित्सकों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन चिकित्सक दोषी नहीं हैं ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है।
साख पर बट्टा
चिकित्सा के क्षेत्र में मरीज से प्रत्यक्ष संवाद करने वाला चिकित्सक ही होता है। बीमारी का परीक्षण करना एवं दवा लिखने का काम चिकित्सक का ही होता है। ऐसे में बीमार एवं बीमारी के बीच मुख्य भूमिका में चिकित्सक सामने होता है। चिकित्सक को आप एक तरह से फिल्म का नायक कह सकते हैं। यहीं कारण है कि मरीज का विश्वास चिकित्सक पर सबसे ज्यादा होता है। वहीं दूसरी तरफ जब किसी भी तरह की लापरवाही/नासमझी की सूरत में मरीज का इलाज नहीं हो पाता है तो मरीज का भरोसा टूटता है। चूंकि वह सबसे ज्यादा भरोसा अपने चिकित्सक पर करता है अतः उसके कोप का भाजन भी सबसे ज्यादा चिकित्सक को ही बनना पड़ता है।
यह तो हुई मनो-विज्ञान की बात। लेकिन कुछ मसले ऐसे हैं जो कि मरीज-चिकित्सक के बीच के सौहार्द को खराब करते हैं। जैसे- जानबूझकर महंगी दवा लिखना- मरीज एवं उनके तीमारदारों को यह लगता है कि चिकित्सक जानबूझकर महंगी दवा लिख रहे हैं। इसके पीछे का तर्क यह है कि उन्हें दवा कंपनियों से कट मिल रहा है। और यह बात छुपी हुई नहीं है। समाचार-पत्रों में चिकित्सकों को दवा कंपनियों के द्वारा विदेश घुमाए जाने की खबरों का हवाला देकर मरीज यह कहता है कि आज के चिकित्सक सिर्फ लूटने में लगे हैं। दूसरी बात आती है जाँच को लेकर। चिकित्सकों पर यह आरोप लगाए जाते हैं कि वे जांच केन्द्रों से भी कट लेते हैं। और यह कट 40 से 60 फीसदी तक का होता है। तीसरा आरोप यह लगता है कि मरे हुए मरीजों को भी चिकित्सक आईसीयू में बिल बनाने के लिए रखते हैं। उपरोक्त सारी बातें पूरी तरह सही हैं ऐसा नहीं है और पूरी तरह गलत है ऐसा भी नहीं है। ऐसे में चिकित्सकों की जिम्मेदारी बन जाती है कि वे समाज में उनके प्रति फैल रही नकारात्मकता को अपने जन-उपयोगी कार्यों को माध्यम से सकारात्मक दृष्टिकोण में बदलें।

7000 बेटियों का मुफ्त में ईलाज करने वाले डॉ. एन.के आनंद

चिकित्सकों की साख सुधारे इसके लिए देश में तमाम चिकित्सक दिन-रात काम कर रहे हैं। समाज को दिशा देने का काम कर रहे हैं। इस कड़ी में बिहार के समस्तीपुर जिला मुख्यालय में रह रहे डॉ. एन. के आनंद का नाम लिया जा सकता है। डॉ. आनंद स्वस्थ भारत अभियान द्वारा चलाए जा रहे ‘स्वस्थ बालिका स्वस्थ समाज’ कैंपेन को मजबूती प्रदान करते हुए 7000 से ज्यादा बालिकाओं का इलाज मुफ्त में कर चुके हैं। इतना ही नहीं वे समस्तीपुर के कई इलाकों में जाकर बालिकाओं को सेहत के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं। लोगों को सस्ती दवाइयां मिले इसके लिए वे भारतीय प्रधानमंत्री जन-औषधि परियोजना के अंतर्गत शुरु हुई जन-औषधि केन्द्रों पर उपलब्ध सस्ती एवं गुणवत्ता युक्त जेनरिक दवाइयां लिखते हैं, जिससे उनके मरीजों को दवा सस्ती मिल सके।

इसी तरह महाराष्ट्र के पुणे में डॉ. गणेश राख बेटियों की भ्रूण हत्या के खिलाफ जनआंदोलन चला रहे हैं। उनके अस्पताल में बेटी का जन्म होता है तो वे मिठाई बांटकर उत्सव मनाते हैं साथ ही डिलेवरी का चार्ज भी नहीं लेते हैं। उनके इस अभियान से हजारों चिकित्सक जुड़ चुके हैं।
डॉ. घनश्याम केएचआई के मुख्य चिकित्सा अधिकारी हैं

दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के बेलगाम जिला के घटप्रभा में डॉ. घन्श्याम कर्नाटक आरोग्य संस्थान चला रहे हैं। 212 एकड़ में फैला यह संस्थान गरीब मरीजों के लिए जीवन-प्रदान करने वाला स्थल के रूप में जाना जाता है। देश के दूसरे किसी कोने में इस तरह का गैर-सरकार प्रयोग और कहीं देखने को नहीं मिलता है।
कैंसर के मरीजों की सेवा करने वाली दीदी ज्ञानेश्वरी

मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी जबलपुर में दीदी ज्ञानेश्वरी ‘विराट हॉस्पिस’ चला रही हैं। उनके इस हॉस्पिस में कैंसर से जूझ रहे अंतिम स्टेज के मरीजों को रखा जाता है। उनकी सेवा की जाती है। मृत्यु को अलंकृत करने के पूर्व इन मरीजों को कम से कम कष्ट की अनुभूति हो एवं एक दिब्य माहौल में वे अपना प्राण त्याग सकें, इसके लिए दीदी ज्ञानेश्वरी दिन-रात काम में जुटी हैं।
डॉ. मनीष, जाने-माने न्यूरो-सर्जन

