स्वस्थ भारत मीडिया
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स्वास्थ्य पत्रकारिता के विभिन्न आयामों पर हुआ गंभीर मंथन

‘स्वस्थ भारत डॉट इन’ की 8वीं वर्षगांठ पर वेबिनार आयोजित

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। ‘स्वस्थ भारत डॉट इन’ की 8वीं वर्षगांठ पर इस वेबसाइट की अभिभावक संस्था ‘स्वस्थ भारत मीडिया’ ने वेबिनार का आयोजन किया जिसमें स्वास्थ्य पत्रकारिता के पहलुओं पर गंभीर मंथन हुआ। यह पोर्टल 2 अक्टूबर 2014 को शुरु हुआ था। इसका मकसद था जेनेरिक मेडिसिन सर्वसुलभ कराना और स्वस्थ के सभी आयामों के प्रति जनता, सरकार और सामाजिक संगठनों को जागरूक करना।

गणेश वंदना से शुरूआत

कोविड की भयावहता कम होने के बाद साइट की आरंभ तिथि और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर स्वस्थ भारत ट्रस्ट ने तय किया था कि स्वास्थ्य पत्रकारिता, भूत, भविष्य और वर्तमान’ विषय पर एक राष्ट्रीय वेबिनार हो। कार्यक्रम का संचालन रंगकर्मी और कवि मनोज भावुक ने किया। अध्यक्षता प्रो. के. जी. सुरेश (कुलपति, माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल) ने की। अतिथियों का स्वागत कार्यकारी संपादक संजीव कुमार ने किया। कार्यक्रम का आगाज मनोज भावुक के स्वर में गणेश वंदना-मेरे मन के आगन में आओ गजानन हरो कष्ट मेरे…से हुआ।

8 साल के संघर्ष का फल : आशुतोष

समूह संपादक आशुतोष कुमार सिंह को वेबसाइट के 8 साल के संघर्ष और प्रभाव का ब्योरा दिया। मनोज भावुक ने कहा कि यह हर्ष का विषय है कि देखते-देखते यह साइट और ट्रस्ट इतना बड़ा हो गया क्योंकि इसका उद्देश्य ही बहुत बड़ा रहा है। कोविड काल में स्वास्थ्य के प्रति लोगों का नजरिया बदला है। पहले लोग इन्श्योरेन्स और अंग्रेजी दवा अस्पताल तक सीमित थे लेकिन वेबसाइट ने स्वास्थ्य पत्रकारिता के क्षेत्र में सराहनीय काम किया है।

स्वस्थ रहेगा देश तो होगा आत्मनिर्भर : धनंजय कुमार

सालों से स्वास्थ्य पत्रकारिता कर रहे धनंजय कुमार ने कहा कि इस पत्रकारिता का भूत मैं हूं, भविष्य आशुतोष सिंह। वही अपने जुनून से भारत को स्वस्थ राष्ट्र बना सकते हैं। कोविड ने यह सिखा दिया कि अस्पताल और दवा नहीं, आपकी इम्युनिटी ही आपका रक्षक है। उन्होंने कहा कि पत्रकार को प्रीवेन्टिव खबर पर फोकस देना चाहिये। जब लोगों के खानपान और रहन-सहन का तरीका सही होगा, तब लोग कम बीमार होंगे। फिर वे शरीर से मजबूत होंगे तो अस्पताल की भूमिका खत्म हो जाएगी। यह संभव है। भूटान दुनिया में एक ऐसा देश है जहां के लोग अस्पताल नहीं जाते क्योंकि वो एक स्वस्थ राष्ट्र है। पत्रकार का यही उद्देश्य हो कि वो सही लाइफ स्टाइल को प्रमोट करे। अभी भारत की जरूरत है स्वस्थ होना तभी आत्मनिर्भर बन सकेगा देश। इसके लिए स्वास्थ्य पत्रकार को जनता को सही और शोधपरक जानकारी देनी चहिए चाहे वो लाइफ स्टाइल की हो या बीमारी की। हेल्थ बीट अब यह प्राथमिक बन गया है। इस कोरोना ने और अहम बना दिया। केवल फेक न्यूज से बचना होगा। आपके एक शब्द से लाखों की लाइफ खराब हो सकती है, इसलिए पत्रकार को प्रशिक्षित होना चाहिये।

