स्वस्थ भारत मीडिया
फार्मा सेक्टर / Pharma Sector विमर्श / Discussion समाचार / News

ताकि जेनरिक दवाइयों के नाम पर लूट बंद हो…

So that the loot in the name of generic medicines is stopped.

कही आप भी जेनरिक दवाइयों के नाम पर तो नहीं लूटे जा रहे। सच जानने के लिए पढ़िए यह विशेष रपट

आशुतोष कुमार सिंह

Generic Medicine: पिछले 10 वर्षों में भारत में जेनरिक दवाइयों पर खूब चर्चा हुई है। एक विमर्श खड़ा हो गया है। सरकार पर दबाव बना है। इन वर्षों में नागरिक संगठनों के प्रयास से लोगों तक यह बात तो पहुंच गई है कि जेनरिक दवाइयां सस्ती होती है और उनकी गुणवत्ता में कोई कमी नहीं होती। इसी लाइन पर चलते हुए भारत सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधीन देश में जन-औषधि केन्द्र खोलने का दौर शुरू हुआ। इन दुकानों पर मिलने वाली दवाइयों की गुणवत्ता को लोगों ने देखा-परखा और सराहा भी। मार्केट में मिलने वाली दवाइयों की कीमत की तुलना में इन दुकानों यानी जनऔषधि केन्द्रों पर 60 से 80 फीसद तक सस्ती दवाइयां मिलने लगी।

जनऔषधि की सफलता भारतीय दवा बाजार को नहीं सुहाता

जनऔषधि केन्द्रों की सफलता देखकर बाजार भौचक था। बाजार के व्यापारियों ने इसके ब्रांड वैल्यू को भूनाने का प्लान बनाया। कल तक जो जेनरिक दवा ब्रांड के अल्टरनेट के रूप में बिक रही थी आज वहीं जेनरिक दवा को ब्रांड बना दिया गया। जेनरिक दवा बेचने वालों की नई-नई चेन खुल गई। बड़े-बड़े सेलिब्रेटी इन निजी जेनरिक दवा दुकानों के लिए टीवी पर विज्ञापन करने लगे। लोगों को लगा कि पूरा बाजार उनके हितों की रक्षा करने के लिए आगे आ गया है। उन्हें यह भी भ्रम हुआ कि निजी व्यापारियों की जेनरिक दवा दुकानें भी उतनी ही सस्ती है, जितनी भारत सरकार की प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत चलने वाली जनऔषधि केन्द्रों पर मिलने वाली जेनरिक दवाइयां। लोगों के इसी भ्रम का फायदा उठाकर इन निजी कंपनियों ने सस्ती दवाइयों के नाम पर आम लोगों को चूना लगाने का नया तरीका ढूंढ लिया है।

इस तरह कहीं आप भी तो नहीं लूटे जा रहे…

किसी भी दवा की मैक्सिमम रिटेल प्राइस को बाजार मूल्य से भी ज्यादा इन्होंने अंकित कराया। फिर उस एमआरपी पर 80 फीसद तक की छूट दे दी। जैसे दर्द की किसी दवा का बाजार मूल्य 20 रूपये है तो ये उसका एमआरपी 90 रुपये रखेंगे, फिर उस पर 60-70 फीसद की छूट देंगे। इस छूट के बाद भी उस दवा की कीमत बाजार से ज्यादा ही वसूला जाएगा। यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि बाजार में जो दवा 20 रुपये में मिल रही है, वही दवा भारत सरकार के जनऔषधि केन्द्र पर 5 रुपये में ही मिलती है। इसका मतलब यह हुआ जेनरिक दवा के नाम पर लोगों को सस्ती दवाई देने की बात करने वाले निजी जेनरिक स्टोर यहां पर भी लोगों को जमकर चुना लगा रहे हैं।

जेनरिक दवा क्या है?

