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विसंगतियों पर मौन को तोड़ेगा व्यंग्य संग्रह #मीरा_ कूल

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। हिंदी पाठकों के लिए परिचित नाम डॉ. अलका अग्रवाल सिग्तिया की सद्यः प्रकाशित व्यंग्य संग्रह #मीरा_ कूल नाम से बाजार में आ गयी है। इसमें जीवन की विसंगतियों पर मौन को तोड़ने वाले व्यंग्य हैं। वाणी प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है। हाल ही में मुंबई में इस पुस्तक का भव्य लोकार्पण हुआ है।
इस पुस्तक के बारे में सरोजिनी प्रीतम जी लिखती हैं- ‘अलका जी का व्यंग्य संग्रह “#मीरा_कूल”, मीरा के नये तेवर-उनकी अलग पहचान का घोषणा पत्र है। लीक से हट कर ऐसा करारा व्यंग्य कि बहुत से लोग गहन चिन्तन में डूबेंगे।’
इसी तरह डॉ. शैलेश श्रीवास्तव लिखते हैं-#मीरा_कूल डॉक्टर अलका अग्रवाल सिग्तिया की एक विलक्षण पुस्तक, जिसका नाम बड़ा ही रोचक है, अपनी तरफ आकर्षित करता, जिज्ञासा जगाता कि इसमेँ क्या कुछ है आधुनिकता से भरा।
ज्ञानरंजन जी कहते हैं-‘अलका अग्रवाल की व्यंग्य कहानियों का यह एक परिपक्व और भविष्य की ओर क़दम बढ़ाता दिलचस्प संग्रह है। इसमें कुल बाईस शीर्षक हैं, जो दो हजा़र के बाद के भारत का एक कोलाज़ बनाते हैं। ये बिल्कुल नये और आधुनिक विषयों को समेटे है।’
इस पुस्तक को डॉ. अलका जी ने अपने सभी पाठकों के साथ, लेखकीय ईमानदारी से राब्ता रखने वाले लेखकों, और उन युवा रचनाकारों को समर्पित किया है, जिनसे हम भी सीखते हैं।
इस पुस्तक की भूमिका में डॉ. अलका अग्रवाल सिग्तिया खुद लिखती हैं-‘ऐसा कोई युग नहीं रहा जब विसंगतियां ना रही हों। यही विसंगतियां संवेदनशील मन में प्रश्नों के रूप में उथल-पुथल मचाती हैं। क्या सभी प्रश्नों के जवाब मिल जाते हैं? यदि सभी प्रश्नों के जवाब मिल जाएं तो व्यंग्य लिखा ही क्यों जाए? विसंगतियों पर मौन को तोड़ने के लिए ही व्यंग्य जागरूक करता है। विष का प्याला पीने में मीरा मध्यकाल में भी नहीं डरी, वर्तमान दौर में भी यह साहस ही चेतना पैदा करता है इसलिए मेरे इस संग्रह की नायिका मीरा हैं। मुझे लगता है कि हर लेखक के अचेतन में एक मीरा होनी चाहिए जो दुष्यंत कुमार की तरह आकाश में सुराख़ करने की बात करे।’
अपनी प्रतिक्रिया में स्वस्थ भारत न्यास के चेयरमैन आशुतोष कुमार सिंह ने लिखा है-मेरे लिए हर्ष का विषय है कि मेरी दीदी डॉ. अलका अग्रवाल सिग्तिया अपनी साहित्यिक यात्रा को एक नई मुकाम देते हुए, हिन्दी साहित्य के पाठकों के दरवाजों पर एक बार फिर से दस्तक दे दी हैं। इस बार कुछ हटकर लेकर आई हैं। सुखद पक्ष यह है कि मेरी दीदी की किताब आई है। देश में अपनी प्रतिष्ठा एवं निष्ठा के लिए जाने जाने वाले प्रकाशन संस्थान वाणी से इस पुस्तक का प्रकाशन होना गर्व का विषय है।

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