देह को स्वस्थ रखना जरूरी : उमेश चतुर्वेदी

दिल्ली पत्रकार संघ के उमेश चतुर्वेदी ने कहा कि आशुतोष की किताब ‘जेनेरिकोनॉमिक्स’ का प्रभाव दो दिशा में पड़ा-पहला एक शब्द को चुने और फिर सही मायने बताएं। ऐसा ना लिखें कि लाखों का नुकसान हो। अपने लिखने और कहने के पैटर्न पर ध्यान दे। बीमार ना पड़ें, इसके लिए योग, प्राणायाम और नेचुरोथेरेपी आदि पर फोकस करें। उन्होंने किस्सा बताया कि एक मेंटल अस्पताल के हेड से एक मरीज ने पूछा कि सर, देह बड़ा है या आत्मा। हेड बोले-आत्मा लेकिन रहती तो देह में है इसलिये उसको स्वस्थ रखना जरूरी है।

मीडिया में स्वास्थ्य की खबर नहीं : प्रभाकर

सीएमएस मीडिया लैब के प्रमुख प्रभाकर ने कुछ आंकड़ों पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया कि सेंटर फॉर मीडिया स्टडी का 10 साल का आकड़ों का विष्लेषण कहता है कि टीवी-रेडियो में हेल्थ की रिपोर्टिंग कितनी रही व उसका क्या महत्व है। टीवी और रेडियो 1 से 2 फीसद ही हेल्थ की खबर देता है। दूरदर्शन और रेडियो ने सबसे अधिक स्वास्थ्य की खबरें दी। लेकिन 1 फीसद में यह कितना होगा, आप स्वयं अनुमान लगा लें। भारत और अमेरिका की तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में बीमारी पर 70 और नीतियों पर 30 फीसद चर्चा होती है जबकि अमेरिका में बीमारी पर 4 व नीति पर 60 फीसद पर। गुणवत्ता की बात जाए तो यूएस में हेल्थ पर अच्छा पैसा खर्च होता है क्योंकि हेल्थ मार्केट काफी दमदार है। पर यह अनुशासित नहीं है। डब्ल्यूएचओ की स्टडी कहती है कि भारत के चुनाव में कभी स्वास्थ्य मुद्दा रहा ही नहीं। मीडिया में स्वास्थ्य की खबर नहीं दिखायी जाती क्योंकि लोग डिप्रेस नहीं होना चाहते। पत्रकारिता में हेल्थ के क्षेत्र में शोध काफी कम होता है। इसलिए भी स्वास्थ्य खबर को कम तवज्जो मिलती है।

स्वस्थ भारत टीम बधाई का पात्र  :  देशपाल सिंह

सीनियर पत्रकार देशपाल सिंह ने स्वस्थ भारत टीम को अच्छी पहल और सफलता के लिए साधुवाद दिया। कहा कि दुखद है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भारत कुछ नहीं सीख सका। एक घटना सुनाते हुए वे कहते हैं कि 2012 की बात है। एक लड़के का फोन आया। उसने मुझे दवा से जुड़ा ऐसा मुद्दा बताया जिसे ना मैंने सुना था ना कभी सोचा था। 30 मिनट उसने मुझे समझाया और मैं उसकी बात से काफी हद तक सहमत था जबकि ऐसा होता नहीं है। मुझे लगा कि लड़के में बड़ी ऊर्जा है। आगे कुछ बड़ा करेगा। वो लड़का आज स्वस्थ भारत ट्रस्ट का संस्थापक और डॉट इन का समूह संपादक है। उस लड़के के भेजे आर्टिकल की हेडिंग मुझे याद है-लालचियों के मोटे पेट, दवाओं के मनचाहे रेट। आशुतोष चले थे एक मिशन लेकर। लोग जुडते गए और कारवां बन गया। स्वास्थ्य पत्रकारिता का भूत कोविड काल था। इसका वर्तमान यही है। सभी जान और समझ रहे हैं और भविष्य काफी उज्ज्वल है।

