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कई बार मेडेन फार्मा के उत्पाद निकले हैं नकली

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। मेडेन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड जिसकी हरियाणा के सोनीपत मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है, के चार कफ सिरप से गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत की चर्चा है। लेकिन इसमें कई झोल भी है जिसका खुलासा धीरे-धीरे होने लगा है। कंपनी यह कहकर गुमराह करती है कि उसकी दवाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा प्रमाणित और साथ ही जीएमपी मानदंडों का पालन करती हैं। जबकि WHO इसे खारिज कर उसकी दवा को घटिया क्वालिटी का मानती है।

नकली दवा पहले भी बना चुकी है कंपनी

मीडिया में चल रही खबर के मुताबिक 2021 और 2022 में केरल के अधिकारियों ने पाया कि फर्म के प्रोडक्ट्स कम-से-कम पांच बार घटिया निकले। इनमें मेटफोर्मिन टाइप-2 मधुमेह की दवा की गोलियां शामिल थीं, जो डिसॉल्यूशन टेस्ट को पास करने में विफल रहीं। एक अन्य दवा में बहुत अधिक एस्पिरिन थी। साल 2015 में गुजरात के अधिकारियों ने एक दवा में मैसिप्रो के नमूने पाए। 2011 में बिहार स्वास्थ्य विभाग ने कंपनी द्वारा बनाई गई दो दवाओं के छह बैचों के घटिया पाए जाने के बाद पांच साल के लिए इसी कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया था।

सिरप में मिले हानिकारक तत्व

WHO के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्येयियस ने एक बयान में बताया था कि इस बार कहा कि चार उत्पादों में से प्रत्येक के नमूनों का प्रयोगशाला विश्लेषण पुष्टि करता है कि उनमें डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की अस्वीकार्य मात्रा है। चार कप सिरप हैं प्रोमेथेजिन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सिरप, मैकॉफ बेबी कफ सिरप और मैग्रीप एन कोल्डसिरप।

पहले भी हुए हैं ऐसे मामले

डायथाइलीन ग्लाइकॉल मिले होने से एक अन्य ब्रांड के कफ सिरप से 2020 में जम्मू और कश्मीर में 17 बच्चों की मौत हो गई थी। पिछले साल दिल्ली में डेक्सट्रोमेथॉर्फ़न मिले एक कफ सिरप का सेवन करने से तीन बच्चों की मौत का मामला सामने आया था। यह चिंता की बात है कि भारतीय फ़ार्मा सेक्टर पर नक़ली दवांका ठप्पा लगता है तो वह भारत के लिए कितना हानिकारक साबित हो सकता है।

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