देश के जाने-माने न्यूरो-सर्जन हैं डॉ. मनीष कुमार। वे जिस भी अस्पताल में रहते हैं अपने मरीजों की आर्थिक स्थिति का ख्याल रखते हैं। गरीब मरीजों का कम-से-कम खर्च में ईलाज हो, इसका पूरा ख्याल रखते हैं।

दिल्ली के राजघाट के पास ‘ब्रेन बीहैवियर रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ (बीबीआरएफआई) का दफ्तर है। यहां पर डॉ. आलोक के. मिश्रा मेडिकल साइंस के सहयोग से कैसे देश के युवाओं को सही करियर की दिशा दी जाए इस महा-अभियान में लगे हैं। वे ब्रेन-कार्ड पर काम कर रहे हैं। यह कार्ड यह बताने में सक्षम होगा कि अमूक छात्र किस क्षेत्र में बेहतर काम कर सकता है।

इसी तरह डॉ. ममता ठाकुर दिल्ली में हैं। महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. ममता ठाकुर कैंसर जागरुकता एवं महिलाओं को सेहत के प्रति जागरुक करने का काम कर रही हैं। प्रत्येक महीने रक्तदान शिविर लगवाती हैं। 9 तारीख के महिलाओं का ईलाज मुफ्त में करती हैं। सच तो यह है कि ऐसे ही चिकित्सकों के कारण चिकित्सा का मान एवं सम्मान बढ़ रहा है।
 
समाज भी रखे चिकित्सकों का ख्याल
       समाज चिकित्सकों का ख्याल शुरू से रखते आ रहा है। लेकिन कालांतर में जब चिकित्सा व्यवसाय बन गया तो समाज भी बे-रूखा होता गया। लेकिन यहां पर यह सोचना जरूरी है कि आज भी बीमार का ईलाज चिकित्सक ही कर रहे हैं। उनके भरोसे ही हमारी जिंदगी की डोर है। और ऐसा भी नहीं है कि देश के सभी चिकित्सक लाभा-लाभ में डूबे हुए हैं। वर्तमान समय में चिकित्सा तंत्र को अगर नजदीक से स्कैन किया जाए तो हम पाते हैं कि चिकित्सक व्यवस्था के दो पाटों में पीस रहा है।
एक तरफ उसके ऊपर अपने मरीज को ठीक करने का दबाव है तो दूसरी तरफ उसे अस्पताल प्रशासन को लाभ पहुंचाने का दबाव। कई बार तो ऐसा होता है कि एक चिकित्सक अपने नजदीकी रिश्तेदार का फी भी माफ नहीं कर पाता क्योंकि वह एक पूंजीगत व्यवस्था में एक अदना-सा नौकरी-पेशा बन कर रह गया है। उसकी नौकरी की मजबूरी हो गई है कि वह कुछ ज्यदा टेस्ट लिखे! बे-जरूरी दवाइयां लिखे। डिसचार्ज करने में डी-ले करे। चिकित्सा व्यवसाय में जो भी खामियां दिख रही है, उसमें सही अर्थों में डॉक्टर एक टूल अथवा रबर स्टांप बन कर रह गया है। और यह स्थिति देश-समाज एवं राष्ट्र के लिए अच्छी नहीं है। वह भी तब जब भारत जैसे देश में 11082 लोगों के ऊपर महज एक एलोपैथिक चिकित्सक है। चिकित्कों की इतनी कमी है। समाज को चिकित्सकों की समस्या को भी स्वीकारना चाहिए और चिकित्सकों लूटेरे के रूप में नहीं बल्कि एक पीड़ित के रूप में देखना चाहिए। तब शायद समाज चिकित्सकों के दुःख-दर्द को ठीक से समझ पायेगा।
आज 1 जुलाई को देश राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मना  रहा है। देश-दुनिया में यह दिवस बहुत ही संवेदनशीलता के साथ मनाया जाता है और चिकित्सकों को उनके नेक काम के लिए समाज की तरफ से कृतज्ञता ज्ञापित किया जाता है। भारत में राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस जाने-माने समाज सेवी एवं पं.बंगाल के पहले स्वास्थ्य मंत्री एवं दूसरे मुख्यमंत्री रह चुके भारत रत्न विधानचन्द्र राय के जन्म दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में डॉ.बी.सी.राय ने अतुलनीय काम किया है। सच तो यह है कि देश के चिकित्सक डॉ.बी.सी.राय को अपना नायक मानते हुए जन-सरोकारिता को अपनाएं साथ ही समाज के लोग अपने चिकित्सकों का विशेष ख्याल रखें, उनके साथ किसी भी तरह की अभद्रता न करें और संवाद का सहारा लें। इतना ही नहीं देश की सरकारों को भी चिकित्सा व्यवस्था की अव्यवस्था को दूर करने में और तीव्र गति से आगे आना होगा। तभी हम एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना को पूर्ण कर सकते हैं!
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लेखक परिचयः
स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय संयोजक एवं स्वस्थ भारत (न्यास) के चेयरमैन हैं। ‘कंट्रोल मेडिसिन मैक्सिमम् रिटेल प्राइस’, ‘जेनरिक लाइए पैसा बचाइए’, ‘तुलसी लगाइए रोग भगाइए’, ‘अपनी दवा को जानें’ और ‘स्वस्थ बालिका स्वस्थ समाज’ जैसे कैंपेनों के माध्यम से स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जागरूक करते रहे हैं। हाल ही में 90 दिनों में 20 हजार किमी की स्वस्थ भारत यात्रा पूरी कर लौटे हैं।

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