सामान्य अर्थों में पेटेंट फ्री मेडिसिन को जेनरिक मेडसिन कहते हैं। अमेरिका के फूड ड्रग एडमिनस्ट्रेशन के ऑफिशियल वेबसाइट पर जेनरिक दवा के बारे में लिखा गया है कि, ‘जेनेरिक दवा एक ऐसी दवा है जो खुराक के रूप, सुरक्षा, ताकत, और गुणवत्ता मौजूदा अनुमोदित ब्रांड-नाम वाली दवा के समान होती है।‘  किसी भी ब्रांडेड दवा यानी पेटेंटेड दवा की जब पेटेंट अवधि समाप्त होती है, तब दूसरी फार्मास्यूटिकल्स कंपनियां उस दवा का निर्माण सरकार की अनुमति से कर सकती है। चूंकि प्रोडक्ट पर होने वाले शोध-कार्य, ह्यूमन ट्रायल आदि पर होने वाले खर्च से ये कंपनियां बच जाती है, अतः ब्रांडेड मेडिसिन का जेनरिक वर्जन बनाने में कम खर्च होता है। ब्राडेड दवा का मतलब किसी एक कंपनी का एकाधिकार। जेनरिक दवा का मतलब उस दवा पर सभी कंपनियों का अधिकार। जब एक ही सॉल्ट/दवा को बाजार की ढेर सारी कंपनियां बनाएंगी तो निश्चित रूप से कीमतों को लेकर प्रतिस्पर्धा होगी और इस प्रतिस्पर्धा के कारण दवाइयों की कीमत में कमी आएगी। अमेरिकी दवा बाजार भी इसी अवधारणा को मानता है और इसी के अनुरूप जेनरिक दवाइयों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एफडीए फार्मा कंपनियों की ऑडिट करता है। जेनरिक दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए FDA जेनेरिक ड्रग्स प्रोग्राम एक कठोर समीक्षा करता है। इसके अलावा अच्छी विनिर्माण प्रथाओं पर एजेंसी के नियमों का अनुपालन सुनिश्चित, करने के लिए अमेरिका का एफडीए एक वर्ष में विनिर्माण संयंत्रों का 3,500 निरीक्षण करता है।

जेनरिक दवाइयों को लेकर भ्रम में नहीं है अमेरिकावासी

अमेरिका में जेनरिक ड्रग्स को लेकर किसी भी प्रकार का भ्रम की स्थिति नहीं है। वहां की सरकार ने ऑफिस ऑफ जेनरिक ड्रग्स (ओजीडी) नामक एक विभाग बना रखा है। जिसका काम है अमेरिका में जेनरिक ड्रग्स को बढ़ावा देना। ओजिडी की डायरेक्टर सैली च्वय (Sally Choe) ने ओजिडी के छठे वार्षिक रपट में लिखे अपने संदेश में लिखा है कि, “अभी, संयुक्त राज्य अमेरिका में 10 में से 9 प्रिकिप्शन जेनेरिक दवाओं से भरे हुए हैं। जेनेरिक दवाओं ने पिछले एक दशक में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को $2.2 ट्रिलियन डॉलर की बचत की है।”

कोविड-19 में जेनरिक दवाइयों की महत्ता बढ़ी

कोविड माहामारी से निपटने के लिए अमेरिका में जेनरिक दवाओं की अहम भूमिका रही है। एफडीए (अमेरिका) की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार 2020 में, जेनेरिक दवा कार्यक्रम ने 948 जेनेरिक दवा अनुप्रयोगों को मंजूरी दी या अस्थायी रूप से अनुमोदित किया, जिन्हें संक्षिप्त में नई दवा अनुप्रयोग (ANDAs) के रूप में जाना जाता है। कुल स्वीकृतियों में से 50 मूल आवेदन और COVID-19 के रोगियों के लिए संभावित उपचार और सहायक उपचार के रूप में उपयोग किए जाने वाले दवा उत्पादों के लिए और 668 पूरक सबमिशन थे।

