जैसा कहा, वैसा लिखा…हां, अयोध्या में संपन्न स्वास्थ्य संसद-24 में ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग विशेषज्ञ डॉ. चंद्रशेखर ने ऐसा ही कहा था। लीजिए उनके वक्तव्य का संपादित रूप।
मेरा 20 साल का अनुभव कहता है कि पॉली हाउस खेती की बजाय खेत में मेड़ पर पेड़ की विधि से हम अच्छी खेती कर सकते हैं। हम पॉली हाउस, ग्रीन हाउस के बजाय प्राकृतिक तरीके से कृषि करें। यह नेचुरल बेबी या टेस्ट ट्यूब बेबी जैसा प्रयोग है। नेचर के मामले में भारत समृद्ध है। कृषि विज्ञान की शिक्षा की खामी के कारण लोगों ने अपने पारंपरिक तरीके छोड़ कर पेस्टिसाइड खेती पर जोर दिया है। साग-सब्जी में खरपतवार पैदा न हो तो शरीर के लिए पॉली हाउस की सब्जी उपयोगी नहीं है। पॉली हाउस में गौ मूत्र का 30 प्रतिशत प्रयोग करें, यह फायदेमंद है।
जमीन की सेहत कैसे सुधरेगी? भारत की खेती की विधि में वैज्ञानिकता पहले से है। उनको हम समझें। खेती से जुड़े भूभाग और मौसम को समझें। कृषय निभावे चतुर किसान … घर का बुद्धिमान व्यक्ति खेती करे, नकारा आदमी नौकरी करे। यह कहावत थी जो अब बदल गई है। हम अपनी पहचान भूल गए हैं। नए प्रयोग के कारण भ्रम उत्पन्न हो गया है। भारत कृषि उद्योग प्रधान देश है। जब किसान उद्यमी है तो वो जानता और समझता है। कम्पोस्ट बनाएं और मिट्टी में नूट्रिएंट तैयार करें। अपने आप खेती में बेहतर परिणाम आएगा।