कोविड-19 काल में लखनऊ के संतुष्टि वेलफेयर फाउंडेशन के शालिनी और दीपेश घूम-घूमकर दे रहे हैं बेजुबानों को चारा
लखनऊ। 20.04.20/ अतुल मोहन सिंह
कोविड-19 महामारी के संकट में सबसे अधिक दयनीय अवस्था शहरों में गोवंश, स्वान और बंदरों की हो गई है। जरूरतमंद मनुष्यों के लिए भोजन और अन्य वस्तुओं की उपलब्धता के लिए सरकारी और निजी स्तर पर व्यापक प्रयास चल रहे हैं। लॉकडाउन के चलते घर से बाजार तक सब बंद है, ऐसे में गोवंश, स्वान और बंदर भूख से बिलबिला रहे हैं। भूख से बिलखते जीवों की कुंठा पागलपन के स्तर तक पहुंच चुकी है। ऐसे में इन बेजुबानों के लिए संतुष्टि वेलफेयर फाउंडेशन की अध्यक्ष शालिनी पांडेय और सचिव दीपेश भार्गव मसीहा साबित हो रहे हैं।
इंदिरानगर निवासी शालिनी और दीपेश ने लॉकडायन का प्रथम चरण इन बेजुबानों की सेवा करते हुए गुजार दिया। सुबह से कार लेकर उसकी डिक्की में बंदरों, स्वान और गोवंश के लिए अलग-अलग वस्तुएं भर लेते हैं। इसमें कच्ची सब्जियां, पत्तेदार सब्जियां, सलाद आइटम, फल, बना और बचा हुआ खाना शामिल होता है। यह भोजन शहर भर में घूम-घूमकर गोवंश, स्वान और बंदरों के बीच चिन्हित स्थानों पर खुद खड़े होकर खिलाकर ही लौटते हैं। इसके लिए इनको आठ से दस घन्टे का वक्त लग जाता है।
प्रासादम सेवा के बचे भोजन का रीयूज
शालिनी पांडेय ने बताया कि बाजार से सब्जियां आदि मंगवाने और घर पर खाना बनाकर गोवंश, बंदरों और स्वानों को खिलाने में रोजाना 2 से 3 हजार रुपये का खर्च आता है। इसके बारे में जब लखनऊ के फ़ूडमैन विशाल सिंह को पता चला तो उन्होंने बुलाकर अपने यहां के प्रसादम सेवा का बचा हुआ खाना देने लगे। यहां से उनको बड़ी मात्रा में कच्ची सब्जी, दूध, सलाद और पका हुआ बचा भोजन भी मिलने लगा है। ऐसे में अब खर्च कुछ कम हो गया है। फिर भी रोजाना कार के लिए पेट्रोल किराना स्टोर की सामग्री के लिए भी दो हजार रुपये रोजाना ख़र्च करने पड़ते हैं।
सब्जी मंडी की बची हुई सब्जियां बनीं सहायक
दीपेश भार्गव बताते हैं कि शहर में लगने वाली सब्जी मंडी में भी उन्होंने संपर्क किया है। सब्जी मंडी उखड़ने के बाद कुछ सब्जियां बच जाती हैं। कुछ सब्जियों के पत्ते आदि मिल जाते हैं। इनका उपयोग भी गोवंश को खिलाने में किया जाता है। टेढ़ी पुलिया, सीतापुर रोड और दुबग्गा मंडी सहित अन्य स्थानों पर भी उन्होंने संपर्क किया है। इसके अतिरिक्त सरकार की ओर से संचालित होने वाले कम्युनिटी किचन से भी भोजन बचने की स्थिति में उनके पास फोन आटा है। फोन से मिले स्पॉट से वह कार से उस भोजन को उठाकर उपयुक्त स्पॉट तक पहुंचाते हैं, जिससे गोवंश, स्वान और बंदरों को उसका भरपूर लाभ मिल सके।
बेजुबानों से बन चुका है अपनेपन का रिश्ता
शालिनी बताती हैं कि कहने को तो यह बेजुबान गोवंश, स्वान और बंदर हैं, पर उनकी संवेदनाएं हम मनुष्यों से कहीं अधिक हैं मजबूत हैं। मेरी गाड़ी का हॉर्न बजते ही सब झुंड के रूप में दौड़ पड़ते हैं, उन्हें लगता है कि मेरा भोजन भी आ गया है। चिन्हित स्थानों पर सुबह, शाम और दोपहर तीन बार फेरी लगाकर भोजन और चारा उपलब्ध करवाने के दौरान प्रत्येक गोवंश, बंदर एवं स्वान जैसे पहचानने लग गए हैं। हम लोग बागी जब तक उनको अपने हाथों से खिला नहीं लेते हैं, मन को सुकून नहीं मिलता है। ऐसा लगता है कि यह बेजुबान भी पेट भरने के बाद खुश होकर आशीर्वाद देते हैं।
कुछ यूं शुरू हुआ सिलसिला
दीपेश बताते हैं कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद मनुष्यों ने तो यथासंभव अपने लिए खाने और अन्य जरूरत की सामग्री जुटाकर रख ली। पर इन बेजुबानों को इतनी समझ कहां। अचानक, होटल, बाजार, दुकान, मकान, पार्क, आयोजन, सादी समारोह सब ठप हो गया। इन बेजुबानों को समझ नहीं आ रहा कि यह सब हो क्या रहा है। वह भूख से बेचैन होकर इधर-उधर भागते नज़र आ रहे हैं। कुत्ते तो सभी सड़कों पर ही काटने को दौड़ने लगे हैं। एक वाकया उनके साथ भी ऐसा ही हुआ, तब उन्हें इस बात का अहसास हुआ और उन्होंने इस पर मुहिम चलाने का निर्णय कर लिया।
जब तक लॉकडाउन रहेगा सेवा जारी रहेगी
शालिनी और दीपेश ने बताया कि जब तक लॉक डाउन रहेगा इस सेवा को निरंतर जारी रखा जाएगा। अगर इस बात की जरूरत महसूस की गई तो लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी इसे हालात सामान्य होने तक चलाया जाएगा। शालिनी ने बताया कि उन्होंने समाज से भी मदद की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि कोई भी व्यक्ति अपने घर का बचा हुआ खाना और कच्ची सब्जी अथवा चारा देकर उनका सहयोग कर सकता है।
यह है हेल्पलाइन नंबर
उन्होंने इस काम के लिए हेल्पलाइन नम्बर 9919507822 और 9118333322 जारी किया है। इस हेल्पलाइन नम्बरों पर भूखे गोवंश, स्वान और बंदरों की जानकारी भी दी जा सकती है। ताकि समय पर उनको भी भोजन उपलब्ध करवाया जा सके।