भारतीय प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना

भारत में भी प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के अंतर्गत खुलने वाली जनऔषधि केन्द्रों ने गुणवत्तायुक्त जेनरिक मेडिसिन की उपलब्धता को सुनिश्चित करने की दिशा में कारगर कदम उठाया है। इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए वित्तीय वर्ष 2020-21-2024-25 तक के लिए सरकार ने 490 करोड़ रुपये वित्तीय खर्च करने का प्रावधान किया है। 2025 तक 10500 जनऔषधि केन्द्र खोलने का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान की बात की जाए तो जनऔषधि केन्द्रों की संख्या देश में 8600 से ज्यादा है। इन केन्द्रों की सफलता ने यह सिद्ध कर दिया है कि गुणवत्तायुक्त जेनरिक दवाइयां भी बहुत ही कम कीमत पर आम लोगों को दी जा सकती है। रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग की वार्षिक रिपोर्ट 2020-21 के अनुसार 2019-20 में जनऔषधि केन्द्रों से 433.61 करोड़ की दवाइयों की बिक्री हुई। इससे देश की आम जनता को तकरीबन 3000 करोड़ रूपये की बचत हुई। इसी रिपोर्ट में भारतीय दवा बाजार की वैश्विक दखल के बारे में विस्तार से बताया गया है। भारतीय दवा उद्योग मात्रा के हिसाब से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा और मूल्य के मामले में 14वां सबसे बड़ा उद्योग है। फार्मास्यूटिकल्स का कुल वार्षिक कारोबार वर्ष 2019-2020 के लिए 2,89,998 करोड़ रुपये का था। जिसमें कुल दवा निर्यात और आयात क्रमशः 1,46,260 करोड़ और 42,943 करोड़ रुपये था। जेनरिक दवा निर्माण के क्षेत्र में भारत अग्रणी देशों में से है। भारत की जेनरिक दवाइयां पूरी दुनिया में निर्यात होती है।

जेनरिक दवाइयों को लेकर भारतीय कितना गंभीर है

भारत का #जेनरिक दवा बाजार जब पूरी दुनिया में अपनी दखल रखता है, ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर क्यों भारत में जेनरिक दवाइयों को लेकर उतनी गंभीरता नहीं दिखाई जाती जितनी अमेरिका जैसे विकसित देश दिखा रहे हैं। क्या कारण है कि भारत की आम जनता को ‘जेनरिक ब्रांडेड’ के नाम पर लूटा जा रहा है? अमेरिका जैसे देश में जब प्रिस्किप्शन पर 10 में से 9 दवाइयां लिखी जा सकती है तो भारत जैसे देश में जहां पर गुणवत्तायुक्त किफायती जेनरिक दवाइयों की सबसे ज्यादा जरूरत है, क्यों नहीं लिखी जाती? इन तमाम बातों की जानकारी सरकार को है नहीं या वह जानना नहीं चाहती यह भी चिंतनीय प्रश्न है।

क्या होना चाहिए

भारत जैसे विकासशील देश जहां पर स्वास्थ्य सुविधाओं की बहुत जरूरत है, एक स्तर तक सरकार भी चाहती है कि  स्वास्थ्य सुविधाओं में विस्तार हो बावजूद इसके आज महंगी दवाइयों एवं महंगे उपचार के जंजाल से भारत की गरीब जनता नहीं निकल पाई है। गर सच में सरकार के पास मजबूत इच्छा-शक्ति है तो उसे सबसे पहले जेनरिक दवाइयों के नाम पर मचने वाली लूट पर लगाम लगाने की जरूरत है। और इसके लिए जेनरिक दवाइयों की कीमतों को तय करने के फॉर्मुले को न्याय-संगत बनाने की जरूरत है। किसी भी कंपनी को अपनी मर्जी से दवा की एमआरपी लिखने की छूट पर नकेल कसने की आवश्यकता है। साथ ही अमेरिका की तरह एक जेनरिक दवा विभाग बनाने की जरुरत है जो जेनरिक दवाइयों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करा सके।

———————

परिचयः लेखक स्वास्थ्य पत्रकार हैं, जेनरिक मेडिसिन संदर्भित इनकी पुस्तक ‘जेनरिकोनॉमिक्स’ काफी चर्चित रही है। स्वास्थ्य जागरूकता के लिए लेखक ने स्वस्थ भारत अभियान के अंतर्गत 50000 किमी की भारत यात्रा की है। स्वास्थ्य एडवोकेसी के क्षेत्र में कार्य कर रही संस्था स्वस्थ भारत के चेयरमैन हैं।

मो.9891228151

ई-मेल-ashutoshinmedia@gmail.com

 

 

Related posts

पांच दिन के बच्चे के अंग से 6 जिंदगी आबाद

admin

सरकार ने माना-देश में कैंसर के मरीज बढ़े

admin

Need to Shift from Problem-based to Solution-based Journalism: K.G. Suresh

Ashutosh Kumar Singh

Leave a Comment