जैसा कहा…वैसा लिखा…हां, अयोध्या में संपन्न स्वास्थ्य संसद-24 में हार्टीकल्चर के डीन डॉ. संजय पाठक ने ऐसा ही कहा था। लीजिए उनके वक्तव्य का संपादित रूप।
आज छोटे-छोटे बच्चों को कार्डियो की समस्या हो रही है। मेरी चिंता का कारण है कि हम जिस स्वास्थ्य की बात कर रहे हैं वो माता से शुरू होता है। अगर मां को पेस्टिसाइड वाला भोजन देंगे, तो बच्चा कैसे स्वास्थ्य पैदा होगा क्योंकि मां के भोजन से बने दूध में भी उसका असर होगा। यह जो मिलावटखोरी की व्यवस्था है, वो कैसे बदलेगी?
देखिए, कीटनाशक के बिना भी कृषि की कई विधि है जिससे ऑर्गेनिक भोजन उगाया जाता है। पके फल के पास कच्चे फल रख देने से फल नेचुरल तरह से पक जाता है। जबकि दवा से पका फल आठ दिन में खराब हो जाता है जबकि प्राकृतिक रूप से पका फल लंबा चलता है। हमारे यहां आंवले को अमृत फल कहते हैं क्योंकि इसका विटामिन सुखाने के बाद भी 80 प्रतिशत बचा रहता है। इसका फाइबर कंटेंट भी अच्छा होता है। आयुर्वेद में इसका ज्यादा उपयोग होता है। पूरे भारत में इस अमृत फल का उपयोग होता है। बेल भी पेट के लिए अच्छा है। अगर पेट ठीक है तो स्वास्थ्य अच्छा होता है। फल में लगने वाले फंगस को सल्फर से हटाया जाता है। इससे पौधा प्रभावित नहीं होता है। केवल फंगस को नष्ट करता है। इसका छिड़काव शिमला मिर्च और टमाटर पर किया जाता है। इसलिए हमें ऑर्गेनिक खेती की ओर बढ़ने की जरूरत है।
बीते कुछ साल मैंने किसानों के साथ काम किया। उनको तकनीक और विधि बताई। उन्होंने बिना सब्सिडी के प्राकृतिक तरीके से सही खाद का उपयोग करके अपनी पैदावार को बढ़ाया। इसके अतिरिक्त सब्जी उत्पादक किसान को दोनों खाद के प्रयोग से ज्यादा लाभ होता है। विदेशी या प्राकृतिक तरीके से जमीन में माइक्रोब्ज की संख्या बढ़ाई जाती है। बीते कुछ सालों में हमने भारत के किसानों को मित्र कीटों के बारे में समझाया। मित्र कीटों को पकड़ कर चार्ट पर चिपकवाया और किसान को बताया कि हर कीटाणु को मारने की जरूरत नहीं है। कुछ किसान के मित्र होते हैं, कुछ दुश्मन। हमें केवल दुश्मन कीट-पतंगों से बचाव करना है। खेत में मित्र कीड़े दिखे तो कीटनाशक मत डालें।