पोर्टल का कंटेंट बेहतर : शशांक द्विवेदी

शशांक द्विवेदी ने कहा कि मैं इस ट्रस्ट और साइट से काफी समय से जुड़ा हुआ हूँ। इसने स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतरीन कंटेंट देने का काम किया है। मैंने खुद भी कई आर्टिकल लिखे हैं। इस साइट के काम को अगले पड़ाव पर ले जाने की जरूरत है। डिजिटल मीडिया में इसे पैर पसारने की जरूरत है। स्वास्थ्य के प्रति लोग जागरूक हुए है। इस क्षेत्र को बहुआयामी बनाया जा सकता है। कोविड से पहले ही इसने जेनेरिक, सस्ती दवा और स्वस्थ रहने के महत्व को समझाया है। अब लोग समझते हैं कि स्वस्थ भारत मिशन का उद्देश्य क्या है।

योग और आयुर्वेद इम्युनिटी का भंडार : डॉ. महेश व्यास

डॉ. महेश व्यास ने कहा कि व्यक्ति को स्वस्थ रहने का गुण एक स्वास्थ्य पत्रकार ही बता सकता है। ऋतु परिवर्तन और आयुर्वेद के ज्ञान का सही लेखन, क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इसका प्रसार हो। पत्रकार की पहल के बिना औषधि समाज के कल्याण के उपयोग में नहीं आ सकती है। एम्स के बारे में लोगों को पता नहीं था कि वहाँ आयुर्वेद से उपचार होता है। उसके बारे में पत्रकार ही बता सकता है। सही ज्ञान के प्रसार से समाज और राष्ट्र स्वस्थ और मजबूत हो सकता है। योग और आयुर्वेद प्राचीन जीवन शैली ही इम्युनिटी का भंडार है।

हेल्थ रिपोर्टर को सही ज्ञान हो : केजी सुरेश

हेल्थ को लेकर केजी सुरेश ने बताया कि एक मित्र थे 46 साल के। जीवन शैली काफी बेहतरीन थी। लेकिन एक हफ्ते पहले वो हार्ट अटैक से चले गए। कोई बीमारी नहीं थी। उनके घर गया। बेटी से बात हुई। पता चला कि वैक्सीन में कुछ ऊपर नीचे हुआ। उन्होंने दो वैक्सीन कोवीशील्ड की ली और बूस्टर कोई और ले लिया। क्या उनकी मौत का कारण यही था?, यह शोध का विषय है। स्वास्थ्य पत्रकार को इन विषयों पर शोध करने की काफी जरूरत है। बीते दो साल में खूब हेल्थ रिपोर्टिंग हुई है। एन एच आर एम का घोटाला एक पत्रकार ही सामने लाया था।

सीखने पर समय नहीं देते पत्रकार : केजी

उन्होंने कहा कि जब मरीज के रूप में आप डॉक्टर के सामने होते हो तो वो जाति और धर्म नहीं देखता। वो केवल मर्ज का इलाज करता है। इधर हालत यह कि पत्रकार भी सीखने पर समय नहीं देते। इस संदर्भ में उन्होंने आईआईएमसी का रोचक अनुभव सुनाते हुए कहा कि पत्रकार को प्रशिक्षण की काफी जरूरत है। छोटे शहरों के पत्रकारों को तो खासकर स्वास्थ्य पत्रकारिता सीखने की जरूरत है। हेल्थ बीट की जानकारी नहीं है लोगों में। हेल्थ बीट वाले पत्रकार को लगातार पढ़ने और सीखने की जरूरत है।

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